महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों के परिणाम आ चुके हैं, जनता ने अपना प्रतिनिधि चुन लिया है और इसके साथ ही अपना संदेश भी दे दिया है।
इधर कुछ राज्यों में विधानसभा उपचुनाव भी हुए हैं यहां भी अप्रत्याशित सा ही कुछ हुआ है। उत्तर भारतीय राज्य होते हुए भी उपचुनाव में जहां एआईएमआईएम (AIMIM) को एक सीट प्राप्त हुई है वहीं सुशासन बाबू के नाम से विख्यात माननीय नीतीश कुमार की अगुवाई वाली पार्टी को अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हुए हैं।
90 में 46 के गणित में उलझी भाजपा
केंद्र में दो बार से अपना आधिपत्य जमा कर हरियाणा की 90 में 65 सीटों पर ताल ठोकने वाली, विज्ञापनों में अगली बार बहुमत की सरकार बनाने का दावा करने वाली और न्यूज़ चैनलों पर 2 दिन पहले ही एग्ज़िट पोल के हिसाब से सरकार बना लेने वाली भाजपा 90 में 46 के गणित में उलझी पड़ी है।
स्थिति यह है कि 4 वर्ष पहले की निर्मित पार्टी के मात्र 6 माह की मेहनत की बदौलत हरियाणा का गणित बदल गया है। जेजेपी के दुष्यंत चौटाला की अगुवाई में चुनाव लड़ने से एक हद तक कुछ जाति विशेष के वोट पर असर पड़ा है और अब भाजपा वहां जोड़, तोड़, गठजोड़ में जुट गई है।
वैसे भले ही अब अपनी तोड़जोड की नीति हेतु जाने जाने वाले अमित शाह ने दुष्यंत चौटाला को उपमुख्यमंत्री पद सौंप कर सरकार बनाने की तैयारी कर ली हो लेकिन एक शिशु पार्टी को बराबर का हक देने की बात एक प्रौढ़ पार्टी कैसे पचा सकती है? यह थोड़ा चिंतन का विषय है। यह बात तो शीर्ष नेताओं को खल ही रही होगी कि कैसे 4 दिन का बच्चा हम जैसे बड़े सम्मानित और राजनीति में बाल पका चुके नेताओं पर शासन करेगा।
खैर, यह तो राजनीति है जहां सब कुछ संभव है लेकिन संभव तभी है जब जनता सम्मान कर रही हो।
40 सीटों के साथ 6 अन्य सीटों को राजनीतिक हथकंडे अपना कर भाजपा भले ही अपने पक्ष में कर ले लेकिन खट्टर सरकार की विफलताओं और केंद्र सरकार के मुद्दे से दूर हटकर छवि गढ़ने के रवैये को ध्यान में रखकर, भाजपा को इसे अपनी राजनीतिक हार मान लेनी चाहिए तथा पुनः मुद्दे की बात पर वापस आना चाहिए।
जनता समझ चुकी है
भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार के साथ कई राज्यों की सरकार ने काम के नाम पर बस विज्ञापन और लोगों में फोटो गढ़ा है। पार्टी के चुनावी हिंदुत्व को जनता जान चुकी है।
प्रज्ञा ठाकुर को आगे लाकर बाद में उन्हीं के बयानों पर माफी मांगकर और लगातार हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचारों पर चुप्पी साधने वाली भाजपा ने अपने छुपे चेहरे को साफ प्रदर्शित कर दिया है। वहीं दूसरी ओर समाचार चैनलों पर अपना एकाधिकार प्रस्तुत करने की कोशिश को भी जनता समझ चुकी है।
हरियाणा में इस प्रकार के चुनाव परिणाम ने जनता के आक्रोश को प्रदर्शित कर दिया है। संस्थाओं का सतत निजीकरण, चुनाव के पहले महंगाई पर बड़े भाषणों के बाद अपनी सरकार में महंगाई के बढ़ते स्वरूप पर चुप्पी ने सरकार की विफलताओं को प्रदर्शित किया है।
चुनाव में केवल राष्ट्रीय सुरक्षा, भारत पाकिस्तान और राम मंदिर के मुद्दों को रखना, सामाजिक मुद्दे, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार पर शांत रहना कहीं ना कहीं जनता को खल रहा है। वहीं अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट से बड़े स्तर के व्यापारियों को भी नुकसान हो रहा है।
इन स्थितियों से यह साफ दिख रहा है कि जिस प्रकार जिस उम्मीद से जनता ने पार्टी को शिखर पर आसीन किया है, कहीं उतनी ही तेज़ी से भाजपा को बाहर ना होना पड़े।
वैसे हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव के ठीक पहले हुए हिन्दू नेताओं की हत्याओं ने भी चुनाव परिणाम पर असर डाला है। एक तरफ जहां हिन्दू नेता कमलेश तिवारी की हत्या से पूरा हिन्दू वर्ग आक्रोशित था, वहीं दूसरी ओर देश के प्रधान सेवक उन लोगों के साथ सेल्फी ले रहे थे, जिन्हें देश मे असहिष्णुता की अनुभूति होती है और जो कठुआ कांड पर पूरे हिन्दू समाज को बलात्कारी कह देते हैं। ऐसे में चुनावों पर असर पड़ना लाज़मी था।
इस लिए अब भाजपा के लिए समझने और संभलने का समय है तथा विज्ञापनों की आड़ से बाहर आकर समाज के साथ खड़े होने का समय है। डिजिटल इंडिया को बेरोजगारी और भुखमरी से दूर करने की घड़ी है, समाचार चैनलों पर सच्चाई छुपाने और सोशल मीडिया पर खर्च करने से बेहतर है कि युवाओं की शिक्षा और नागरिकों के स्वास्थ्य पर धन खर्च हो।