झारखंड को मुद्दों का प्रदेश कहें या ‘मौतों’ का, यह तय करना मकसद नहीं लेकिन सूबे में मॉब लिंचिग या फिर भुखमरी के कारण एक के बाद एक मौतें हो रही हैं। इस अप्रिय श्रृंखला की अगली कड़ी पतरातू नामक गाँव के लखन महतो की आत्महत्या है।
राजधानी रांची से महज़ 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ‘चान्हो’ ब्लॉक का पतरातू गाँव इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट से लेकर डिजिटल मीडिया की सुर्खियां बटोर रहा है।
इस डिजिटल युग में 3D सिक्के के चारों पहलु पर नज़र डालने पर एक पहलु लखन महतो की ‘आत्महत्या’ है, तो दूसरे पहलु में बुज़ुर्ग माँ, तीन अनाथ बेटे एवं विधवा पत्नी का अनिश्चितताओं से घिरा जीवन है। तीसरे पहलु में इस बेसहारा परिवार को सम्मानजनक जीवन ना जी सकने की कसक है, तो चौथे पहलु में निर्ममता का फन काढ़े बेशर्म सिस्टम।
2017-18 की मनरेगा योजना के तहत मृतक लखन महतो के लिए उनकी ज़मीन पर एक कुआं स्वीकृत हुआ था, जिसके निर्माण में मनरेगा के तहत उन्हें 3 लाख 54 हज़ार रुपये मिलने थे लेकिन उनकी मौत से पहले गुजरे पौने दो साल में उन्हें मात्र पौने दो लाख रुपया ही मिल सका।
कर्ज़ के बोझ और तंगहाली में सराबोर जीवन के बीच अचानक 27 जुलाई की शाम, करीब 7 बजे लखन महतो के ही कुएं से उनका शव मिला। वह तो चले गए लेकिन पीछे छोड़ गए 85 वर्षीय बुज़ुर्ग माँ, विधवा पत्नी और तीन बेटे, 17 वर्षीय सूरज कुमार, 15 प्रवीण कुमार एवं 13 वर्षीय नीरज कुमार।
लखन महतो का यह परिवार कह रहा है कि मनरेगा योजना के तहत मिलने वाली राशी के भरोसे लखन महतो ने कुएं का निर्माण कई लोगों से कर्ज़ लेकर पूरा किया था। वह कर्ज़ के बोझ से काफी तनाव में थे।
सगे संबंधियों की नज़र में लखन की मौत आत्महत्या मगर प्रशासन की नज़र में नहीं
चान्हो ब्लॉक के बीडीओ संतोष कुमार ने लखन महतो द्वारा बकाया राशी की प्राप्ति हेतु ब्लॉक का लगातार चक्कर लगाने वाली बात से इंकार कर दिया। यही नहीं, लखन की मौत पर उन्होंने कहा, “मामला साफ है कि दुर्घटना में मौत हुई है। उसके बेटे ने भी एफआईआर में लिखकर यह कहा है। आत्महत्या करने का कोई कारण होना चाहिए। रही बात कार्यलय आने की तो एक बार कुछ लोग विधायक के साथ कार्यलय आए थे बस।”
जबकि जांच रिपोर्ट के बारे में रांची के डीसी राय महिमापत रे कहते हैं, “एग्रीकल्चर के कारण कोई तनाव नहीं था। प्राइमा फेसी तनाव के कारण सुसाइड का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता।”
जबकि आत्महत्या के इस सवाल पर गाँव के लोग कहते हैं,
लखन महतो ने आत्महत्या ही की होगी क्योंकि पेमेंट नहीं आने के कारण कर्ज़ की चिंता को लेकर वह बहुत तनाव में था।
इधर लखन महतो के बेटे सूरज कहते हैं,
पिता की मौत से दो दिन पहले भी वह उनके साथ बकाया राशी की प्राप्ति हेतु ब्लॉक कार्यालय गए थे लेकिन निराशा हाथ लगी। कर्ज़ा लेकर कुआं तो बनवा लिए थे पापा लेकिन हर दिन परेशान रहते थे। मम्मी से कहते रहते थे कि कर्ज़ा कैसे अदा कर पाएंगे, पैसा मिल ही नहीं रहा है।
सिस्टम की निर्दयिता पर दुखी सूरज कहते हैं,
पैसे के लिए पापा एक साल से बीडीओ और ब्लॉक का चक्कर लगा रहे थे। शुरू में लोग कहते थे कि मिल जाएगा लेकिन बाद में वे उनसे मिलने से कतराने लगे। यहां तक कि बीडीओ ने हमें भाग जाने के लिए कहा। पैसे तो मिले ही नहीं, अब हम यह कैसे साबित करें कि पापा की मौत शराब से नहीं हुई थी बल्कि उनकी मौत आत्महत्या से हुई। उनकी मौत का कारण सिर्फ और सिर्फ सिस्टम द्वारा दिया गया तनाव था।
आत्महत्या से हुई मौत पर शराबी होने का दाग क्यों?
चारो तरफ खबर फैली कि लखन शराब के नशे में था और कुएं में गिर गया जो सिर्फ एक दुर्घटना है और शराब पीने की इस बात पर डीसी ने कहा कि यह मुझे नहीं मालूम। लोगों ने कहा कि लखन महतो ड्रिंक करता था।
लेकिन शराब पीने वाली इस बात से आहत मृतक लखन महतो के 17 वर्षीय पुत्र सूरज कहते हैं, “जिस समय पापा की मौत हुई थी उस समय बीडीओे और दूसरे अधिकारियों ने कहा था कि एक हफ्ते में बकाया राशी मिल जाएगी लेकिन अब ये लोग झूठ फैला रहे हैं कि पापा शराब पीते थे और उस दिन पीकर कुएं में गिर गए थे।
लखन महतो की पोस्टमॉर्टम और जांच रिपोर्ट दोनों ही आ चुकी है। डॉक्टरों के मुताबिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लखन के शरीर में अल्कोहल पाए जाने का कोई ज़िक्र नहीं है।
लखन महतो के गाँव पतरातू से वार्ड मेंबर भीम यादव ने शराब पीने की बात को खारिज़ करते हुए कहा कि उसके घर से कुएं तक जाने वाले रास्ते में कोई शराब की दुकान नहीं है और सुबह 5 बजे वह शराब पिएगा क्या? पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से यह साबित होता है कि उसने शराब नहीं पी रखी थी।
लखन महतो की पोस्टमॉर्टम और जांच रिपोर्ट दोनों ही आ चुकी है। डॉक्टरों के मुताबिक पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में लखन के शरीर में अल्कोहल पाए जाने का कोई ज़िक्र है ही नहीं।
आज क्या स्थिति है मृतक लखन महतो के परिवार की?
बीए पार्ट-1 के छात्र 17 वर्षीय सूरज कुमार, जो लखन महतो के बड़े पुत्र हैं, आज दूसरों के खेतों में काम कर के परिवार की जीविका चलाने का इंतज़ाम करते हैं। परिवार में सूरज के आलावा दो और भाई नीरज और प्रवीण, माँ एवं बुज़ुर्ग दादी हैं। दादी की सेहत खराब रहती है, तो वहीं छोटे भाइयों को शिक्षित करने की ज़िम्मेदारी भी सूरज कुमार के कंधों पर है।
पिता द्वारा लिए गए कर्ज़ का लगभग डेढ़ लाख रुपया बकाया फिलहाल नाबालिग सूरज के कंधों पर एक बड़ा बोझ है, जिसे वह दूसरों के खेतों में काम करके कैसे अदा कर पाएगा, यह सरकारी तंत्र से एक सवाल है।
पतरातू गाँव के 28 लोगों ने मनरेगा योजना के तहत कुआं बनवाई लेकिन नहीं हुआ किसी का भुगतान
पतरातू गाँव के वार्ड नंबर 6 से वार्ड मेंबर भीम यादव ने कहा कि एक किसान द्वारा तीन-साढ़े तीन लाख रुपये की बड़ी रकम का निवेश करना बहुत ही कष्टदाई प्रक्रिया है। लखन महतो के साथ-साथ हम 28 लोगों ने मनरेगा योजना के तहत घर से झाड़ पोंछकर रकम निकाली।
उसके बाद जो कम पड़ा उसे सगे संबंधियों से कर्ज़ लेकर कुआं बनवाई कि सरकार हमें पैसा तो दे ही देगी लेकिन आज तक किसी को पैसे का भुगतान नहीं हुआ है। उस पर से इस वर्ष पतरातू गाँव में भारी बारिश ने सब्ज़ियों की 90% फसल चौपट कर दी।
अब हम कर्ज़ कहां से अदा करें? परिवार का पेट कैसे भरें? भविष्य में अगली फसल की प्रक्रिया हेतु खर्च कहां से ले आएं? हमारे पास बचा है सिर्फ कुआं और इस कुएं का करें क्या? प्रशासन है कि भुगतान करने को तैयार नहीं, भुगतान होता तो खेती का रास्ता निकलता।