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“सीखें ‘सफल नेता’ बनने की पूरी रेसिपी”

इस भीषण बेरोज़गारी के दौर में अगर आप भी मेरी तरह ढे़रों पैसा, पावर और पोज़िशन हासिल करने का ख्वाब पाले हुए हैं तो मेरी मित्रवत सलाह यही है कि आप खुद को एक राजनेता बनने के लिए तैयार करें। जी हां, राजनेता क्योंकि वह दुनिया का सबसे कमाऊ प्राणी है।

नेता बनकर ना सिर्फ आप, अपितु आपकी कई पुश्ते भी अपनी ज़िंदगी मौज में गुज़ारेंगी। इस पेशे में आपको जितना अधिक पैसा हासिल होगा, उससे कहीं अधिक पावर और पोज़िशन हासिल होगा। जिसके उपयोग से आप अपने पिछलग्गों को भी कमवा सकते हैं।

पॉवर तो यूं होगा कि ज़िंदा को मुर्दा और मुर्दा को ज़िंदा साबित करवा सकते हैं। मिनटों में मीनार को इनार (कुआं) बनवा सकते हैं। पोज़िशन ऐसी कि दो-चार बॉडीगार्ड देख, गूंगे भी सलाम बोलेंगे।

पुलिसवाले और सरकारी कर्मी तो आपकी जी-हजू़री में ही व्यय होंगे। नेता से भी बड़े नेता में अगर प्रमोशन हुआ तो सारा जहां मुट्ठी में समझों। जब आठ आई.ए.एस/आई.पी.एस आगे-पीछे घूमेंगे तो बाबूजी के बचपन के तानों का सारा हिसाब सूद सहित चुकता हो जाएगा लेकिन इन सभी ख्वाबों को हकीकत में तब्दील करने के लिए कुछ ठोस प्रयास करने होंगे।

नेता बनने की रेसिपी

सबसे पहले आप सुनिश्चित करें कि आपके पास पूर्व से जमा धन हो। इससे पीछे भीड़ बढ़ेगी फिर आप आज के दौर में सफल हो रहे किसी दल में शामिल हो जाइए, मगर दल भी मालदार होना चाहिए। भूलकर भी वामपंथियों की संगत में ना पड़ें क्योंकि इससे गरीबी में आटा और गिला हो जाएगा।

अब जिस प्रकार हर प्रोफेशन में सफल होने के लिए कुछ विशेष गुणों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार नेतागिरी में भी सफल होने के लिए कुछ विशिष्ट गुणों की आवश्यकता होती है, जो इस प्रकार हैं-

यह बहुत काम की बात है, इसके साथ सारी दुनियादारी और समझदारी की सारी बातें होनी चाहिए लेकिन काम लूट-खसोट का होना चाहिए। आंदोलन, परिवर्तन, क्रांति और सामाजिक बदलाव की बात होनी चाहिए लेकिन काम समाज को पीछे धकेलने वाला और खुद को ऊपर उठाने वाला होना चाहिए।

सबको हक दिलाने की बातें होनी चाहिए लेकिन नियत हक मारने वाली होनी चाहिए। तब जाकर आप एक सफल राजनेता बन पाएंगे और अपने ख्वाबों को जी पाएंगे।

इस बात को गांठ बांध लें क्योंकि जब तक आपके अंदर प्रबल स्वार्थ नहीं होगा और ज़्यादा से ज़्यादा लूटने-खसोटने की इच्छा नहीं होगी तब तक आप बड़े राजनेता नहीं बन पाएंगे। प्रबल स्वार्थ नेतागिरी में पोज़िशन हासिल करने का जज़्बा और कुछ भी कर गुज़रने का जोश पैदा करता है।

आज के दौर में ईमानदारी को पागलपन कहते हैं और नेतागिरी समझदार लोगों का काम है इसलिए बेईमानी और मक्कारी जैसे गुणों का होना बेहद आवश्यक है। इससे आप दूसरों का हक आसानी से छीन पाने या लूटने में सफल होंगे और सरकारी योजनाओं में अपना हिसाब ठीक से बैठा पाएंगे।

झूठ दो प्रकार के होते हैं, काला और सफेद। काले झूठ बेवकूफ लोग बोलते हैं मगर नेतागिरी समझदारों का काम है जो जानते हैं कि झूठ सच की आड़ में या कुछ ऐसे टर्म्स की आड़ में बोला जाए, जहां सामने वाला पहुंच ही ना पाए।

जैसे, किसी ने वृद्धा पेंशन के लिए बोला हो और बाद में पूछे कि क्या हुआ? तो आप कह सकते हैं कि मुख्य सचिव से बोल दिया है। वह मुख्य सचिव तक पहुंचेगा तो नहीं लेकिन वह खुशी में पागल हो जाएगा कि आपने उसके छोटे से काम के लिए मुख्य सचिव को बोल दिया है।

एक नेता को बदलते मौसम, हालात, वक्त और भीड़ की आवाज़ को भांपने और उसके अनुसार खुद को बदलने की कला में माहिर होना चाहिए।

कभी टीका-टोपी तो कभी पगड़ी धारण कर लेना चाहिए। जो फूटी आंखों ना सुहाए उससे भी चुनाव के वक्त हंसकर बोल लेना चाहिए। जिसके गंदी बस्ती में भी जाना ना पसंद हो उसके घर भोजन खाना चाहिए। इसके लिए आप खुद के भोजन की भी व्यवस्था कर सकते हैं, बशर्ते मीडिया मैनेजमेंट ठीक हो।

सफल नेता बनने के लिए मंचतोड़ भाषण की लगातार प्रैक्टिस करें। आवाज़ फटे बांस की तरह लेकिन दमदार होनी चाहिए। किसी व्यंग्यकार से जनता के मुद्दे लिखवाकर मंच पर ज़ोर-ज़ोर से बोलें।

काम से ज़्यादा बेकाम की बातें और विपक्षियों की ऐसी-तेसी करें। जु़मले, व्यंग्य, कॉमेडी और द्विअर्थी डायलॉग ज़्यादा शामिल होने से नई पीढ़ी के युवाओं में माहौल अच्छा बनता है।

फिल्म राजनीति का दृश्य, फोटो साभार- YouTube

चुनाव के वक्त जो भी आए उसका जमकर स्वागत करें। वह जो भी कहे सबका ज़िम्मा लें और सबको हां कहें। अगर कोई गली बनवाने को कहे तो आगे बढ़कर हाइवे बनवाने का वादा करें।

ज़मीं पर घर मांगे तो चांद पर ताजमहल दिलाने का वादा करें। वादा करते समय सिर्फ चुनाव जीतने की सोच रखें और चुनाव के बाद वादों को भूलकर एकदम मोटी चमड़ी का घाघ बन जाना है।

आज के दौर में यह सबसे ज़रूरी गुणों में से एक है। पिछले चुनाव में आपने जनता से हज़ारों वादे किए लेकिन अब पूरा करना तो दूर, याद तक नहीं है। ऐसे में लोगों के गुस्से को संभालने बातों को बदलने और पूरा ना होने की वजहों को गिनाने की कला होना बेहद आवश्यक है।

बेहतर होगा कि आप इसके लिए विपक्ष को या किसी स्वर्गीय नेता को ज़िम्मेदार ठहरा दें। कुछ मामलों में सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, मौसम, नदी और तालाबों को भी ज़िम्मेदार ठहरा सकते हैं, बशर्ते सामने नासमझ बैठा हो।

कहा जाता है कि चोर के 36 गुण होते हैं और नेतागिरी में गुणवान लोग ही सफल होते हैं। आपका आपराधिक, असामाजिक, अनैतिक और दबंग प्रवृति का होना सफलता के ग्राफ को तेज़ी से ऊपर ले जाएगा।

कई बार ऐसे हालात बनते हैं, जब मसले कर्म से ज़्यादा कुकर्म से हल होते हैं। दूसरा जनता भी डरी रहती है और अकसर डर सबकुछ आसान कर देता है। अगर आप खुद आपराधिक प्रवृति में ढल नहीं सकते तो ऐसे लोगों से सांठ-गांठ ज़रूर रखें।

अय्याशी नेतागिरी के प्रमुख अस्त्रों में से एक है। इसकी वजह से कई बार बड़े-बड़े काबिल लोगों से संगत होती है। साथ ही पुछल्लों की एक भीड़ तैयार होती है, जो आपके लिए हमेशा तत्पर रहे। जिसके पीछे भीड़, चम्मचे या गाड़ियों का काफिला नहीं, उसे राजनेता कहलाने का कोई हक नहीं है। हां, इस मामले में मीडिया मैनेजमेंट अहम चीज़ है।

अगर आपने क्षेत्र में एक ठीक-ठाक पोज़िशन बना ली है और बड़ा नेता बनने का ख्वाब संजोने लगे हैं, तो यह गुण आपके अंदर होना बेहद आवश्यक है। इससे आपका चेहरा लाइमलाइट में आता है और पार्टी में लोग आपको जानने लगते हैं। मीडिया आपको फायरब्रांड का दर्ज़ा देगा और आप देखते ही देखते राजनीति के हवाई सफर पर होंगे।

नेता बनने के लिए आपके पास लोगों को विभिन्न मसलों पर उल्लू बनाने की कला आवश्यक है। कुछ नहीं तो, आप खुद को अपनी जाति, वर्ग या समुदाय का हितैषी ज़रूर सिद्ध करें।

इसके लिए आप उनकी छोटी-छोटी मीटिंग करके उनके जातिगत हित के मसलों पर बढ़ा-चढ़ाकर बात करें। उनके दिमाग में यह बात बैठा दें कि आपका विधायक, सांसद या मंत्री होना ही असली जाति का विकास है।

किसी भी संगठन में ऊपर तक जाने के लिए ऊपर वालों के पैर पकड़ने ही पड़ते हैं। बड़ा नेता बनने के लिए जी-हजू़री या चापलूसी एक कारगर माध्यम है। कई बार ज़मीन पर मेहनत करने वाले लोग खुद धूल फांकते और नेताओं पर फूल फेंकते ही रह जाते हैं, जबकि कुछ भक्ति, वंदना या चढ़ावे के दम पर रातों-रात माननीय बन जाते हैं।

बहुत से नेता 30 वर्षों से चुनाव जीत रहे हैं लेकिन उन्हें क्षेत्र से बाहर कोई नहीं जानता। इसके विपरीत आप संगठन में अपनी काबिलियत के दम पर बड़ा नेता बनना चाहते हैं तो हमेशा विपक्ष के बड़े नेताओं को टारगेट करें।

रूटीन बनाकर बड़े नेताओ के खिलाफ मिडिया में अनाप-शनाप बोलें, ऐसा करते समय अपनी हैसियत भूल जाएं। बहुत जल्द ही आप मीडिया के चहेते और पार्टी में ऊपर तक मजबूत पहचान बना पाएंगे ।

गिरगिट से भी तेजी़ से रंग बदलने की कला होना आपके राजनैतिक भविष्य को सदा सुरक्षित बनाएगा। राजनीति में सफल होने के लिए जिस दल या विचारधारा के साथ रहें, हमेशा उसके ही रहें लेकिन कभी गुलाम ना बनें।

जब भी कभी लगे कि पार्टी डूब रही है या पार्टी में अपनी ज़मीन खिसक रही है तो चुपके से किसी बढ़िया विपक्षी पार्टी के साथ सांठ-गांठ कर लें। जिसे कल गाली दे रहे थे, उसकी स्तुति एवं जिसकी स्तुति कर रहे थे, उसको गाली देना प्रारम्भ कर दें। सीधे शब्दों में कहें तो, गाली और स्तुति का फॉर्मेट वही रहेगा, सिर्फ नाम बदल लें।

मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह आलेख पढ़कर आपकी बांछे खिल जानी हैं, धन्यवाद की कोई ज़रुरत नहीं है। आप माननीय, सर्वमाननीय और गणमाननीय बने यही मेरी हार्दिक कामना है। बस जब बड़ा नेता बने तो भाषण लिखा लेना। जब आपके यहां बाढ़ आ जाए तो हमारे सूखेपन और भूखेपन को याद कर लेना।

(यह एक व्यंग्य है, इसे दिल पर लें , दिमाग पर नहीं )

जय हिन्द !

 

 

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