समझ नहीं आ रहा कहां से शुरू करें और कहां खत्म करें लेकिन हम जब तक अपने मन की बात ना कह लें, सूकून नहीं मिलता है।
28 सितंबर की सुबह
28 सितंबर की सुबह घर के चारों तरफ, जहां तक नज़र जा रही थी, गर्दन तक डूबने जैसा पानी था। उस वक्त समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें?
एक दिन तो समस्या को समझने में चला गया और हम इंतज़ार करते रह गए कि अब पानी निकलेगा और अब बिजली आएगी, लेकिन ना तो बिजली आई थी और ना ही पानी कम हुआ था।
29 सितंबर की सुबह
29 सितंबर की सुबह हमारे पास पीने के लिए पानी नहीं था। मोबाईल डिस्चार्ज और बिजली का कुछ अता पता नहीं था। हां, अब बारिश ज़रूर रुक गई थी। थोड़ी उम्मीद थी कि सब जल्दी ही ठीक हो जाएगा लेकिन पानी का एक इंच फिर भी कम ना हुआ और इस तरह दूसरा दिन भी गुज़र गया।
हमारे एरिया में 28 सितंबर की सुबह से ही एनडीआरएफ की नाव राहत बचाव कार्य में लग गई थी और कुछ स्वंय सेवी भी खाना पानी लेकर घूम रहे थे लेकिन जब भी वे हमारी बिल्डिंग तक पहुंचते, बगल के स्लम से एक जत्था उनकी नाव पर टूट पड़ता और सारा समान छीनकर चला जाता था।
हमारा जो हाथ कभी किसी के आगे कुछ मांगने के लिए तक नहीं उठा था, वह आज भीड़ में जाकर लूटने या किसी से छीनकर लेने की काबिलियत कहां से लाता।
30 सितंबर की सुबह
अंत में 30 सितंबर की सुबह पावर बैंक से फोन चार्ज किया और फेसबुक के ज़रिए अपनी बिल्डिंग के 60 लोगों की स्थिति से अवगत कराते हुए पीने का पानी दिए जाने का आग्रह किया।
फिर क्या था नॉन स्टॉप सभी लोग सहायता के लिए आगे आने लगे। वे पीने के पानी के साथ ज़बरदस्ती खाना, मोमबत्ती, सैनिटरी पैड तक लाकर घर पहुंचाने लगे। जबकि हमारी बिल्डिंग में सभी लोग इतना सामर्थ्य रखते थे कि अगले महीने-डेढ़ महीने आराम से बिना घर से निकले खाना बनाकर खा सकते हैं, लेकिन फिर भी शुभचिन्तकों का यह कहना था,
ले लीजिए दीदी और सबको बांट दीजिए क्योंकि हम लोग बहुत मुश्किल से यह सब लेकर आप तक आए हैं।
नाव या ट्रक-ट्रैक्टर से मेरी बिल्डिंग तक सामान पहुंचाना आसान था लेकिन बगल की गली में जो सैंकड़ों घर थे, उनमें कोई राहत सामग्री नहीं पहुंच पा रही थी। ऐसे में बिल्डिंग के कुछ युवा भाईयों की मदद से गली में रह रहे बस्ती के लोगों तक भरपूर खाना और पानी पहुंचाया गया।
बाढ़ का पांचवां दिन
लगातार 6 दिनों तक बिजली नहीं थी लेकिन संघर्ष की वे घड़ियां मुझे जीवन भर याद रहने वाली खूबसूरत यादें दे गई। मेरी बिल्डिंग में 16 फ्लैट्स हैं और लगभग 60 लोगों का यहां रहना होता है लेकिन अब तक हमने कभी एक दूसरे से बातचीत तो दूर की बात है, किसी का चेहरा तक नहीं देखा था।
सब लोग अपने जीवन में मस्त थे, किसी को अपने बगल के फ्लैट में रह रहे लोगों से कोई मतलब नहीं होता था लेकिन विपरीत परिस्थितियों में जैसे ही हम पीने का पानी हरेक इंसान तक पहुंचाना शुरू करने लगे, तब हमने देखा कि लोग घरों से बाहर निकलकर एक दम ठेठ देहाती अंदाज़ में, बेसमेंट में चौकी लगाकर चौपाल सजाए बैठे हैं।
अब दिनभर देश दुनिया की बातें होने लगी। अगर चाय पीना हो तो एक ही घर से सबके लिए चाय बनकर आती थी और उसमें भी कोई चीनी दे रहा था, तो कोई दूध लाकर देता था। इस तरह से सबके सहयोग से चाय के साथ-साथ खाना तक होने लगा। अब तक कौन किस राज्य से है, पटना में कब से है और क्या करते हैं से लेकर, खाने में किसको क्या पसंद है, पता चल गया है।
बाढ़ का छठवां दिन
विपरीत परिस्थितियों में आपसी प्रेम और एकता का प्रवाह जीने के लिए ऊर्जा देता है, यह बात एकदम सत्य साबित हो गई। दिन तो कट जाता था लेकिन जैसे ही सांझ ढ़लती थी और अंधेरा चारों तरफ होता था, तब मच्छर के प्रकोप के बीच बिजली के बिना मन एकदम से उदास हो जाता था। फिर भी साथ बना रहा।
ऐसे ही एक दूसरे के साथ बातें करके, एक दूसरे को हिम्मत देते हुए कि कल सब ठीक हो जाएगा, हमारे 6 दिन गुज़र गए और सातवें दिन दोपहर में बिजली आ गई।
आज है आठवां दिन
आज आठवां दिन है लेकिन अब भी लगभग घुटने तक पानी जमा हुआ है और बहुत ही धीरे रिस-रिसकर वह निकल रहा है। जानवरों की तैरती लाशों की वजह से बदबू काफी है और पानी लगातार जमा होने के कारण सड़क पर कीचड़ की ऐसी चिकनी परत जम गई है कि चलने पर पांव फिसलने से इंसान नाली के पानी में डूबकी लगा लेता है।
पंद्रह साल के बच्चों से लेकर पचपन साल के लोगों तक ने जिस ज़िंदादिली से इस एक हफ्ते में हम लोगों तक खाना, पानी, दूध, दवा और लाइवलिहुड तक का सामान पहुंचाया गया है, उसके लिए हम उन्हें जितनी बार थैंक्यू बोलेंगे वह कम ही रह जाएगा।
आज, दोपहर 3 बजकर 19 मिनट
अब भी रोड पर जलजमाव है, मच्छरों का भयानक प्रकोप है, हरेक बिल्डिंग के बेसमेंट से पानी निकलने के बाद से बिल्चिंग पाउडर का छिड़काव नहीं हुआ है, जिससे बीमारी का खतरा बना हुआ है। पिछले आठ दिनों में सरकार और सरकारी तंत्र की विफलता जग ज़ाहिर है।
ऐसे में अब कल से लगातार राहत सामग्री बांटने वाले लोगों को प्रभावित इलाकों में आने से रोका जा रहा है लेकिन जिनको सेवा करने का नशा चढ़ा हो उनको कोई रोक नहीं सकता। वे खुद अपने ट्रक या ट्रैक्टर के भाड़े का इंतजाम करके, मूक बधिर प्रशासन को पीछे छोड़कर, अपने कार्य निरंतर युद्ध स्तर पर जारी रखे हुए हैं।
सेना के सिर्फ दो हेलिकॉप्टर और एनडीआरएफ के 33 बोट से जब बात नहीं बनती दिखी, तो लोगों ने खुद की नाव तक का इंतजाम करके, घर- घर पहुंचकर लोगों की जान बचाने का काम किया। लगभग 20 से भी ज़्यादा गर्भवती महिलाओं से लेकर सैकड़ों लोगों को रेस्क्यू करके सुरक्षित स्थान पर ले जाने का इनका कार्य इतना लाजवाब था कि जितनी भी तारीफ की जाए वह कम है।
असंवेदनशील सरकारी तंत्र
ऐसी परिस्थिति में जहां पटना से लेकर बिहार के कई हिस्सों में जलजमाव है ,उसमें बीपीएससी का कल रात एडमिट कार्ड जारी कर दिया गया है और परीक्षा पूर्व निर्धारित तिथी पंद्रह अक्टूबर को ही होगी। ऐसे में सैकड़ों बच्चों के लिए परीक्षा में शामिल होना मुमकिन नहीं होगा।
बीपीएससी का यह कदम साफ तौर पर यह दिखा रहा है कि सरकार से लेकर सरकारी तंत्र सब के सब कितने असंवेदनशील हो गए हैं। एक तो ड्रेनेज सिस्टम ठप होने से आपदा आई फिर आपदा प्रबंधन ना होने के कारण पचास से ज़्यादा लोगों की जान गई। अब भी पानी नहीं निकला है।
ऐसे में तेज़ी से बीमारियों का हमला शुरू हो गया है और नगर निगम अब भी मच्छर मारने के कीटनाशक का छिड़काव करने में विफल है। 28 तारीख की सुबह से अब तक बल्ड रिलेशन वाले लोगों को दरकिनार कर दिया जाए, तो पटना क्या देश और विदेश तक के संगी साथियों ने कॉल या मैसेज करके हाल चाल पूछा है।
फोन के चार्ज को बचाना था इसलिए सबसे बात कर पाना मुमकिन नहीं था लेकिन जिन दोस्तों ने फोन करके हालात का जायज़ा लिया तो सबने कहा,
टेंशन मत ले सब ठीक हो जाएगा और इ बार नितिशवा के भोट ना दिहे।
उनके ऐसा कहने पर उस वक्त कम्बख्त ऐसी एनर्जी बॉडी में फ्लो कर जाती थी कि पूछिए मत।
माँ सबकी रक्षा करे
नवरात्रि पूजन का सातवां दिन है, देश भर के लोग उत्सव के रंग में रंगे हैं लेकिन अब भी सैकड़ों लोग पटना में जलजमाव में फंसे हैं। माँ दुर्गा से प्रार्थना है कि जल्द से जल्द सब कुछ समान्य हो जाए।
गंदे पानी में घुसकर जो लोग लगातार राहत बचाव कार्य में लगे थे, उन्हें स्किन इंफेक्शन से लेकर बुखार, डेंगू जैसी बिमारियां हो रही हैं। हमारे ऐसे देवदूतों की माँ रक्षा करें और जल्दी सुस्वास्थ प्रदान करें।