मुंबई में मेट्रो रेल साइट बनाने का काम शुरू कर दिया गया है जिसके लिए आरे में स्थित पेड़ों की कटाई कल रात से ही की जा रही है। हालांकि जैसे ही पेड़ों की कटाई शुरू हुई, तमाम प्रदर्शनकारी वहां पहुंच गए मगर फिर भी प्रकृति का दोहन करने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ा।
आज के समय में एक तरफ जहां व्यापक स्तर पर जलवायु परिवर्तन को लेकर तरह-तरह की चर्चा हो रही है, वहीं दूसरी ओर यदि धड़ल्ले से पेड़ों की कटाई शुरू हो जाए, फर्क तो पड़ता है। आज मुंबई के तमाम पर्यावरणविद लोग आरे को बचाने के लिए लड़ रहे हैं मगर सरकार और प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।
आरे 1949 में स्थापित मिल्क कॉलोनी है। मुंबई शहर का सबसे हरा भरा इलाका इसे कहा जा सकता है। आरे का वन क्षेत्र राजीव गाँधी नैशनल पार्क से सटा हुआ है। यह पूरा लगभग 1286 हेक्टेयर का इलाका है। नैशनल पार्क से सटे होने के कारण यहां पर कई बार इंसान और जंगली जानवर के बीच संघर्ष देखा गया है।
विवाद की वजह क्या है?
मुंबई में फेज़ 3 मेट्रो के लिए आरे में शेड बनाने की योजना है, जिसके लिए आरे कॉलोनी में लगभग 2600 से अधिक पेड़ काटे जाएंगे। मुंबई के पर्यावरण प्रेमी लोग इसका विरोध कर रहे हैं। पर्यावरण प्रेमी इसी के मद्देनज़र मुंबई हाईकोर्ट गए थे। हाईकोर्ट ने कहा कि हम आरे को जंगल घोषित नहीं कर सकते।
इस फैसले के तुरंत बाद आरे में पेड़ों की कटाई शुरू हो गई। कुछ लोग यह आरोप लगा रहे हैं जब यह मामला एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट में लंबित है फिर पेड़ों की कटाई इतनी जल्दी क्यों की गई?
एक पर्यावरणविद से बातचीत के दौरान उन्होंने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि आरे में मेट्रो शेड सिर्फ एक बहाना है। दरअसल सरकार बिल्डर एवं पूंजीपतियों के लिए आरे को खोलना चाहती है। मेट्रो शेड के ज़रिये यह काम आसान हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि अगर मेट्रो शेड ही बनाना था, तो कोई और जगह का चयन क्यों नहीं किया गया?
आरे में पेड़ों की कटाई मुंबई के लिए मुसीबत
बृह्नमुंबई महानगर पालिका के वृक्ष प्राधिकरण के सभी सदस्यों की पिछले हफ्ते हुई बैठक से पहले एक रिपोर्ट दी गई थी, जिसमें बताया गया था कि अगर आरे के जंगल काटकर कॉन्क्रीट निर्माण किया गया तो बारिश का पानी मीठी नदी में बह जाएगा, जिसके कारण एयरपोर्ट के इलाकों में बाढ़ की संभावना पैदा हो जाएगी।
आरे कॉलोनी में रहने वाले लोग बताते हैं कि आरे राजीव गाँधी नैशनल पार्क का ही एक हिस्सा है। इसलिए हमारी लड़ाई सिर्फ आरे के लिए नहीं है, बल्कि नैशनल पार्क को बचाने के लिए भी है।
जिस तरीके से धारा 144 लागू करते हुए पेड़ों की कटाई की जा रही है, वह शर्मनाक है। यह लेख लिखे जाने तक 1000 पेड़ काटे जा चुके हैं और यह विकास नहीं त्रासदी है। यहां तक कि कई लोगों को पुलिस ने हिरासत में भी ले लिया है, जिनमें पत्रकार भी शामिल हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि व्यापक स्तर पर जलवायु संकट की चर्चा के बीच मुंबई के आरे में पेड़ों की कटाई दुखद है।
लोगों को संदेह है कि मेट्रो शेड बनाने के नाम पर आरे कॉलोनी को बिल्डर एवं पूंजीपतियों के लिए खोला जा रहा है। ऐसी स्थिति में बहुत से लोग यह आरोप लगा रहे हैं प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र में पर्यावरण को लेकर जो भाषण दिया था, क्या वह एक इवेन्ट था? अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में पेड़ों की कटाई का क्या असर पड़ता है।