पिछले दिनों बिहार सहित देश के प्रमुख हिस्सों में हुई भीषण बारिश के बाद हुए जल जमाव और बाढ़ की स्थिति ने लोगों के जीवन में जिस तरह की फज़ीहत पैदा की, उससे उबरने में उन्हें लंबा वक्त लगेगा।
कुछ लोग इसे प्राकृतिक आपदा बता रहे हैं, तो कुछ इसके लिए सरकार और प्रशासन को दोषी ठहरा रहे हैं कि उन्होंने समय रहते शहर की साफ-सफाई नहीं करवाई, जिस कारण लोगों को इतनी मुसीबत झेलनी पड़ी।
सच तो यह है कि इस मुसीबत की असल जड़ प्लास्टिक कचरा है, जिसने नदियों, नालों और सीवरेज को जाम कर दिया और मिट्टी के पानी सोखने की क्षमता को भी कम कर दिया। इसके साथ ही यह निरंतर हो रहे जलवायु परिवर्तन के लिए भी उत्तरदायी है।
अत: अब बेहद ज़रूरी हो गया है कि हम इस दिशा में गंभीरता से विचार और प्रयास करें। इसे देखते हुए वर्तमान में दुनिया के कुल 40 से भी अधिक देशों ने प्लास्टिक के उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा रखा है।
साथ ही लोगों को प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करने और इसके बढ़ते उपयोग को रोकने के लिए 3 जुलाई 2009 से पूरी दुनिया में ‘इंटरनैशनल प्लास्टिक बैग फ्री डे’ मनाने की शुरुआत की गई है।
पिछले कुछ समय से बिहार और झारखंड सहित भारत के कई अन्य राज्यों में सिंगल यूज़्ड प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है मगर इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है।
400 साल में भी पूरी तरह नष्ट नहीं हो पाता है प्लास्टिक
दरअसल, प्लास्टिक आज हमारी ज़िंदगी में इस तरह से रच-बस गया है कि हम स्वयं इसे दूर करने की सोच ही नहीं पाते। वर्तमान में अमूमन हर चीज़ के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है फिर चाहे वह दूध, तेल, घी, आटा, चावल, दाल, मसाले, कोल्ड ड्रिंक, शर्बत, स्नैक्स, दवाएं, कपड़े हो या ज़रूरत की अन्य दूसरी चीजे़ं। इन सभी में प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है।
प्लास्टिक के व्यापक उपयोग की एक बड़ी वजह यह भी है कि टिन के डिब्बों, कपड़े के थैलों और कागज के लिफाफों के मुकाबले यह आकर्षक और सस्ता होता है लेकिन आपको यह जानना चाहिए कि प्लास्टिक कचरे का दोबारा उत्पादन आसानी से संभव नहीं होता है।
सिर्फ 10% प्लास्टिक कचरा ही रिसाइकिल किए जाने योग्य होता है और बाकी का 90% कचरा पर्यावरण के लिए नुकसानदेह साबित होता है।रिसाइक्लिंग की प्रक्रिया भी प्रदूषण को बढ़ाती है क्योंकि रिसाइकिल किए गए या रंगीन प्लास्टिक थैलों में ऐसे रसायन होते हैं, जो ज़मीन में पहुंच कर मिट्टी और भूगर्भीय जल को विषैला बनाते हैं।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगी कि प्लास्टिक की एक बोतल को अपघटित (Decompose) होने में करीब 400 वर्ष लगते हैं।
आखिर प्लास्टिक है क्या?
प्लास्टिक एक प्रकार का पॉलिमर है, जिसका निर्माण पेट्रोलियम से प्राप्त रसायनों जैसे- नायलॉन, फिनॉलिक, पॉलिस्ट्राइन, पॉलिथाइलिन, पॉलिविनायल, क्लोराइड, यूरिया फार्मेलिडहाइड तथा ऐसे अन्य कई पदार्थों के मिश्रण से होता है।
इतने सारे रसायनों से बने पदार्थ में जब हम खाने-पीने की चीजे़ं रखते हैं, तो उनमें से कुछ रसायन खाद्य पदार्थों के साथ प्रतिक्रिया करके व्यक्ति के शारीरिक और बौद्धिक विकास को नुकसान पहुंचाते हैं।
हकरीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व इंग्लैंड के एक धातुविज्ञानी अलेक्जेंडर पार्किस ने प्लास्टिक की खोज की थी। हालांकि भारत में प्लास्टिक का प्रवेश लगभग 60 के दशक में हुआ मगर इसके साथ ही पिछले चार दशकों में ही ठोस प्लास्टिक कचरा प्रबंधन भारत के लिए एक बड़ी समस्या बन गया। खासतौर से एक बार प्रयुक्त होने वाला प्लास्टिक कचरा (Single Use Plastic Waste), पर्यावरण के लिए सर्वाधिक नुकसानदायक है।
आपको पता होना चाहिए कि-
- भारत में प्रतिदिन 26 हज़ार टन प्लास्टिक कचरा उत्पादित होता है।
- इनमें से करीब 11 हज़ार टन प्लास्टिक दोबारा यूज़ किए जाने लायक नहीं होता है।
- देश में प्लास्टिक की सालाना खपत 1.70 करोड़ टन से ज़्यादा है और हर भारतीय सालाना औसतन 11 किलो प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं।
- भारत में प्लास्टिक कचरे के उत्पादन में दिल्ली पहले स्थान पर है जबकि कोलकाता और अहमदाबाद क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।
- फिक्की द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार प्लास्टिक का सर्वाधिक इस्तेमाल पैकेजिंग इंडस्ट्री में किया जाता है।
- वर्ष 2017 में हुए एक अध्ययन के अनुसार भारत में प्लास्टिक कचरे से सबसे ज़्यादा प्रदूषित होने वाली नदी गंगा है, जिसे हमने ‘माँ’ की उपाधि से नवाज़ा है।
दुनिया के 40 से अधिक देशों में बैन है प्लास्टिक
दरअसल, प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है, जो सहज रूप से मिट्टी में घुल-मिल नहीं सकता और इसे जलाने से जो जहरीली गैस निकलती है, वह हवा को प्रदूषित करती है। वहीं दूसरी तरफ मवेशियों के पेट में जाने से यह जानलेवा साबित होता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, प्लास्टिक के डिब्बों में खाने-पीने का सामान रखने से पहले उसे ठंडा रखना चाहिए वरना प्लास्टिक के रासायनिक पदार्थ खाने में मिल जाते हैं और शरीर के अंदर पहुंचकर कैंसर और आंत संबंधी कई बीमारी पैदा कर सकते हैं।
इन बर्तनों की सफाई का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए और नुकसान से बचने के लिए इन्हें हमेशा गर्म पानी में धोकर ही इस्तेमाल करना चाहिए।
विभिन्न शोध अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि प्लास्टिक के बोतल और कंटेनर के इस्तेमाल से कैंसर हो सकता है। प्लास्टिक के बर्तन में खाना गर्म करना और कार में रखे बोतल का पानी कैंसर की वजह हो सकते हैं।
कार में रखी प्लास्टिक की बोतलें जब धूप या ज़्यादा तापमान की वजह से गर्म होती हैं, तो प्लास्टिक में मौजूद नुकसानदेह केमिकल डाइऑक्सिन का रिसाव शुरू हो जाता है, जो पानी में घुलकर हमारे शरीर में पहुंचता है और महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को बढ़ाता है। इसके साथ ही यह महिलाओं तथा पुरुषों में इन्फर्टिलिटी की समस्या के लिए भी काफी हद उत्तरदायी है।
प्लास्टिक रिसाइक्लिंग के लिए किए जा रहे हैं प्रयोग
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक देश में सबसे ज़्यादा प्लास्टिक कचरा बोतलों से आता है। भारतीय रेलवे के अनुसार भारत में प्रत्येक दिन प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की औसत खपत सात से आठ किलोग्राम है, जिसमें अकेले रेलवे में पानी की प्रयुक्त बोतलों का योगदान 5% है। इसे ध्यान में रखते हुए कई राज्यों, संस्थानों एवं संगठनों ने प्लास्टिक के दोबारा इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जैसे-
- भारतीय रेलवे के पूर्व मध्य रेलवे जोन द्वारा अपने चार प्रमुख स्टेशनों (पटना जंक्शन, राजेंद्र नगर, पटना साहिब और दानापुर रेलवे स्टेशन) पर शुरू किए गए अपने एक अनूठे प्रयोग के तहत प्लास्टिक की प्रयुक्त हो चुकी बोतलों को यात्रियों से पांच रुपये में खरीदने के लिए वेंडिंग मशीनें लगाई हैं और रेलवे पानी की इन खाली बोतलों का उपयोग टी-शर्ट और टोपी बनाने के लिए कर रहा है।
- हाल में झारखंड की राजधानी रांची में भी प्लास्टिक बोतलों से बनी टी-शर्ट और टोपियों की एक प्रदर्शनी लगाई गई थी, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया था।
- हिमाचल प्रदेश की बिड पंचायत के छह गाँवों में पिछले नौ वर्षों से प्लास्टिक से बनी ईंटो का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे इन गाँवों को प्लास्टिक फ्री बनाने में मदद मिली है।
- हैदराबाद, उप्पल के स्वरूप नगर कॉलोनी में बैंबू हाउस कंपनी द्वारा देश का पहला रिसाइकल्ड यानी पुनर्नवीनीकृत बस स्टॉप बनाया गया है, जिसे प्लास्टिक की बोतलों को रिसाइकल करके बनाया गया है।
- पानीपत और गुजरात में प्लास्टिक की खाली बोतलों से मखमली कालीन बनाने का काम किया जा रहा है, जिसे पैट यार्न नाम दिया गया है और यह पूरी तरह से इको फ्रेंडली है।
क्या कर सकते हैं हम?
पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर बनाने की ज़िम्मेदारी केवल सरकार और पर्यावरण संस्थाओं की ही नहीं है बल्कि देश के एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते पर्यावरण के प्रति हमारी भी कुछ खास ज़िम्मेदारियां हैं। अपनी कुछ आदत बदलकर और खुद पर नियंत्रण रख कर हम और आप भी पर्यावरण को होने वाली हानि को काफी हद तक कम करने में सहयोग कर सकते हैं।
खास तौर से घर की महिलाएं इस मुसीबत को खत्म करने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। महिलाओं को अब केवल होम मेकर नहीं, बल्कि ‘चेंज मेकर’ बनना होगा क्योंकि ज़ाहिर-सी बात है कि आप हमेशा अपने परिवार के लिए एक स्वस्थ्य और खुशहाल जीवन चाहती होंगी ना कि एक बीमार और दुखी ज़िंदगी।
अत: अपने साथ-साथ अपने घर के अन्य सदस्यों की आदतों को बदलने में आपकी पहल कारगर साबित हो सकती है। आपको बस इतना ही करना है कि-
- जब भी आप या घर का कोई सदस्य कहीं बाहर निकले तो वह अपने साथ एक कपड़े या जूट का थैला लेकर निकले ताकि अगर आपको रास्ते में कुछ खरीदने का मन हो जाए तो इसके लिए प्लास्टिक बैग कैरी ना करना पड़े।
- कपड़े और किराना आदि की पैकिंग वाले प्लास्टिक बैग्स को संभाल कर रखें ताकि ज़रूरत पड़ने पर उन्हें दोबारा इस्तेमाल कर सकें।
- जहां तक संभव हो सिंगल यूज़्ड प्लास्टिक जैसे- प्लास्टिक के पतले ग्लास, प्लेट, स्ट्रॉ और इस तरह के अन्य सामानों के इस्तेमाल से परहेज करें क्योंकि ऐसे प्लास्टिक की रिसाइकिलिंग नहीं हो पाती और मिट्टी और पानी में सड़कर यह पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाते हैं।
- जहां कहीं भी आप प्लास्टिक का विकल्प यूज़ कर सकती हैं, वहां ज़रूर करें। जैसे- प्लास्टिक की चम्मच से खाने के बजाय स्टील की चम्मच से खाना खाएं। प्लास्टिक के लंच बॉक्स या वॉटर बोतल के बजाय स्टील के बॉक्स या बोतल यूज़ करें।
- रसोई घर के सामानों को रखने के लिए प्लास्टिक के बजाय स्टील या शीशे के जार का उपयोग करें।