भले ही भारतीय रेल का मूल मंत्र संरक्षा, सुरक्षा और समय पालन है मगर यह अपने मूल मंत्र से बिल्कुल जुदा है। आय दिन ट्रेन के लेट-लतीफी के चर्चे सुनने को मिलते हैं। हाल ही में आरटीआई के एक खुलासे में यह बात सामने आई है कि रेल मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार बीते तीन सालों में मेल-एक्सप्रेस व पैसेंजर गाड़ियां समय पालन के मामले में फिसड्डी रही हैं।
हालांकि इस साल अब तक की स्थिति में कुछ सुधार आया है। बीते साल (2018-19) एक्सप्रेस-मेल गाड़ियों में से 31% और पैसेंजर गाड़ियों में लगभग 33% अपने तय समय पर नहीं चलीं, यह खुलासा एक आरटीआई आवेदन के ज़रिये हुआ है।
इस तरह रेल मंत्रालय की खामी बाहर आई
मध्य प्रदेश के नीमच ज़िले के आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने भारतीय रेल के समय पालन के संदर्भ में रेल मंत्रालय से ब्यौरा मांगा था, जिसमें मंत्रालय की तरफ से उन्हें उपलब्ध कराए गए ब्यौरे के अनुसार विभिन्न श्रेणियों की मेल-एक्सप्रेस, पैसेंजर, राजधानी, शताब्दी, गरीब रथ और सुविधा रेल में से कोई भी रेल ऐसी नहीं थी जो अपने समय पर खड़ी उतरी हो।
रेल मंत्रालय ने अपने जवाब में बताया है कि मेल-एक्सप्रेस गाड़ियों में वर्ष 2016-17 में 76.69%, वर्ष 2017-18 में 71.39% और वर्ष 2018-19 में 69.23% ही समय पर चलीं। हालांकि इस साल कुछ सुधार नज़र आया है, जिसमें सितंबर तक समय पालन 74.21% है।
पैसेंजर गाड़ियों की बात करें तो उनका हाल भी कुछ ऐसा ही है। वर्ष 2016-17 में 76.53%, वर्ष 2017-18 में 72.66% और वर्ष 2018-19 में 67.5% पैसेंजर गाड़ियां ही समय पर चली हैं। वहीं, इस साल सितंबर तक समय पालन के मामले में 70.55% गाड़ियां समय पर चलीं।
राजधानी और शताब्दी की हालत भी खराब
भारतीय रेल में राजधानी और शताब्दी को हमेशा से बेहतर माना जाता रहा है मगर उसकी हालत भी बेहद खराब है। राजधानी एक्सप्रेस की गाड़ियां वर्ष 2016-17 में 68.55%, वर्ष 2017-18 में 69.99% और वर्ष 2018-19 में 76.58% ही समय पर चली हैं। वहीं, इस वर्ष सितंबर तक यह प्रतिशत सुधरकर 81.43 हो गया।
शब्तादी एक्सप्रेस का हाल भी ऐसा ही है। यह वर्ष 2016-17 में 85.96% , वर्ष 2017-18 में 82.30% और वर्ष 2018-19 में 86.93% ही समय पर चली हैं। हालांकि इस साल सितंबर तक यह आंकड़ा 90. 94% रहा।
ट्रेन लेट होने पर मुआवज़ा
देखा जाए तो देश में करीब 95% ट्रेन लेट चलती है और ट्रेन के लेट होने पर सरकार ने मुआवजे़ का भी ऐलान किया है, जिसमें तेजस ट्रेन के एक घंटा लेट होने पर 100 रुपए और दो घंटा लेट होने पर 250 रुपए फाइन का प्रावधान है। यहां पर एक सवाल जो मन में आता है, वो यह कि क्या जनता अन्य ट्रेनों के लेट होने पर भी फाइन की मांग करेगी?
यात्री कर सकते हैं केस
इस विषय पर अधिवक्ता कालिका प्रसाद काला ने बताया कि रेलवे जिस ट्रेन टिकट को जारी करता है, उसमें भी ट्रेन के रवाना होने और गंतव्य तक पहुंचने का टाइम लिखा होता है, ऐसे में बिना किसी बड़े कारण ट्रेन लेट नहीं होनी चाहिए।
इस संबंध में अधिवक्ता कालिका प्रसाद काला ने आगे बताया कि अगर ट्रेन लेट होती है, तो इसको कंज़्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत डिफिशिएंसी इन सर्विस यानी सर्विस में खामी माना जाता है। इसके लिए यात्री कंज़्यूमर फोरम में केस कर सकते हैं और मुआवज़ा ले सकते हैं।
काला का कहना है कि देश में करीब 95% ट्रेन लेट चलती हैं और अगर यात्री ट्रेन में देरी के लिए कंज़्यूमर फोरम में केस करते हैं, तो यह प्रक्रिया लंबी चलती है, जिस कारण लोगों को मुआवज़ा मिलने में काफी समय लग जाता है।
वहीं, अगर तेजस की तरह सभी ट्रेनों के लेट होने पर यात्रियों को मुआवज़ा देने की व्यवस्था हो जाए तो यह ज़्यादा बेहतर होगा।
अब आगे यह देखना होगा कि रेल मंत्रालय इस विषय पर क्या रुख अपनाता है? क्या वह इन ट्रेनों के लेट होने पर भी मुआवज़ा का ऐलान करेगी या हालात को सुधारने की ओर कदम आगे बढ़ाएगी?