लेखक अनुराग पांडेय दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। कश्मीर के इतिहास और वर्तमान स्थिति पर उनके लेखों की शृंखला की यह पहली कड़ी है।
बचपन में लगभग हम सभी को एक दाढ़ी वाले बाबा की कहानी सुनाई जाती थी। उस कहानी में दाढ़ी वाले बाबा (जिनको हममें से किसी ने कभी नहीं देखा और किसी भी बूढ़े व्यक्ति को बाबा मान लेना) बच्चों को अपने बड़े से थैले में बंद करके ले जाते थे।
यह कहानी सुनाने वाले सामान्यतः हमारे नज़दीकी रिश्तेदार या पड़ोस के अंकल या आंटी हुआ करते थे। इसलिए हमारा दिमाग उस कहानी को सच मान लेता था और इस कहानी को सच मान कर हम डर जाते थे। मगर धीरे-धीरे हम बड़े होते गए और दाढ़ी वाले बाबा की झूठी कहानी बचपन की मीठी याद में बदल गई।
भारत में जिन्गोइस्ट और कहानी
कुछ इस तरह की ही कहानी भारत में जिन्गोइस्ट काफी अरसे से सुनाते आ रहे हैं और हममें से कई उन कहानियों पर आंख बंद करके भरोसा भी कर लेते हैं। क्योंकि वह कहानी हमें कोई ऐसा समूह, दल या व्यक्ति सुनाता है, जिसको हमने वैधानिकता दी हुई होती है।
देश में ऐसे व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है, जिनका बचपन खत्म ही नहीं हो रहा और वह आज भी ऐसी कहानियां सुनते, विश्वास करते और दूसरों को भी सुनाते हैं। वह भी बिना अपने देश के इतिहास को जाने।बचपन में ही कुछ ऐसे बच्चे हुआ करते थे, जो दाढ़ी वाले बाबा की कहानी का पुरज़ोर विरोध करते और समझाते थे कि ऐसे कोई बाबा नहीं होते, तो जवाब आता था कि जब बाबा उठाकर ले जाएगा तभी अक्ल आएगी।
आज भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो सच्चाई सामने लाना चाहते हैं लेकिन कुछ लोग इन कहानियों से अभिभूत और आकर्षित होते हैं तथा सच्चाई बताने वाले को वह डर दिखाते हैं। ऐसा करते हुए वे ठीक बचपन की तरह बाबा से नफरत करने की सीख देते हैं। वह डर और नफरत जिसमें वे खुद रहते हैं।
बचपन के बाबा की कहानी कई रूपों में हमारे सामने जीवन भर आती रहती है और हम विश्वास कर लेते हैं क्योंकि हम डरे हुए हैं और हम नफरत करते हैं।
धर्म के साथ चल रही है राजनीति
इसमें लव ज़िहाद, मुस्लिम की जनसंख्या, चार शादियां, मॉब लिंचिंग, दंगे, तीन तलाक, कश्मीर, अनुच्छेद 370 और 35 A इत्यादि प्रमुख हैं। ध्यान देने वाली बात यहां यह है कि यह सभी मुद्दे एक धर्म विशेष को निशाना बनाते हैं और इसी धर्म विशेष का डर दिखाकर आज की राजनीति चल रही है।
कोई भी कदम जो इस धर्म विशेष पर हमला करता हो, उसका स्वागत किया जाता है, खुशियां मनाई जाती है और नफरत का माहौल थोड़ा और बढ़ा दिया जाता है। हम खुश होते हैं क्योंकि बचपन के उस बाबा को आज ठीक किया जा रहा है, जिस बाबा पर कोई लगाम नहीं लगा सका और जिसने ना जाने कितने काल्पनिक बच्चों को अपने बड़े से थैले में बंद करके अगवा किया, उस बाबा को अब सुधारा जा रहा है।
आप समझदार हैं, समझ ही गए होंगे कि आज का बाबा कौन है और उसका डर और उससे नफरत क्या है?
इस बाबा को नियंत्रित करने के लिए कभी गाय, तो कभी दंगों के नाम पर मारा जाता है। कभी गर्भवती महिला को जान से मार दिया जाता है, तो कभी महिलाओं और बच्चियों से सामूहिक दुष्कर्म किया जाता है। बाबा चार शादियां करते हैं, तीन तलाक देते हैं, कम शब्दों में काल्पनिक या निर्मित (Constructed) पहचान पर आधारित तथाकथित अत्याचारी।
आईये कश्मीर मुद्दे पर चर्चा करें
आजकल तो कश्मीर का मुद्दा प्रमुखता से छाया हुआ है। तीन तलाक वाले मुद्दे की चर्चा किसी और लेख में करेंगे। आज सबसे ज्वलंत मुद्दे कश्मीर और धारा 370 पर बात करते हैं और इस कश्मीर रूपी बाबा के इतिहास पर प्रकाश डालते हैं, ठीक उस बच्चे की तरह जो बचपन में समझाता थे कि बाबा का वास्तविक रूप में कोई अस्तित्व है ही नहीं।
आप स्वतंत्र हैं, अभद्र भाषा बोलने के लिए, देशद्रोही और गद्दार इत्यादि तमगे देने के लिए। आप ऐसा करेंगे क्योंकि आप डरे और नफरत से भरे हुए हैं, जो हमारा देश या उसकी संस्कृति नहीं सीखाती। आप ऐसा करेंगे क्योंकि आप राष्ट्रवादी नहीं हैं बल्कि जिन्गोइस्ट हैं या बना दिए गए हैं।
कश्मीर भारत के सुदूर उत्तर का एक राज्य है। 19वीं शताब्दी के मध्य तक कश्मीर सिर्फ अपने एक हिस्से की वजह से जाना गया, जिसे कश्मीर घाटी या सिर्फ घाटी कहा जाता है। इस घाटी में हिमालय और पीर पंजाल रेंज शामिल हुआ करती थी लेकिन आज के कश्मीर या घाटी में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के भाग शामिल होते हैं।
इसके साथ-साथ पाक अधिकृत कश्मीर (जिसे आज़ाद कश्मीर कहा जाता है, जिसमें गिलगिट-बाल्टिस्तान के प्रांत भी शामिल हैं) और चीन द्वारा शासित अक्साई चीन एवं ट्रांस-कराकोरम ट्रैक्ट को भी इसी कश्मीर घाटी में शामिल किया जाता है।
प्राचीन और मध्यकालीन कश्मीर में हिन्दू और बौद्ध परंपरा केंद्रित थी। इस दौर में इन दोनों धर्मो के मध्य Syncretism (समन्वयता) अस्तित्व में थी। बौद्ध धर्म के मध्य और योगचारा हिन्दू धर्म के शैविस्म और अद्वेता वेदांत परंपरा के साथ मिश्रित हुए। इसके Syncretism (समन्वयता) का श्रेय बौद्ध सम्राट अशोक को जाता है।
बुद्धिज़्म के आने के बाद कश्मीर घाटी बौद्ध धर्मावलम्बियों की संख्या बढ़ने से मशहूर हुई। बुद्धिज़्म के सर्वस्तिवाद का उस समय कश्मीर पर गहरा प्रभाव था।
आखिरी हिन्दू शासक
अशोक के अतिरिक्त कारकोटा और उत्पला राजवंशों ने भी कश्मीर पर शासन किया। ऐसा माना जाता है कि उत्पला वंश के अवन्ती वर्मा ने एक युद्ध में कारकोटा वंश का अंत किया था। यह दो हिन्दुओं की नहीं बल्कि दो राजाओं की लड़ाई थी।
आखिरी हिन्दू शासन लोहरा वंश का था, इसका उल्लेख राजातरंगिनी में मिलता है। मगर यह कमज़ोर वंश साबित हुआ। इस वंश में सिर्फ कोटा रानी ही एकमात्र शासिका थी, जिसने कश्मीर के उत्थान के लिए कार्य किए थे। यह कोटा रानी की दूरदर्शिता का ही परिणाम था कि उन्होंने श्रीनगर में लगातार आने वाली बाढ़ से निबटने के लिए एक “कुटे कोल” नामक नहर बनवाई थी।
कोटा रानी, श्री रामचन्द्र की पुत्री थीं, जो सुहादेवा (लोहरा वंश के राजा) की सेना के सेनापति थे। रामचन्द्र ने लद्दाख के बौद्ध राजा रिनचेन को कश्मीर का प्रशासक नियुक्त किया था। मगर रिनचेन धोखेबाज़ निकले और सत्ता के लोभ में रामचन्द्र और उनके सैनिकों को धोखे से बंधक बना लिया।
कुछ समय बाद रिनचेन के इशारे पर रामचन्द्र की हत्या कर दी गई और उनके परिवार को कैदी बना लिया गया। रिनचेन के खिलाफ लोग खड़े हुए लेकिन उसने रावनचन्द्र (रामचन्द्र के पुत्र) को लार और लद्दाख का प्रशासक बना दिया और कोटा रानी से जबरन विवाह किया।
ऐसे मुस्लिम शासन कश्मीर में आया
अपनी सत्ता को वैधता देने के लिए रिनचेन ने बौद्ध धर्म छोड़ कर हिन्दू धर्म अपनाने का प्रयास किया किंतु एक कश्मीरी ब्राह्मण (जो शैव सम्प्रदाय के गुरु थे) ने रिनचेन को हिन्दू धर्म अपनाने नहीं दिया।
रिनचेन सूफी मिशनरी से प्रभावित हुआ और इस्लाम कुबूल किया, जिसके बाद उसका नाम सुल्तान सदरुद्दीन शाह हुआ और इस तरह से मुस्लिम शासन कश्मीर में स्थापित हुआ।
इस्लाम कुबूल करने के बाद रिनचेन ने शाह मीर को अपना विश्वासपात्र प्रशासक नियुक्त किया और मंत्री पद दिया। शाह मीर के पुरखे भी क्षत्रिय थे और पंच्गब्बर घाटी (राजौ़री और बूधायी के मध्य एक प्रान्त) के शासक थे।
कोटा रानी से सदरुद्दीन शाह (रिनचेन) को एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी, जिसका नाम हैदर खान रखा गया था। हैदर खान शाह मीर की सरपरस्ती में पले। रिनचेन के इस्लाम कुबूल करने के बाद कोटा रानी ने पुरोहितों की सलाह पर उदायनदेव से विवाह किया था। उन्हें इस विवाह से एक पुत्र हुआ, जो भट्टा भिक्षना के संरक्षण में रहा।
भट्टा भिक्षना को शाह मीर ने धोखे से मार दिया और इसी के बाद शाह मीर ने कोटा रानी के राज्य पर आक्रमण किया। कोटा रानी एक तरफ मंगोल आक्रमण और दूसरी तरफ शाह मीर के हमले से अपना राज्य नहीं बचा पाई और कश्मीर मुस्लिम शासक के हाथों में आ गया।
शाह मीर ने सदरुद्दीन शाह (रिनचेन) के पुत्र हैदर खान के नाम पर शासन शुरू किया। युद्ध के बाद शाह मीर कोटा रानी से विवाह करना चाहता था लेकिन कोटा रानी ने आत्महत्या कर ली और ऐसा कहा जाता है कि शादी के तोहफे के रूप में अपने पेट की आतें मीर को तोहफे भेजी। कोटा रानी और उदायनदेव से जो पुत्र हुआ उसका इतिहास अज्ञात है।
कुल मिलाकर रिनचेन कश्मीर पर शासन करना चाहता था मगर कोटा रानी अपने शासन को बचाना चाहती थी और शाह मीर कश्मीर का शासन अपने हाथ में लेना चाहता था।
धर्म नहीं शासक बनने की लालसा
बचपन के बाबा की कहानी झूठी निकली क्योंकि इनमें से कोई भी ना हिन्दू था, ना मुस्लिम और ना बौद्ध था। जो कुछ था, वह शासक बनने की लालसा थी। युद्ध हिन्दू-मुस्लिम-बौद्ध के मध्य नहीं बल्कि उन लोगों के मध्य हुए जो सुल्तान या राजा बनना चाहते थे।
अब आप इस पूरे इतिहास में राजा बनने की लालसा देख सकते हैं या हिन्दू-मुस्लिम-बौद्ध। यह सोच आपके जिन्गोइस्ट होने या ना होने और तार्किक होने या ना होने की पहचान है।
इस पूरे व्याख्यान में यह बात साबित होती है,
- पहला मुस्लिम शासक शाह मीर था, जिसने शाह मीर वंश की स्थापना की और इसका शासन 1339 से 1342 तक चला। हालांकि मीर वंश, शाह मीर के बाद कई वर्षो तक रहा और इसी बीच मीर वंश ने कई मुस्लिम उलेमाओं को कश्मीर में आमंत्रित किया और इस्लाम का प्रचार प्रसार करवाया।
- मीर वंश ने कई बौद्ध और हिन्दुओं को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया और नतीजतन हज़ारों लाखों लोगों ने इस्लाम धर्म को स्वीकार किया और सन 1400 तक कश्मीर में इस्लाम फैल गया।
- मीर वंश सन 1585 तक चला और इसी मीर वंश ने पर्शियन को कश्मीर की राजकीय भाषा के रूप में स्थापित किया।
- सन 1585 में मुगल सम्राट अकबर ने मीर वंश का अंत करके कश्मीर पर अपना शासन स्थापित किया।
अब यहां भी आप स्वतंत्र हैं, यह सोचने के लिए कि एक मुस्लिम ने दूसरे मुस्लिम के खिलाफ कश्मीर में लड़ाई लड़ी या एक राजा ने दूसरे राजा के खिलाफ युद्ध किया ताकि खुद का शासन स्थापित किया जा सके।
सनद रहे, अकबर ने कश्मीर में शिया-सुन्नी विवाद और सुन्नी मुस्लिम के मध्य आपसी वैमनस्य का ही फायदा उठाया था। कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो मुस्लिम भी एकजुट नहीं थे।
मुगल वंश ने 1585 से 1751 तक शासन किया और 1751 में दुर्रानी वंश (जो मूलतः अफगानी थे) ने मुगल सेना को हराकर दुर्रानी साम्राज्य की स्थापना की। दुर्रानी शासन ने मुस्लिम, बौद्ध और हिन्दू सभी कश्मीरियों पर बहुत अत्याचार किए। टैक्स की राशि कई गुना कर दी गई और आम कश्मीरियों की हालत बद से बदतर होती चली गई।
दुर्रानी वंश का शासन सिर्फ कश्मीरियों पर अत्याचार के लिए याद किया जाता है। इत्तेफाक से दुर्रानी और मुगल भी मुस्लिम ही थे, जहां मुगलों ने कश्मीरियत की रक्षा कर अपना शासन स्थापित किया, वहीं दुर्रानी वंश ने कश्मीरियत को तार-तार किया और एक आतताई शासन की स्थापना की।
आप यहां भी अपने विचारों के हिसाब से सोचने के लिए स्वतंत्र हैं, जिन्गोइस्ट की तरह से सोचिए और बोलिए कि मुस्लिम तो लड़ाके थे ही या तार्किक बन कर यह सोचिए कि एक राजा का कोई धर्म नहीं होता, वह सिर्फ शासन करता है या अपने शासन को बढ़ाता है। प्यार या अराजकता के बिना यह देखें कि शासित वर्ग उसके धर्म का है या नहीं।____________________________________________________________________________
यह लेख पूर्व में 10 अगस्त 2019 को डॉ अनुराग पांडेय द्वारा “इंडियन डेमोक्रेसी” में प्रकाशित हुआ है।