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Kanpur: Khaal ka baal aur Bawaal

उत्तर प्रदेश का मैनचेस्टर कहा जाने वाले शहर कानपुर के लोग एक बड़ी समस्या से गुजर रहे है, बात रोज़ी – रोटी की है। कानपुर शहर का एक बड़ा तपका चमड़ा उद्योग से जुड़ा हुआ है/था , पर अब एक बड़ी संख्या में चमड़ा उद्योग बंद हो रहे है। इसकी काफी सारी वजह बताई जा रही है:

१) इंडस्ट्रीज से निकलने वाले गंदे पानी की वजह से गंगा नदी का दूषित होना,
२) ‘केमिकल ट्रीटमेंट प्लांट’ द्वारा इस प्रदूषण को रोका जा सकता है, पर कंपनीज़ ने इसका सही उपयोग नहीं किया तथा उसके मानकों का पालन भी नहीं किया,
३) जीएसटी और नोट बंदी का असर,
४) यहां पर भैंस की खाल का काफी प्रयोग होता था पर अब उसकी कटाई और व्यापार पर प्रदेश में रोक है,
५) सरकार के ‘ ईज ऑफ डूइंग बिजनेस ‘ मानकों को धरातल पे लाने में विफलता,
६) ‘ इंडस्ट्रियल रीस्ट्रक्चर ‘ के इस दौर को जन – मानस के भविष्य के लिए सही रूप – रेखा की कमी,
७) गंगा प्रदूषण को रोकने के लिए कंपनीज़ – सरकार की साझा राय ना बन पाना,

निजी कंपनियों की मन्न – मानी और सरकार की प्लानिंग की कमी की वजह से हजारों लोगो का रोजगार उजड़ गया। ये वो लोग है जो पीड़ी – दर – पीड़ी चमड़ा व्यापार में योगदान दे रहे है और काफी हुनर – मंद है। अल्पसंख्य समाज और दलितों के एक विशेष वर्ग के लोग इस चमड़ा उद्योग से जुड़े है और ज़ाहिर है की इसका सबसे ज़्यादा असर उन्हीं पर पड़ेगा!
पर इसका दोषी कौन है?
सरकार तो ३-४ वर्षों से कंपनीज़ को लेटर भेज रही है जिसमें नियम के सख्त पालन के निर्देश थे। कंपनीज़ ने नहीं सुनी और आखिर में सरकार के सख्त कदम के बाद उन्होंने अपना व्यापार भारत के दूसरे प्रदेशों में शिफ्ट कर दिया, कुछ तो देश के बाहर भी व्यापार जमाने निकाल गए। ऐसे में बांग्लादेश पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है जहां पर बिजनेस का विस्तार हुआ है।
क्या उत्तर प्रदेश और भारत सरकार को ‘ ईज ऑफ डूइंग बिजनेस ‘ के विषय में बांग्लादेश से कुछ सीखना नहीं चाहिए?
क्या सिर्फ लेटर जारी करने से सरकार की ज़िम्मेदारी ख़तम हो जाती है?
उत्तर प्रदेश की सरकार को चाहिए था कि वो ‘ क्लस्टर डेवलपमेंट ‘ के तहत इन कंपनीज़ को नियम का पालन करने में मदद करती या फिर ‘ केमिकल ट्रीटमेंट प्लांट ‘ लगवाने में मदद करती , कोई राहत देती, कोई स्कीम / योजना बनती। कम से कम सरकार एक ‘ एक्शन कमेटी ‘ बना सकती थी जो ये जानकारी इकट्ठा करें की इन उद्योगों के बंद होने से आम लेबर पर क्या असर पड़ा है, ताकि ये समझा जाए को क्या कोई ‘ अल्टरनेट लाइवलीहुड ‘ स्कीम बना कर इन लेबर की दिन – चर्या का कोई इंतजाम किया जा सके।
इन मुद्दों के तले दबी ज़िंदगियां सवाल कर रही है पर आवाज़ नहीं पहुंच रही, आवाज़ आ भी रही है तो हुक्मरान इस समस्या का तोड़ निकालने में विफल साबित हो रहे है।

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