मैं विफल रहा, आप सबको निराश करने के लिए क्षमा चाहता हूं।
यह लाइन है उस खत की जिसे कैफे कॉफी डे के मालिक वी.जी. सिद्दार्थ ने आत्महत्या करने से पहले लिखा था। दुनिया अलग-अलग तरह की समस्याओं से जूझ रही है जिसमें स्ट्रेस यानि तनाव एक बहुत आम घटना है परन्तु बहुत लोग इस तनाव को झेल नहीं पाते और आत्महत्या जैसा गलत कदम उठा लेते हैं।
कुछ दिनों पहले कैफे कॉफी डे के मालिक वी. जी. सिद्धार्थ की आत्महत्या ने सबके सामने सवाल खड़ा किया कि इतनी बड़ी कंपनी के मालिक कैसे एक तनाव को नहीं झेल पाए ?
छोटी बातों को नज़रअंदाज़ ना करें
दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है और साथ में बदल रहे हैं हर छोटी से छोटी चीज़ के मायने भी। दुनिया के बदलने की स्पीड को जब हम मैच नहीं कर पाते तो हमें कोफ्त होने लगती है और हमें लगता है कि हम सब कुछ हार चुके हैं और अब जी के कोई फायदा नहीं है।
इसी तरह की छोटी-छोटी बातों को दुनिया भर में जब नज़रअन्दाज़ किया गया तो वह एक बहुत बड़ी समस्या बन कर हमारे सामने खड़ी हो गई है। दुनिया भर में सालाना 800,000 लोग आत्महत्या करते हैं, यानि हर 40 सेकेण्ड में एक इंसान अपनी जान ले लेता है। यह एक भयावह आंकड़ा है।
सन 2012 से इस मुद्दे पर कार्य करते हुए समझ आया कि आत्महत्या करना कभी भी पहला कदम नहीं होता है। यह एक प्रक्रिया का आखिरी चरण है। दुनिया भर में हर एक आत्महत्या के पीछे 25 आत्महत्या के प्रयास हैं। आत्महत्या में मरने वाले लोगों में तनाव एक आम मनोवैज्ञानिक विकार है।
सबके साथ है समस्या आप अकेले नहीं
आंकड़ों से इतर बात करें तो युवाओं में आत्महत्या के प्रमुख कारणों में भावनात्मक असंतुलन मुख्य है।
दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है और हम चाहते हैं कि हम भी उसी तेज़ी से बदलें। इस चाहत में होता यह है कि जब हम वो तेज़ी नहीं पकड़ पाते हैं तो हम उस तेज़ी को पकड़ने का नाटक करने लगते हैं। पर यह नाटक ज़्यादा देर नहीं चलता और हम अन्दर ही अन्दर घुटने लगते हैं। इसी तरह की बातें और घुटन तनाव को अधिक बढ़ाती हैं।
मेंटल हेल्थ पर काम करते हुए और कई आत्महत्या के प्रयास करने वाले लोगों को कॉउंसिल करते करते मैंने बहुत सारे केसेस देखे। इसी तरह का एक केस था सन 2013 का।
उस साल के जनवरी के आखिरी दिनों ने मेरे अंदर बहुत उथल – पुथल मचाई थी। उत्तराखंड में तीन दिन में 2 बच्चों ने आत्महत्या की थी। कक्षा नौ में पढ़ने वाली लड़की ने वजह लिखी थी कि वो अपने दोस्तों से परेशान थी और कक्षा ग्यारह में पढ़ने वाले लड़के ने लिखा था कि वो पढ़ नहीं पा रहा है।
दोनों ही बच्चे नाबालिग थे, अगर हम इन दोनों वजहों पर गौर करें तो ये सब की आम समस्याएं हैं। अब फैसला हम पर है कि हमें इन वजहों से पार पाना है कि आत्महत्या जैसे कदम उठाने हैं।
खुश रहने का नाटक करना बंद करें
आत्महत्या नाबालिगों के बीच बढ़ रही है। आपको बता दूं कि भारत में सबसे ज़्यादा आत्महत्या युवा करते हैं। इसके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि हम बात करें। आभासी दुनिया से निकलकर कुछ वक्त अपने दोस्तों और परिवारवालों को दें। आत्महत्या से निपटने का मात्र यही तरीका है कि हम खुश रहने का नाटक करना बंद करें।
कभी भी कुछ भी अजीब लगे, मन दुखी हो, कुछ समझ ना आ रहा हो तो जाओ दोस्तों से मिलो। उन से कहो या मम्मी पापा से बातें करो, उन से दोस्ती करो और मैं यह भी बता दूं कि हर घर का माहौल एक जैसा नहीं होता। पर कोई ना कोई ऐसा ज़रूर होता है जिससे हम अपनी बातें कह सकते हैं। बस तुम जाओ उस के पास और अपनी बातें कहो।
कोई ज़रूरी नहीं कि वह आप की समस्या सुलझा देगा। पर कम से कम मन हलका तो कर देगा। आप का ध्यान तो भटका देगा और अगर आप का कोई भी दोस्त आप से कुछ कहना चाहे तो उसे भी गंभीरता से लें।
अपना मन हलका करें
सॉरी नाम नहीं बता सकता पर उस बच्चे के किए काम को आप के सामने लाना बहुत ज़रूरी है। एक स्पेशल नीड बच्चा है लेकिन मानसिक रूप से उससे ज़्यादा ताकतवर बच्चा मैंने आज तक नहीं देखा। उसके पापा के साथ ऑफिस में कुछ दिक्कत हुई जिस वजह से उन्हें काफी आर्थिक नुकसान झेलना पडा। एक निम्न मध्यम वर्ग के लिए यह एक बहुत बड़ी हानि थी।
उसके पापा अन्दर तक टूट गये थे। उन्हें आत्महत्या ही एक चारा लगा। किसी तरह उन्हें बचा लिया गया और उसके बाद इस बच्चे ने अपने पापा को संभाला। इसने लगातार अपने पिता को समझाने-बुझाने और आशा की एक नई किरण दिखाने का काम किया। जो उस बच्चे ने किया वो काबिल-ए-तारीफ है। आज उस के पापा नए जज़्बे के साथ जी रहे हैं।
याद रखें कि मदद मांगने में कोई बुराई नहीं है। अगर आप तनाव या Depression फील करें तो बात करें, चुपचाप कुछ ना झेलें। समाज में आज भी मानसिक स्वास्थ को लेकर बात करना इतना गंभीर मुद्दा नहीं है, यहां तक कि मनोवैज्ञानिक से मिलना एक शर्म की बात मानी जाती है। यही सबसे बड़ी गलती है। याद रखें जान है तो जहान है और ज़िंदगी में कोई भी समस्या इतनी बड़ी नहीं होती जिसे सुलझाया ना जा सके।
भारत में एक आत्महत्या से सिर्फ एक आदमी नहीं मरता है बल्कि उसके साथ जुड़े कई लोगों का भी उस के बाद कुछ अच्छा हाल नहीं रहता। हमेशा यह याद रखो कि आप का एक गलत फैसला कई लोगों की ज़िन्दगी बदल ही नहीं बिखेर भी सकता है।
____________________________________________________________________नोट – लेखक मानसिक स्वास्थ पर काम कर रहें हैं और Yo Zindagi के संस्थापक हैं। मनोवैज्ञानिक मदद के लिए संपर्क करें।