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बुंदेलखंड की जल सहेलियां पानी बचाने की दे रही हैं सीख

मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा बुंदेलखंड एक ऐसा पठारी क्षेत्र है, जो 13 जिलों से मिलकर बना है। एक करोड़ से भी ज़्यादा आबादी वाले इस क्षेत्र की ज़्यादातर नदियां, तालाब और कुंए सूख रहे हैं।

पानी ना होने के कारण किसान आत्महत्या कर रहे हैं और परिवार के परिवार पलायन को मजबूर हैं। क्षेत्र में उद्योगों का विकास ना के बराबर है। पानी की समस्या की बात करें, तो यहां पानी की कमी शताब्दियों से हैं।

कौन हैं जल सहेलियां?

ऐसे में गांवों में रहने वाली महिलाएं आगे आई हैं। उन्होंने परमार्थ संस्था की पहल पर एक समूह बनाया है, जिसका नाम है जल सहेली। समूह के नाम के आधार पर समूह से जुड़ने वाली महिलाओं को भी जल सहेली कहते हैं, जो अपने गाँव के क्षेत्र में पानी की समस्या को दूर करने के लिए सभी प्रकार के प्रयास करती हैं।

जल सहेलियों द्वारा पुनरोद्धारित तालाब, फोटो साभार-प्रदीप श्रीवास्तव

परमार्थ से जुड़ कर काम कर रही जल सहेली श्री कुंवर कहती है,

हमारे यहां पानी की समस्या बहुत सालों से है। पानी को लेकर परिवार के अंदर झगड़े होते हैं। ऐसे में परमार्थ के लोगों ने हमें एक जुट करके ग्रुप बनाया और हमनें पानी बचाने का काम शुरू किया।

बुंदेलखंड के 200 से अधिक गाँवों में जल सहेलियां काम कर रही हैं। जल सहेलियां गाँव के लोगों को पानी से जुड़े हर प्रकार की समस्या के समाधान बताती हैं। इसमें पानी को इकट्ठा करना, कुंओं को गहरा करना, तालाबों का पुनरुद्धार करना, छोटे बांध बनाना, हैंड पंप को सुधारना, प्रशासनिक अधिकारियों से मिलना और ज्ञापन देना तक शामिल हैं।

विकास की बयार हैं जल सहेलियां

गाँव की यह महिलाएं बहुत से कामों में पुरुषों से भी ज़्यादा बेहतर तरीके से भागीदारी करती हैं। जल सहेलियों का कहना है कि जिन गाँवों में जल सहेलियों के ग्रुपों का गठन हुआ है, वहां, विकास खुद ब खुद दिखता है। जल स्रोंतों से अतिक्रमण हटा है। पीने के पानी की व्यवस्था भी काफी अच्छी हुई है। सिंचाई आदि के साधनों की कमी भी दूर हुई है।

बुंदेलखंड में सूखा यहां की नियति बन गई है। प्राकृतिक बनावट पठारी होने के कारण अगर किसी साल वर्षा अच्छी भी होती है तो यहां पर पानी रुकता नहीं है। यहां पर ग्राउंड वाटर का लेवल काफी नीचे है। इसी कारण से चंदेलों ने यहां पर बड़े-बड़े तालाब बनाए, जिसे आपस में इस प्रकार से जोड़ा गया कि बारिश के समय पानी सही तरीके से रिचार्ज हो सके और साल भर तक उसमें पानी रहे लेकिन इन तालाबों को भी भुला दिया गया या फिर इस पर कब्ज़े हो गए।

बचे तालाब अपनी मौत मरने लगे हैं लेकिन जल सहेलियों ने चंदेल कालीन तालाब का भी पुनरुद्धार किया है। पुरुषवादी सोच और रूढ़िवादी क्षेत्र में महिलाओं को जल संरक्षण के लिए प्रेरित करना और जल सहेलियां बनाना आसान नहीं था लेकिन क्षेत्र में परमार्थ समाज सेवी संस्थान ने इस काम का जिम्मा उठाया।

जल सहेलियां ज्ञापन देने के लिए जाने को तैयार, फोचो साभार-प्रदीप श्रीवास्तव

परमार्थ के सचिव और जन जल जोड़ों अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह कहते हैं,

हम पानी बचाने के लिए बुंदेलखंड में पिछले 23 सालों से काम कर रहे हैं। पानी बचाने के हर तरीके पर हम विचार करते हैं और समूह के साथ काम करते हैं। इन्हीं तरीकों पर काम करते हुए हमने पानी बचाने के लिए महिलाओं को आपस में जोड़ना शुरू किया और यह एक अभियान का रूप लेता गया, महिलाएं भी खुद अभियान में शामिल होकर दूसरी महिलाओं को जोड़ने लगी, अब यह पूरा अभियान कम्यूनिटी के महिलाओं के हाथ में है।

 

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