लिखने में जानबूझकर देरी की, इंतज़ार कर रहा था कि आलोचनाओं और समर्थन का ज्वार उतरे तो कुछ काम की बात की जाए। पिछले चार-पांच दिनों के दौरान तीन चीज़ें काफी चर्चा में रहीं।
- तमिलनाडु का महाबलीपुरम,
- चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भारत दौरा और
- कूड़ा बीनते प्रधानमंत्री।
ये तीनों चीज़ें आपस में जुड़ी हुई हैं लेकिन इन तीनों में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा समुद्र तट पर कूड़ा बीनने के घटनाक्रम को सबसे अधिक चर्चा मिली। पिछले पांच दिन से भारत के प्रधानमंत्री को सोशल मीडिया पर निशाना बनाया जा रहा है। तरह-तरह के तंज कसे जा रहे हैं, उनकी आलोचना के लिए कई तरह के तथ्य खोजकर लाए जा रहे हैं।
Plogging at a beach in Mamallapuram this morning. It lasted for over 30 minutes.
Also handed over my ‘collection’ to Jeyaraj, who is a part of the hotel staff.
Let us ensure our public places are clean and tidy!
Let us also ensure we remain fit and healthy. pic.twitter.com/qBHLTxtM9y
— Narendra Modi (@narendramodi) October 12, 2019
कुछ ने तो हद ही कर दी, कूड़ा बीनने वाले वीडियो को रिवाइंड करके (उल्टा) करके दिखा दिया कि प्रधानमंत्री ने पहले कूड़ा फैलाया, उसके बाद कूड़ा बीना। प्रधानमंत्री के कूड़ा बीनने की घटना पर जो विलाप चल रहा है, उसने यह दिखाया है कि हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग में कितनी मेधा है। इनके अंदर कितना पाखंड भरा हुआ है और मानव जीवन के लिए सफाई जैसी सबसे ज़रूरी चीज़ पर कितनी नकारात्मक सोच रखते हैं।
अवसरों-अधिकारों से वंचित करती है गंदगी
हमारे देश में आज भी बहुत बड़ा तबका ऐसा है, जिसके जीवन का हिस्सा गंदगी है। इस तबके को इस बात की जानकारी नहीं है कि गंदगी जीवन के लिए कितना बड़ा अभिशाप है। असल में इस देश में लोकतंत्र तो 70 साल पहले ही स्थापित हो गया था लेकिन सरकारें, संस्थाएं ऐसे हाथों में रहीं, जिसकी नज़र इस तबके तक पहुंची ही नहीं।
दुनिया को दिखाने के लिए गरीबों के लिए योजनाएं तो बनती रहीं लेकिन ये योजनाएं उच्च वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग, नेताओं और अफसरों के लिए चारागाह बनी रहीं। इस वंचित तबके को कोई यह बताने वाला नहीं रहा कि गंदगी आपसे कई अवसरों-अधिकारों को छीन रही है। सबसे बड़ा अधिकार तो जीने का अधिकार है। गंदगी वंचित तबके से जीने का अधिकार भी छीन रही है।
दुनियाभर में लाखों बच्चे सिर्फ इसलिए मर जाते हैं, क्योंकि वे हाथ नहीं धोते। ये समस्या भारत और दक्षिण एशिया में भयावह रूप से मौजूद है। सोचिए स्वच्छता के दूसरे पहलुओं तक इस वंचित तबके की पहुंच ही नहीं है, तो हालात कितने विषम हो सकते हैं। गंदगी जनित और संक्रामक रोगों से भी भारत समेत दुनिया में लाखों लोग अपनी जान गंवा देते हैं। इनमें कॉलरा, डायरिया, टाइफाइड, हेपेटाइटिस, पोलियो जैसी घातक बीमारियां शामिल हैं।
भारत की स्थिति की बात करें तो स्वच्छता के मामले में भारत, बांग्लादेश से भी पीछे रहा है। ऐसी स्थिति में कूड़ा उठाते प्रधानमंत्री की आलोचना बताता है कि साफ-सफाई के प्रति हम लोग बिल्कुल भी संवेदनशील नहीं हैं।
दुनियाभर में हालात बेहद खराब
विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में दो अरब लोगों की पहुंच साफ-सफाई की प्राथमिक सुविधाओं तक भी नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनियाभर में 1.1 बिलियन लोग (ग्लोबल पॉपुलेशन का 15 प्रतिशत) खुले में शौच करते हैं। भारत में 626 मिलियन लोग खुले में शौच करते हैं। हालांकि ये आंकड़ें काफी पुराने हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन अपनी वेबसाइट पर लिखता है कि खराब सफाई व्यवस्था अच्छे जीवन की संभावनाओं को कम करता है। सामाजिक और आर्थिक विकास में बाधा बनता है। शैक्षणिक अवसर भी इसकी वजह से घटते हैं और यौन शोषण की आशंकाएं बढ़ जाती हैं।
स्वच्छ भारत अभियान
जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और भारत के प्रधानमंत्री बनने के लिए अभियान पर थे, उन्होंने एक शैक्षणिक संस्थान में अपने भाषण के दौरान कहा था कि घर में पहले शौचालय फिर देवालय। उनके आक्रामक अभियान का नतीजा रहा कि तमाम भारत ने उनमें संभावनाएं देखीं और उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया।
उन्होंने अपनी कही बात पर अमल किया और पूरे भारत में गंदगी के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। देशभर में शौचालय बनवाए गए, उनके उपयोग के लिए लोगों को प्रेरित किया गया। सबसे बड़ी बात रेलवे में भी ऐसी व्यवस्था की गई कि यात्री खुले में शौच ना करें। ट्रेनों में बायो टॉयलेट लगवाए गए। स्वच्छता का प्राथमिक चरण निपट जाने के बाद स्वच्छता के दूसरे उपायों पर अब सरकार फोकस कर रही है।
प्रधानमंत्री ने इसके प्रचार का ज़िम्मा खुद उठाने के साथ-साथ कई नामचीन लोगों को भी इस अभियान में जोड़ा है। इसमें खिलाड़ी, अभिनेता और दूसरे क्षेत्रों से जुड़ी नामचीन हस्तियां हैं, जिससे इस अभियान से जुड़ने के लिए आम लोग भी प्रेरित हो सकें।
आम लोगों ने सफाई को जीवन का हिस्सा बनाया
स्वच्छता अभियान और नरेंद्र मोदी के सफाई के लिए किए जा रहे प्रयासों की विरोधी भले ही आलोचना करें लेकिन ये काफी असरदार रहा है। आम आदमी ने अपनी दिनचर्या में साफ-सफाई को स्थान देना शुरू कर दिया है। वह गंदगी फैलाने से बचने लगा है। लोग दूसरों को भी गंदगी फैलाने पर टोक देते हैं। अभियान का असर यह हुआ है कि रेलवे स्टेशन और प्लैटफॉर्म साफ-सुथरे दिखने लगे हैं। लोग अपनी दुकानों, प्रतिष्ठानों में कूड़ादान रखने लगे हैं। इस अभियान से संभव है कि हमारे देश-समाज से गंदगी का तमगा हट जाए और एक सुखी, स्वस्थ और समृद्ध देश की तरफ हम अग्रसर हो सकें।
गंदगी हटे तो गरीबी भी हटे
इस देश से यदि हम गंदगी हटाने में सफल रहें तो जो समुदाय वंचित हैं, निचले पायदान पर जीवन का निर्वाह कर रहे हैं, उनके जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाना संभव होगा। साफ-सफाई का दायरा जैसे-जैसे बढ़ता जाएगा, गरीबी का दायरा भी घटता जाएगा। इसकी वजह है, निचले तबके के लोगों के स्वास्थ्य में सुधार होगा, बीमारियों से छुटकारा मिलेगा, जिससे उनकी उत्पादक क्षमता बढ़ेगी। दवाओं पर खर्च घटेगा। शिक्षा, सामाजिक और आर्थिक स्तर में बदलाव होगा। इसके साथ देश में विदेशी पर्यटन, निवेश की भी बढ़ोत्तरी होगी, जिससे लोगों के जीवन में बदलाव के अधिक अवसर आएंगे।
मोदी कैमरे पर क्यों
मोदी के आलोचकों ने एक सवाल उठाया कि नरेंद्र मोदी का यह पब्लिसिटी स्टंट है। उनकी आधी बात से तो सहमत हुआ जा सकता है। मोदी का समुद्र तट पर कूड़ा बीनना पब्लिसिटी तो है लेकिन स्टंट नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी असल में देश में प्लॉगिंग का चलन बढ़ाना चाह रहे हैं, यदि यह चलन में आ गया तो स्वच्छता अभियान की सफलता की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।
अब यदि प्रधानमंत्री समुद्र तट से कूड़ा उठाने की फोटो, वीडियो जारी नहीं करेंगे तो फिर उसकी जानकारी लोगों को कैसे होगी। मोदी सफाईकर्मी तो हैं नहीं कि वे कूड़ा उठाएं और पब्लिसिटी ना करें। उन्होंने यदि अपने व्यस्त दिनचर्या से कुछ मिनट निकालकर एक वीडियो जारी किया है तो उसका उद्देश्य आम जनजीवन में बदलाव लाना ही है, इसलिए यदि इसका प्रचार प्रसार नहीं किया जाएगा तो फिर उद्देश्य कैसे पूरा होगा।
महाबलीपुरम और जिनपिंग दौरे पर कोई चर्चा नहीं
प्रधानमंत्री के कूड़ा बीनने के घटनाक्रम की जैसी आलोचना की गई, उससे यह उम्मीद करना बेइमानी है कि ये तथाकथित पढ़े-लिखे लोग महाबलीपुरम की प्रासंगिकता और जिनपिंग के भारत दौरे की स्वस्थ आलोचना कर पाएंगे। दौरे के क्या मायने होंगे, भारत को क्या फायदा होगा, दक्षिण एशिया, एशिया और विश्व की राजनीति, बाज़ार पर इसके क्या असर पड़ेंगे, दो ऐसे देशों के प्रमुखों की अनौपचारिक मुलाकात क्या मायने रखती है, इसका विश्लेषण करने की क्षमता शायद ही वे रखते हैं।
जमात भारत-पाकिस्तान-चीन का त्रिकोण, सीमा विवाद, सैन्य तनाव, भूटान, नेपाल, वियतनाम, मंगोलिया, चीनी ताइपे, भारत-जापान, भारत-अमेरिका संबंधों पर ये मुलाकात कितना असर डालेगी, मोदी विरोधी जमात इतने पेचीदा विषय पर तो सोचने की ज़हमत भी नहीं उठा सकती।