महाराष्ट्र राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी अहम राज्य है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई इसी राज्य का हिस्सा है। इसको देखते हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम महत्वपूर्ण होते हैं। हर राजनीतिक दल की चाहत होती है कि महाराष्ट्र उनके हाथ में रहे। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम सभी राजनीतिक दलों के लिए बहुत कुछ सीख दे गए हैं।
अति आत्मविश्वास के कारण भाजपा को हुआ नुकसान
महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना की गठबंधन की सरकार थी। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कहते थे, “अबकी बार 200 पार, मी पुन्हा येईन (मैं फिर आऊंगा)।” भाजपा के अन्य नेताओं में भी यह नारा फेमस हो गया था। महा जनादेश यात्रा के ज़रिये मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस 200 से ज़्यादा विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर चुके थे।
चुनाव के नतीजे उसके ठीक विपरीत साबित हुए। 2014 में बीजेपी ने 122 सीटें जीती थी और 2019 आते-आते बीजेपी 105 पर सिमट गई। अपने बल पर पार्टी बहुमत भी नहीं ला सकी।
शिवसेना का राजनीतिक कद बढ़ा
भाजपा की सीटें कम होना शिवसेना के लिए फायदेमंद है। ऐसी स्थिति हो चली है कि बीजेपी अब शिवसेना को नहीं छोड़ सकती। शिवसेना 50-50 फॉर्मूले की बात कर रही हैं। मतलब साफ है कि शिवसेना ढाई साल आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है।
अगर इस बात पर सहमति नहीं बनती है फिर 5 साल के लिए उपमुख्यमंत्री पद के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण मंत्रालयों को भी अपने पाले में करने की शिवसेना की मांग है। दोनों ही स्थितियों में शिवसेना को फायदा ही है।
पिछले 5 साल शिवसेना सरकार में भी थी और सरकार का विरोध भी कर रही थी। इसका कारण साफ था शिवसेना को ऐसा लग रहा था कि हमें अहमियत नहीं दी जा रही हैं। इस बार ऐसी कोई गुंजाइश नहीं रहेगी।
केंद्र का दखल देना राष्ट्रवादी काँग्रेस के लिए संजीवनी
महाराष्ट्र का चुनाव प्रचार जब शुरू हुआ था तब से लेकर अंतिम समय तक नरेंद्र मोदी से लेकर फडणवीस तक सभी बीजेपी नेता शरद पवार पर ही टीका-टिप्पणी कर रहे थे।
शरद पवार के राजनीतिक प्रभाव को खत्म करने के लिए स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक का मामला चुनाव में लाया गया, जिसकी जांच ईडी कर रही थी।
शरद पवार को नोटिस भेजा गया जिसके बाद उन्होंने खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा कि मैं ईडी के दफ्तर जा रहा हूं। कोई भी कार्यकर्ता ईडी ऑफिस ना आए। बाद में ईडी ने पवार को खत लिखते हुए कहा कि ऑफिस आने की कोई ज़रूरत नहीं है। मुंबई पुलिस को भी पवार को कहना पड़ा कि आप घर से बाहर ना निकले।
इस घटना से ही हवा का रुख पलट गया। जब चुनाव प्रचार का अंतिम दौर था, उस वक्त सातारा में शरद पवार ने बारिश में भीगते हुए चुनावी सभा को संबोधित किया। वह वीडियो क्लिप काफी तेज़ी से वायरल हो गया, जो राष्ट्रवादी काँग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हुआ।
काँग्रेस का प्रदर्शन एक चमत्कार
शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी काँग्रेस (एनसीपी) के अच्छे प्रदर्शन को हम समझ सकते हैं, क्योंकि जब पश्चिमी महाराष्ट्र में बाढ़ के हालात थे, तब मुख्यमंत्री किसी और हिस्से में महा जनादेश यात्रा कर रहे थे। जबकि शरद पवार पीड़ित लोगों से मिलकर उनका हौसला बढ़ा रहे थे।
चुनाव प्रचार में भी वह काफी सक्रिय रहे। चुनाव प्रचार से लेकर इन परिस्थियों के बीच काँग्रेस कहीं पर भी नहीं थी। काँग्रेस के बड़े-बड़े नेता पार्टी को छोड़ भाजपा और शिवसेना में आ चुके थे। राहुल गाँधी की 2-3 सभाएं चुनाव प्रचार में खासा असर नहीं दिखा पाईं।
लोकसभा के समय सक्रिय राजनीति में आई प्रियंका गाँधी का तो कोई अता-पता ही नहीं था फिर भी काँग्रेस को 40 से अधिक सीटें मिली, जिसे स्थानीय प्रत्याशियों की मेहनत का फल कहा जा सकता है। शरद पवार ने जो मेहनत की उसका थोड़ा बहुत फायदा काँग्रेस को भी मिला।
दल बदलू नेताओं को सिखाया सबक
चुनाव के नतीजों की विशेषता के तौर पर इस बात को देखा जाएगा कि मतदाता ने किस तरह सत्ता के लिए पार्टी छोड़ने वाले बाहुबली नेताओं को धूल चटाई। इस कड़ी में आप उदयनराजे भोसले, हर्षवर्धन पाटिल और मधुकर पिचड़ जैसे कई नेताओं के नाम ले सकते हैं। भोसले तो बतौर सांसद इस लोकसभा चुनाव में एनसीपी से चुनकर भी आए थे।
इस चुनाव ने भाजपा के इस नैरेटिव को तोड़ दिया कि भाजपा का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। जनता ने सत्ताधारी पार्टी को फिर से मौका देते हुए ज़मीन पर रहने की नसीहत दी। विपक्ष को भी ताकतवर बनाया ताकि वह आम लोगों की आवाज़ बन सकें।
लोकतंत्र में सत्तापक्ष के साथ-साथ विपक्ष की भी तो ज़रूरत होती है। इसलिए यह चुनाव परिणाम आम लोगों द्वारा लोकतंत्र की जीत है।