पीरियड या माहवारी केवल शब्द नहीं हैं बल्कि यह एक महिला की ज़िंदगी का वह हिस्सा है जिससे हर एक महिला या लड़की जूझती है। हम अगर अपनी सोसाइटी की बात करें तो यह आज भी उतना परिपक्व या प्रगतिशील नहीं है कि वह माहवारी जैसे मुद्दे पर अपनी राय रख सके।
यहां तो आज भी महिलाओं को तरह-तरह के अभद्र शब्दों से संबोधित किया जाता है, जिससे उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचे। इस वजह से ना हमारे समाज में, ना व्यवहार में और ना नीतियों में महिलाओं की समस्याओं और मुद्दों को सही जगह मिल पाती है।
इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है स्वच्छ भारत अभियान। हाल फिल्हाल में नरेंद्र मोदी द्वारा यह दावा किया गया है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत उन्होंने WHO के मानकों को पूरा करते हुए देश को लगभग 100 प्रतिशत खुले में शौच मुक्त बनाया है। इस अभियान के तहत भी महिलाओं के सम्मान को अहमियत दी गई लेकिन यह सारी कहानी एक ही जगह घूमती रही।
शौचालयों की बात करूं तो मेरी जैसी करोड़ों लड़कियां हैं जिन्हें कभी ना कभी शौचालयों की परेशानी झेलनी पड़ी है और समय अगर पीरियड्स का हो तो फिर उन हालातों के कष्ट को हम ही जानते हैं।
पीरियड और सफर का अनुभव
देश में शौचालयों के हाल और पीरियड के समय होने वाली दिक्कतों के यूं तो मेरे पास ढेर सारे किस्से हैं लेकिन एक किस्सा मेरी दोस्त के साथ है जिसे मैं साझा करना चाहती हूं।
यह उस वक्त की बात है जब हम ट्रेन से सफर कर रहे थे। मैं और मेरी फ्रेंड कुछ दिनों के लिए घुमने निकले थे क्योंकि हमारी परीक्षाएं समाप्त हो गई थी और अब हमारा मूड कहीं घूमने का हो रहा था।
अपनी तैयारी के साथ हम दोनों ट्रेन से निकल पड़े। रास्ते में ही मेरी फ्रेंड को कुछ अजीब-सा लगा तो उसने मुझसे कहा,
यार, सुनना मुझे लगता है मेरे पीरियड्स आ गए हैं और मैं हड़बड़ी में पैड रखना भूल गई। तेरे पास है तो मुझे दे दे।
मैंने कहा,
हां है, इस बैग में।
उसके बाद उसने पैड ले लिया और वह चेंज करने चली गई।
टॉयलेट से आकर उसने बताया की टॉयलेट बहुत गंदा था। खैर, टॉयलेट के हाल से हम पहले भी वाकिफ थे इसलिए हमें ज़्यादा आश्चर्य नहीं हुआ। हम दोनों कुछ देर बैठकर इधर-उधर की बातें कर रहे थे। इसी बीच उसे बहुत तेज़ पेट दर्द होने लगा और वह बहुत बेचैन हो गई।
चूंकि वह मेरी बहुत खास फ्रेंड है, इसलिए उसे बेचैन देखकर मैं भी घबरा गई। मेरे पास कुछ दवाइयां थी, जो मैंने उसे खिला दी। उसके कुछ देर बाद उसे आराम मिल गया, मगर थोड़ी देर बाद उसे फिर पेट दर्द शुरू हुआ और अब तो पैड बदलने का भी वक्त हो गया था।
और मेरी फ्रेंड को गया UTI
मैं उसे लेकर टॉयलेट गई तो देखा वह हद से ज़्यादा गंदा था। मैंने उससे पूछा क्या तुमने पैड बदलने के अलावा भी इसका इस्तेमाल किया है तो उसने कहा हां। उसके इस जवाब से मैं समझ गई कि उसे अब Urinary Tract Infection हो जाएगा क्योंकि उसे बहुत जल्दी इन्फेक्शन हो भी जाता है।
जैसे-तैसे हम अपनी मंज़िल तक पहुंचे मगर उसका दर्द कम नहीं हो रहा था और उसे खड़े होने में भी परेशानी हो रही थी। पीरियड के कारण लंबे वक्त तक यूरिन को रोकना भी असंभव होता है मगर हम मजबूर थे। हमने सार्वजानिक शौचालय भी इस्तेमाल करना चाहा मगर वहां पानी ही नहीं था। अब आप ही बताइए पीरियड के दौरान बिना पानी के हम क्या करते?
मैंने कई बार ऐसी समस्याओं का सामना किया है जब शौचालय हैं तो गंदे हैं या फिर वहां पानी ही नहीं है।
होनी चाहिए सुधारात्मक पहल
मैं यह नहीं कह रही कि इस विषय पर विकास की बातें नहीं हुई है। आज तो लोग Menstrual Cup की बात भी करते हैं मगर ज़मीनी हकीकत को अगर हम देखें तो आज भी कई महिलाएं माहवारी के दौरान गंदा कपड़ा या राख यूज़ करने को मजबूर हैं।
अगर बात करें भारत की, तो यहां पीरियड के दौरान महिलाओं की स्थिति बहुत चिंताजनक है। मैं आपको बता दूं कि यहां आंकड़ों का मायाजाल अत्यंत भयावह है और अगर ज़मीनी हकीकत की बात की जाए तो वह और ज़्यादा डराने वाली है। दरअसल, ज़मीनी हकीकत को उसे ही पता होती है, जिसने उसे करीब से महसूस किया हो।
माहवारी स्वच्छता प्रबंधन पैड्स तक ही सिमट गया
कुछ समय पहले इस अभियान में Menstrual Hygiene अर्थात माहवारी के वक्त स्वच्छता के इंतज़ाम मुद्दे को भी जगह मिली है क्योंकि माहवारी के समय स्वच्छता बेहद ज़रूरी होती है। जिसके बाद Menstrual Hygiene Management अर्थात माहवारी स्वच्छता प्रबंधन की बात हुई मगर दुर्भाग्यवश वह पैड्स तक ही सिमट कर रह गई, जो बिलकुल भी नहीं होना चाहिए था।
आज केवल माहवारी के वक्त स्वच्छता के इंतज़ाम ना होने से महिलाओं को तरह-तरह की बीमारियों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे-
- माहवरी के दौरान शौचालय की व्यवस्था ना होने से एक महिला घंटो तक युरिनेट नहीं कर पाती है।
- शौचालय की गंदगी की वजह से तथा युरिनेट ना कर पाने की वजह से यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTI) हो जाता है।
- शौचालय में पानी की उचित व्यवस्था ना होने से माहवारी की दौर से गुज़रने वाली महिलाओं को अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है।
डस्टबिन ना होने की वजह से महिलाओं को अपने पैड्स को डिस्पोज़ करने की समस्या होती है। कभी-कभी तो इसी स्थिति के कारण महिलाएं अपने पैड्स फ्लश कर दिया करती हैं, जिससे और भी नुकसान देखने को मिलते हैं।
शौचालय में सुविधाएं नदारद
शौचालय का निर्माण अगर हो भी जाए तो वहां सुविधा नदारद रहती है। कहीं पानी नहीं होता है तो कहीं दरवाज़ा लॉक नहीं होता है। अब आप ही बताइए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बिल एवं मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की तरफ से मिला ‘ग्लोबल गोलकीपर्स अवॉर्ड’ बेमानी नहीं है।
नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइज़ेशन ने साल 2016 में आई अपनी रिपोर्ट में बताया था कि सिर्फ 42.5% ग्रामीण घरों के पास शौचालय के लिए पानी था। 2019 में ASER द्वारा एक रिपोर्ट release हुई जिसके अनुसार, 11.5 ग्रामीण स्कूलों में लड़कियों के लिए अगल से शौचालय नहीं है और 11.7% ऐसे हैं, जो प्रयोग करने की स्थिति में नहीं हैं।
मेरा मानना है कि भारत में जब तक महिलाओं के लिए पीरियड फ्रेंडली टॉयलेट्स का निर्माण नहीं होता तब तक खुले में शौच मुक्त भारत की बातें और महिलाओं के सम्मान की बातें धोखा है।
पीरियड को ध्यान में रखते हुए शौचालयों में सुविधाएं मुहैया करानी चाहिए। इसके साथ ही जो फिजिकली डिसेबल्ड महिलाओं के लिए भी पहल करनी चाहिए ताकि हर महिला पीरियड के दर्द में भी मुस्कुरा सके।