भारत को खुले में शौच मुक्त होने की बातें हम लगातार पढ़-सुन रहे हैं लेकिन आज बात खुले में शौच या शौचालयों की नहीं रह गई है। पिछले कुछ दिनों से इस अभियान ने हिंसा का रूप ले लिया है।
आपको बता दूं कि मध्यप्रदेश में पिछले कुछ दिनों में खुले में शौच को लेकर मासूम बच्चों की हत्या की घटनाएं सामने आई हैं। लगातार हो रही वीभत्स घटनाओं ने पूरे प्रदेश को शर्मसार किया है।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश ,भारत के उन राज्यों में शामिल है, जिन्हें खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया है। आईए एक नज़र डालें इन घटनाओं पर।
शिवपुरी में दलित बच्चों की हत्या
शिवपुरी ज़िले के भावखेड़ी गांव में 25 सितंबर को दलित परिवार के दो मासूम 10 वर्षीय अविनाश और 12 वर्षीय रोशनी की लाठियों से पीटकर इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि वे खुले में शौच कर रहे थे।
आश्चर्य तब हुआ जब शिवपुरी ज़िले के कलेक्टर अनुग्रह ने बताया कि भावखेड़ी गांव को 2018 में ही ओडीएफ अर्थात खुले से शौच मुक्त घोषित कर दिया गया था। फिर भी वास्तविकता यह है कि जिन परिवार के बच्चों की हत्या की गई, उनके घरों में आज तक शौचालय नहीं हैं। शौचालय नहीं होने के कारण ही बच्चे खुले में शौच करने गए थे और मार दिए गए।
कटनी में खुले में शौच कर रही दो बहनों से गंदगी उठवाई गई
मध्यप्रदेश के कटनी ज़िले के ढ़ीमरखेड़ा तहसील के अंतर्गत हरदी गाँव में 29 सितंबर को खुले में शौच कर रही दो सगी बहनों 8 वर्षीय मधु और 10 वर्षीय रजनी से ग्राम पंचायत सचिव अनिल दीक्षित ने उन्हीं की गंदगी उठवाई और गाली-गलौच किया।
पीड़ित बच्चियों के पिता लक्ष्मीकांत पटेल ने बताया कि वह बहुत गरीब है शौचालय बनवाने में सक्षम नहीं है। सरकारी योजना से शौचालय बनवाने के लिए ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत तक के चक्कर काटे,आवेदन दिया लेकिन शौचालय नहीं बना।जिसके कारण उसका परिवार को खुले में शौच के लिए जाने पर मजबूर है।सरकारी सिस्टम की लापरवाही के कारण उसे शर्मिंदगी के दिन देखने पड़ रहे हैं।
सागर के मासूम बच्चे की हत्या
मध्यप्रदेश के संभागीय मुख्यालय के गांव बगसपुर में खुले में पेशाब करने वाले 18 महीने के बच्चे को लेकर दो पक्षों में इतना विवाद हुआ कि 18 महीने के मासूम बच्चे की लाठियों से पीटकर हत्या कर दी गई।
इन तीनों घटनाओं की समीक्षा करने पर हैवानियत दिखाई पड़ती है। उन मासूम बच्चों का क्या दोष जिन्हें सरकारी सिस्टम के कारण क्रूरता का शिकार होना पड़ा।
ज़मीनी हकीकत से बहुत दूर है मध्य प्रदेश की स्वच्छता
मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों में अभी भी कई लोग खुले में शौच जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता के प्रति जनमानस की मानसिकता बदलने के लिए अभी और जनजागरण की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त शौचालय के साथ पानी भी आवश्यक होता है, जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी सुलभ नहीं है।
भारत के प्रधानमंत्री विश्व में श्रेष्ठ प्रधानमंत्री साबित हुए हैं और स्वच्छ भारत अभियान उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है लेकिन सरकारी सिस्टम ने केवल कागज़ों में ही भारत को स्वच्छ किया है। मध्यप्रदेश प्रदेश का कोई भी ज़िला खुले में शौच मुक्त नहीं है।
शौचालय बनाने के नाम पर व्यापक भ्रष्टाचार हुआ है। केवल कागज़ों में शौचालयों का निर्माण कर प्रशासन ने प्रदेश को ओडीएफ बना दिया।जिन हैवानों ने मासूम बच्चों की हत्या की है उनके साथ वे सभी ज़िम्मेदार अधिकारी भी दोषी हैं, जिन्होंने शौचालय कागज़ में बनाए और योजना को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया है।
भारत सरकार को मध्यप्रदेश में स्वच्छ भारत अभियान के कार्यों की समीक्षा करनी चाहिए तथा सरकारी व्यवस्था से निर्मित शौचालयों का भौतिक सत्यापन कराना चाहिए।