अगर कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है।
पाश की एक कविता की ये पंक्तियां आज के दौर में भी प्रासंगिक हैं। मौजूदा हालातों को देखकर लगता है कि कला के फूलों को बस राजा की खिड़की में खिलने की इजाज़त है। किसी और खिड़की में कला के फूलों के खिलने की जगह नहीं छोड़ी गई है। अगर गलती से फूल किसी और खिड़की में खिल भी गए, तो उन्हें कुचलने की पूरी कोशिश की जा रही है।
आपको याद होगा कि देश में बढ़ रही मॉब लिंचिंग की घटनाओं के खिलाफ 50 कलाकारों और अन्य हस्तियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुला पत्र लिखा था। इनकी कला के फूलों ने राजा की खिड़की में खिलने से मना कर दिया और राजा पर ही सवाल खड़े कर दिए।
इसका नतीजा यह हुआ कि रामचंद्र गुहा, अनुराग कश्यप, कोंकणा सेन शर्मा, अपर्णा सेन, मणिरत्नम, श्याम बेनेगल समेत लगभग 50 हस्तियों के खिलाफ बिहार के मुज़फ्फरपुर में एफआईआर दर्ज़ की गई है। स्थानीय वकील सुधीर कुमार ओझा की शिकायत के बाद सीजेएम सूर्यकांत तिवारी के आदेश पर इन हस्तियों पर सेडिशन का मामला दर्ज़ किया गया है।
सुधीर कुमार ओझा का आरोप है कि इन हस्तियों ने देश और प्रधानमंत्री मोदी की छवि धूमिल की है। क्या मॉब लिंचिंग की घटनाओं से देश की छवि धूमिल नहीं होती है? क्या प्रधानमंत्री से सवाल करने से देश की छवि धूमिल होती है?
सेडिशन तब लागू होता है जब हिंसा भड़काई जाए लेकिन यहां हिंसा के खिलाफ बोलने पर सेडिशन लगाया जा रहा है। कला गर्मी में राजा को पसीने से तरबतर करने वाली धूप है, सर्दी में राजा की हड्डी कंपाने वाली ठंड है। लोकतंत्र में तो कोई राजा भी नहीं होता है। कोई है क्या जो खुद को राजा समझ बैठा है?
इससे पहले अनुराग कश्यप और उनके परिवार को ट्विटर पर इतनी गालियां और धमकियां दी गई कि उन्होंने ट्विटर को अलविदा कह दिया। जबसे इन 50 हस्तियों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है तभी से इन्हें एंटी नेशनल कहा जा रहा है और इन पर एक तरह का हमला कर दिया गया है। यह हमला इस बात का सबूत है कि कला के अंदर से सवालों को चुन चुनकर अलग किया जा रहा है। जब सत्ता को परेशान करने वाले सवाल हटा दिए जाते हैं तब कला के अंदर सिर्फ ऐसे सवाल बचते हैं कि आप आम कैसे खाते हैं।
एक तरफ प्रधानमंत्री के लिए चिलचिलाती धूप में छांव बनने वाले कलाकारों का महिमामंडन और दूसरी तरफ उनसे कठिन सवाल पूछने वाले कलाकारों का उत्पीड़न, यह एक कोशिश है कि लोग कला को प्रतिरोध के माध्यम के रूप में अस्वीकार कर दें।
जब राजा को कला से डर लगने लगता है, तब वह प्रतिरोध के माध्यम के रूप में कला की स्वीकारिता खत्म करने की पूरी कोशिश करता है।
खैर, आज इन हस्तियों को कितना भी परेशान किया जाए लेकिन इतिहास इन हस्तियों पर मेहरबान होगा। जब आज से 20-25 साल बाद लोग इस दौर में लोकतंत्र के ज़िंदा होने के सबूत ढूंढेंगे, तब प्रधानमंत्री आम कैसे खाते हैं यह सवाल उन्हें निराश करेगा। प्रधानमंत्री मॉब लिंचिंग क्यों नहीं रोकते हैं, यह सवाल पूछती हुई वह चिट्ठी लोकतंत्र की धरोहर है।