मार्च 2017 में जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शपथ ली थी, तब ऐसा लग रहा था कि राम राज आ गया हो। हर जगह खुशियों का माहौल था लेकिन जैसे ही दिन बीतते गए, वैसे ही हर तरफ अफरा-तफरी मच गई। लखनऊ और बुलंदशहर में एनकाउंटर होने लगे।
हर जगह पुलिस द्वारा ताबड़-तोड़ एनकाउंटर शुरू कर दिए गए लेकिन एनकाउंटर की आड़ में पुलिस ने पदोन्नति के लिए फर्ज़ी एनकाउंटर करना शुरू कर दिया। जब इसकी खबर पत्रकारों ने उठाई, तो उन पर ही उल्टा मुकदमा लाद दिया गया।
अब तो यूपी पुलिस ने ऐसा तांडव मचा रखा है कि अगर कोई पत्रकार ज़रा सा भी प्रशासन के खिलाफ बोल दे, तो उसे सीधे जेल भेज दिया जाता है। ताज़ा मामला नोएडा का है, जहां एक चैनल के पत्रकार को पुलिस ने थाने ले जाकर इतना पीटा कि उसके पूरे शरीर पर निशान बन गए। पत्रकार की गलती महज़ यह थी कि उसने गलत दिशा में जा रहे बाइक सवार पुलिसकर्मियों को टोक दिया था।
कई घटनाओं ने खोले यूपी पुलिस के राज़
अभी हाल ही के दिनों में नोएडा में चार पत्रकारों को पुलिस ने इसलिए जेल भेज दिया, क्योंकि वे पुलिस को प्रलोभन देते थे। अगर यह सत्य है फिर दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? अगर प्रलोभन का आरोप लगा है फिर गुंडा एक्ट में मुकदमा क्यों?
वहीं, एक और घटना मिर्ज़ापुर ज़िले की है, जहां एक प्राइमरी स्कूल में बच्चों को मिड डे मील में नमक-रोटी देने की घटना पर जब एक पत्रकार ने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाला, तो प्रशासन ने पत्रकार पर ही मुकदमा दर्ज़ करा दिया।
जब पत्रकार संगठन ने प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोला, तब जिलाधिकारी सफाई देने सामने आए और कहा कि वह अखबार का पत्रकार था तो उसे फोटो खींचनी चाहिए थी ना कि वीडियो बनाना चाहिए था। अब सवाल यह उठता है कि क्या अखबार का पत्रकार वीडियो नहीं बना सकता?
अगर आप यूपी में रहते हैं और पत्रकार हैं, तो पहले गाड़ी से प्रेस का स्टीकर हटा दें। कोई प्रेस की आईडी भी ना रखें, क्योंकि पुलिस को अगर यह पता चला कि आप पत्रकार हैं तो ठीक से इज्ज़त की जाएगी।