मोसाद इज़राइल की खुफिया एजेंसी है। जैसे भारत की RAW, पाकिस्तान की ISI, अमेरिका की CIA और इंग्लैंड की MI6। पर इन सबसे ऊपर है मोसाद जो की अपने दुश्मनों का काल है।
मोसाद के बारे में यह किताब दो लोगों ने लिखी है। एक हैं माइकल बार ज़ोहर जो एक पुर्वा आर्मी ऑफिसर रह चुके हैं और अरब-इज़राइल युद्ध लड़ चुके हैं और दूसरे हैं निस्सिम मिशल जो कि इज़रायल के मशहूर लेखक और पत्रकर हैं और साथ में इज़रायल राज्य टेलीविज़न के बड़े अधिकरी भी हैं।
मोसाद के 1948 – 2009 के कार्य का ब्यौरा
इस किताब को जैकब पब्लिकेशन ने छापा है। कुल मिलाकर इस किताब में 21 अध्याय हैं जो कि पूरे 371 पन्नों की है। इस किताब में 1948 से से लेकर 2009 तक का मोसाद के कार्यों का ब्यौरा है। इस किताब के पीछे के कवर पर इज़रायल के पूर्व राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री शिमोन पेरेस ने अपनी राय लिखी है। वह बताते है,
यह किताब हमें बताती है कि हमें क्या पता होना चाहिए और क्या नहीं।
इज़रायल की खुफिया एजेंसी अपनी ताकत के लिये जानी जाती है। रम्साद को मोसाद का प्रमुख कहा जाता है लेकिन इस किताब के पहले 2 अध्याय मीयर दीगन पर ही हैं। जिसमें 1 अध्याय में एक एजेंसी के अफसर के तौर पर उनकी बहादुरी और फिर मोसाद के मुखिये के तौर पर उनकी नियुक्ति दर्शाई गई है। वे 2002 से 2011 तक सेवा में रहे और कई बहादुरी के काम किए।
हालांकि मोसाद के हाथों कुछ कत्ल भी हुए हैं जिनका ज़िक्र फ्यूनरल इन तेहरान नाम के अध्याय में आता है। यह कत्ल तब हुए जब मोसाद ने ईरान के न्यूक्लीयर हथियारों को बनाने का काम करने वाले साइंटिस्ट को मारा था। जिनके नाम थे प्रोफेसर डरिऔश रेज़ाइ नजद, डॉ माजिद , डॉ दवानी , प्रोफेसर मसौद अलि मोहम और डॉ अर्दशिर।
इन सब में एक बात समान थी कि ये सब फिज़िक्स के अध्यापक थे और साथ में ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े हुए थे। फिर तीसरे अध्याय से शुरु होती है डेविड बेन गुरियन और इज़ायर हारेल की कहानी।
मोसाद का अभियान खुदा का कहर (Wrath Of God)
इस में एली कोहेन की कहानी भी है जो कि इराक में मोसाद के जासूस थे और काफी हद तक इराक की राजनीति में घुस चुके थे। बाद में जब पकड़े गए तो उनकी कैसे हत्या हुई इसका जिक्र भी इस किताब में है।
किताब में बताया गया है कि कैसे एक बच्चे योसेल को वापस लाने के लिए मोसाद ने दुनिया हिला डाली, कैसे मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल अब्देल नसीर साहब्शरफ मारवां को अपना जासूस बनाया, कैसे एयर इजिप्ट की सारी खुफिया जानकारियां निकलवाई, कैसे प्रधानमंत्री गोल्दा मीयर के राज में सीरिया में फंसी यहूदी औरतों को बचा कर लाए और जर्मनी में मारे गए इज़रायली खिलाड़ियों की मौत का बदला लेने के लिये खुदा का कहर यानी wrath of god नाम से खुफिया अभियान चलाया।
इस किताब में 1974 के युद्ध का भी ज़िक्र है जब अरब देश इज़रायल पर हमला करने वाले थे। उस वक्त इस एजेंसी ने वक्त पर अपने तंत्र का इस्तेमाल कर इज़रायल को जीत हासिल की। यज़्जाक राबिन के ज़माने में ऑपरेशन एंतेब्बे के असली गुनेहगारों को सज़ा दिलवाने का भी ज़िक्र इस किताब में मौजूद है।
मोसाद के एक जासूस ने किया था स्टालिन का ‘पर्दाफाश’
पांचवां अध्याय ओह इट्स खुरुशेव स्पीच है जो कि पेज 50 से शुरु होता है और पेज 97 पर खत्म। इस अध्याय में यह बताया गया है कि कैसे 1956 में इज़रायल ने पूरी दुनिया को सोवियत रूस के पूर्व प्रधानमंत्री जोसेफ स्टालिन का घटिया और भयानक रूप सबके सामने रखा था।
इसकी कहानी छोटे शब्दो में बयां करता हूं। बात अप्रैल 1956 की है। पॉलैंड में एक पत्रकार था। नाम था विक्टर ग्रावयेस्की, जो एक यहूदी था लेकिन विचारधारा से एक वामपंथी इसलिए जब 1948 में उसका परिवार इज़रायल चला गया तो उसने मना कर दिया।
उसका मानना था कि पॉलैंड एक साम्यवादी देश है। उसकी एक प्रेमिका थी लूसी जो कि पॉलिश कम्यूनिस्ट पार्टी में थी। एक दिन रूस के प्रधानमंत्री निकिता ख्रुशचेव की स्पीच का दस्तावेज़ उसे लूसी से मिला। जब उसने वह दस्तावेज़ पढ़ा तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई क्योंकि उसमें स्टालिन के गुनाहों का कच्चा चिट्ठा था।
पूरी रात विक्टर दुखी रहा उसके अंदर का स्टालिन समर्थक मर चुका था और स्टालिन से अब उसे नफरत हो चुकी थी, जिसकी वह कभी इज़्ज़त करता था। अगले दिन वह लूसी से मिलने सोविएत राजदूत के यहां जा रहा था। पर रास्ते में उसको इज़रायल के दूतावास दिखे और मोसाद का खुफिया दफ्तर भी।
पता नहीं उसे क्या सूझी कि वह मोसाद के दफ्तर चला गया। वहां वह एक अधिकारी से मिला और उसको वे दस्तावेज़ दे दिए। वह अधिकारी उन दस्तावेज़ों को पढ़कर हैरान हुआ। फिर उन दस्तावेज़ों को लेकर वह अधिकारी अपने कमरे में गया और फिर काफी देर बाद वापस आकर उसने विक्टर को वह डॉक्यूमेंट वापस कर दिए।
विक्टर समझ गया कि इसकी फोटोकॉपी हो गई है। बाद में विक्टर लूसी को वे दस्तावेज़ वापस कर आया और हमेशा के लिये इज़रायल चला गया, जहां पर एक पत्रकार बनकर उसने इज़रायल की खुफिया एजेंसी में एक एजेंट के रूप में काम किया जो रूस की खुफिया जानकारी मोसाद तक पहुंचाने लगा।
इसके लिये मोसाद के कहने पर वह रूस की केजीबी का एजेंट भी बना और सोवियत संघ के खिलाफ काम करता रहा। बुढ़ापे में उसे इज़रायल का सर्वोच सम्मान मिला। कहते है कि उसे लेनिन पुरस्कार भी देने वाले थे। बाद में इस्सर हैराल की मदद से अमेरिकी अखबारों में ये दस्तावेज़ छापे गये और पूरी दुनिया के वामपंथी स्टालिन को उसके गुनाहों पर कोसने लगे। यह स्टालिन समर्थकों के लिए एक बहुत बड़ा झटका था।
यह किताब काफी अच्छी है और सबको पढ़नी चाहिए और साथ में अपने कामों पर भारत की RAW, पाकिस्तान की ISI, अमेरिका की CIA और इंग्लैंड की MI6 को भी किताबें लिखनी चाहिए।