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ट्वीटर पर मुस्लिमों के बहिष्कार के खिलाफ कविता

इतिहास के पन्नों में दर्ज

बहिष्कार की पवित्रता

हवा में उन कपड़ों के धागों के साथ उड़ रही है,

जिनका निर्माण विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के बाद हुआ था।

 

उस बहिष्कार के नाम नहीं है दर्ज कोई खून,

जिसके इस्तेमाल से भारत को बनाया गया था आत्मनिर्भर,

ढंका गया था भारत को भारत के लोगों द्वारा बनाए गए कपड़ों से,

जिनमें से आज उसी के इस्तेमाल से

अशफाक के धागे अलग किए जा रहे हैं,

बिस्मिल के धागों का यह बर्दाश्त कर लेना

होगा अन्याय पसीने की हर उस बूंद के साथ

जिससे जुड़े हैं अक्षर बहिष्कार के।

 

अशफाक के हर एक धागे के साथ

होता जाएगा अलग बिस्मिल का एक धागा

और एक दिन हो जाएगा तुम्हारा भारत नंगा।

 

अगर है सामर्थ्य

तो जाकर सूंघो इतिहास की हर किताब में छपे बहिष्कार को

और कर दो अलग उसमें से अशफाक के पसीने को।

 

इतिहास की किताबों में छपे बहिष्कार को दोहराना होगा इतिहास,

उसे सड़कों पर उतरकर चलाना होगा चरखा,

अधिकृत करनी होगी अपनी परिभाषा

तलवार चलाने वाले बहिष्कार से लड़कर,

इससे पहले कि वो किताबें पढ़ने वाले बच्चे

पूछने लगे बड़ों से

कि क्रांति की गोद में पली बहिष्कार ने

क्यों थाम ली उंगली नफरत की।

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