विकास का यह जो पूरा प्रॉसेस है, उसका आधार पर्यावरण का दोहन ही है। उदाहरण के तौर पर बड़ी-बड़ी इमारतें बनाने के लिए गिट्टी की आवश्यकता होती है, जिसके लिए पहाड़ों को तोड़े जाते हैं। ईंट बनाने के लिए खेतों और अन्य जगहों पर खुदाई कर दी जाती है, जिससे मिट्टी की पकड़ कमज़ोर होने लगती है।
यानि कि हमने विकल्प के तौर पर किसी और चीज़ के प्रयोग पर ज़ोर ही नहीं दिया। प्लास्टिक बैग्स के विकल्प के तौर पर कुछ दिनों के लिए यदि हमें कागज़ के बैग्स प्रयोग करने होते हैं, तब तमाम शिकायतें बाहर आने लगती हैं।
मुझे याद है हर वर्ष तीन-चार महीने तक मेरे दुमका ज़िले में नदियों से बालू उठाने पर रोक लगा दिया जाता है लेकिन इस दौरान फर्जीवाड़े के ज़रिये पुलिसवालों को पैसे देकर लोग बालू इकट्ठा कर लेते हैं।
क्लाइमेट चेंज पर तो अभी बहस शुरू ही हुई है, इससे पहले शायद ही किसी के द्वारा इस बात का ज़िक किया जाता होगा। मैं झारखंड राज्य के दुमका ज़िले के मसलिया प्रखंड से हूं, जहां से ज़िले की दूरी लगभग 22 किलोमीटर है। किसी ना किसी काम से मेरा दुमका ज़िला जाना-आना लगा रहता है। सबसे पहले बात पहाड़ोंं की करूंगा।
मुझे याद है आज से लगभग 10-15 साल पहले जब मैं दुमका आना-जाना करता था, तब पहाड़ों पर लोगों के नाम लिखे होते थे। कोई भी पर्यटक आते थे, तो वे अपना नाम पहाड़ों पर लिख देते थे। आज ना तो वे नाम दिखाई पड़ते हैं और ना ही क्रमवार ढंग से पहाड़ों पर चट्टान रखे दिखाई पड़ते हैं।
नहीं दिखाई पड़ते अब खूबसूरत वृक्ष
जब मैं मसलिया से दुमका आता था, तो सड़क किनारे दोनों तरफ ना सिर्फ खूबसूरत वृक्ष होते थे, बल्कि आपको तेज़ धूप से बचाने के लिए उनकी शाखाएं ऊपर की तरफ आपस में मिल जाती थी। अब विरले ही वैसे दृष्य दिखते हैं।
कई तालाब तो बंजर भूमि में तब्दिल हो चुके हैं, जहां बच्चे फुटबॉल खेलते हैं और सरकारी योजनाओं के ज़रिये जिन तालाबों के निर्माण होते हैं, उनकी गुणवत्ता इतनी खराब होती है कि शायद ही आपको वहां स्नान करने का भी दिल करे।
माफियाओं ने पहाड़ तोड़ दिए, बड़ी संख्या में तालाब सूख गए, बोरिंग करने पर 400 फिट तक पानी नहीं आता है और जल स्तर में लगातार गिरावट देखने को मिल रही हैं मगर हम खामोश हैं।
एक नागरिक के तौर पर जलवायु परिवर्तन को संतुलित करने के क्रम में हमें क्या करना चाहिए, इस पर एक नज़र-
- प्राथमिकता के तौर पर वृक्षारोपण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- एक घर में हम अनावश्यक चार-पांच गाड़ियां ना रखें।
- पहाड़ तोड़ने वालों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो।
- मिट्टी काटने वालों की पहचान कर उनके खिलाफ मुकदमा चले।
- कंस्ट्रक्शन वर्क के लिए गिट्टी और ईंट के स्थान पर किसी विकल्प पर चर्चा हो।
- कचड़ा प्रबंधन के लिए किसी आधुनिक तकनीक पर बात हो।
- पाठ्यक्रमों में जलवायु परिवर्तन के प्रसंग को सिलेबस खत्म कराने के लिए ना पढ़ाकर बच्चों को वृक्षारोपण जैसे प्रोजेक्ट दिए जाएं।
मुझे उम्मीद है कि इन उपायों के ज़रिये हम जलवायु परिवर्तन को खत्म ना सही मगर कुछ हद तक कम तो ज़रूर कर पाएंगे। जब यह वातावरण ही नहीं रहेगा, तब हमारी और आपकी नौकरी किसी काम की नहीं रहेगी।