फिल्म पैडमैन तो आपमें से ज़्यादातर लोगों ने देखी ही होगी। है ना? जब यह फिल्म रिलीज़ हुई थी, तब सिनेमाघरों में दर्शकों की भीड़ देखकर एक पल के लिए लगा कि पितृसत्तात्मक समाज को यह क्या हो गया? दफ्तरों में महिला कर्मचारियों को पीरियड्स के नाम पर एक दिन की छुट्टी देने में जिन पुरुषों की भौहें तन जाती हैं, वे भला सिनेमाघरों तक कैसे खीचें चले आए?
इसका जवाब मुझे उस वक्त मिल गया जब मैंने पैडमैन मूवी के दौरान पुरुषों को खड़े होकर तालियां पीट-पीटकर हंसते देखा। ऐसे जैसे मानो उनकी यौन कुंठा बाहर आ रही हो। अब समझ आया कि यह भीड़ दरअसल महिलाओं से जुड़े एक गभीर विषय पर बनी फिल्म को देखकर अपना नज़रिया बदलने नहीं, बल्कि अन्तर्वासना मिटाने आए थे।
इन पुरुषों ने जितनी उत्तेजना के साथ फिल्म पैडमैन देखने के दौरान तालियां बजाई थी, काश पीरियड फ्रेंडली टॉयलेट्स की मांग को लेकर भी दिल्ली की सड़कों पर एकजुट होते तो अच्छा लगता।
पीरियड फ्रेंडली टॉयलेट से एक बात याद आती है, वो यह कि इन विषयों पर बात करते हुए हमें दोनों पक्षों पर विचार करने की ज़रूरत है। मतलब यह कि सरकार को अकाउंटेबल ठहराइए कि आपके शहर में शौचालयों की अच्छी व्यवस्था नहीं है। खासकर पीरियड्स के वक्त महिलाओं को गंदे पब्लिक टॉयलेट्स की वजह से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
इन्हीं प्रश्नों के बीच हमें यह भी नही भूलना चाहिए कि अधिकांश लड़कियां और महिलाएं पीरियड्स के दौरान जब पब्लिक टॉयलेट्स का प्रयोग करती हैं, तब उन्हें किन हालातों में छोड़कर आती हैं। मैंने दिल्ली के उन शौचालयों को देखा है जो पहले से ही गंदे होते हैं और पीरियड्स के दौरान महिलाएं उन शौचालयों का प्रयोग कर उन्हें और भी गंदा कर देती हैं। कई दफा इन गंदे टॉयलेट् की वजह से पीरियड्स के दौरान मैं पैड नहीं बदल पाई हूं।
मैंने देखा है किस तरीके से महिलाएं प्रयोग किए गए पैड्स को इधर-उधर फेंक देती हैं और हर तरफ खून के धब्बे होते हैं। जब हम सरकार को पीरियड फ्रेंडली टॉयलेट्स की उपलब्धता ना होने पर अकउंटेबल ठहरा रहे हैं, फिर हमें उन महिलाओं से भी सवाल करने की ज़रूरत है जो पीरियड्स के दौरान पहले से ही गंदे पब्लिक टॉयलेट्स को और भी गंदा कर देती हैं।
मैं यह मानती हूं कि पब्लिक टॉयलेट्स में गंदगी होने के कारण पीरियड्स के दौरान हम उनका इस्तेमान करने से कतराते हैं मगर कुछ हद तक यदि इस गंदगी की वजह भी महिलाएं हैं फिर तो सवाल महिलाओं से करने की ज़रूरत है।
पीरियड्स जैसे मसले पर चाहे कितनी भी बहसें कर लीजिए और सरकार को जितना चाहे अकाउंटेबल ठहरा लीजिए मगर जब तक हम महिलाएं इधर-उधर सैनिटरी पैड्स फेंकना बंद नहीं कर देंगी, तब तक पूर्ण रूप से स्वच्छता में हमे कामयाबी नहीं मिल सकती है। सरकार का काम है टॉयलेट्स बनवाना जिनकी सफाई के लिए कर्मचारी भी नियुक्त किए जाते हैं मगर कई दफा देखा जाता है कि वे ठीक से काम नहीं करते हैं और हम तो ठहरे उन कर्मचारियों से भी महान, जो इधर-उधर सैनिटरी पैड्स फेंककर सिस्टम को और खराब कर देते हैं।