क्लाइमेट चेंज मतलब जलवायु परिवर्तन, यह आज एक वैश्विक समस्या बन गई है। जिसके बाद ऑस्ट्रेलियन मेडिकल एसोसिएशन ने बदलते क्लाइमेट चेंज को मेडिकल इमरजेंसी तक घोषित कर दिया है।
इसमें स्पष्ट वैज्ञानिक साक्ष्य है कि आने वाला समय स्वास्थ्य को लेकर अत्यंत गंभीर होने वाला है और कई तरह की बीमारियों के बढ़ने की भी संभावना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2015 में ही कह दिया था कि क्लाइमेट चेंज आने वाली 21वीं सदी में वैश्विक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बनेगा।
आंकड़ों में क्या है स्वास्थ्य की स्थिति?
क्लाइमेट चेंज वातावरण को प्रभावित करता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां ज़्यादा होती हैं।
- 2030-2050 तक क्लाइमेट चेंज के कारण हर साल 250,000 मौत होने का अनुमान है। यह मौतें कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और बढ़ती गर्मी के कारण होंगी।
- स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों के कारण 2030 तक स्वास्थ्य संबंधित क्षेत्रों में 2-4 मिलियन खर्च का अनुमान लगाया गया है।
- अत्याधिक गर्मी और एलर्जी के कारण 300 मिलियन लोगों को अस्थमा जैसी गंभीर बीमारी होने का खतरा है।
- हर साल क्लाइमेट चेंज के कारण होने वाली आपदाओं से 60,000 मौतों का अनुमान लगाया गया है।
- बढ़ते तापमान और मौसम में अचानक होने वाले बदलावों के कारण फसलों पर बुरा असर पड़ता है, जिस कारण कुपोषण से होने वाली मृत्यु का आंकड़ा हर साल 3.1 मिलियन तक पहुंच रहा है।
- बारिश में कमी और बढ़ते तापमान के कारण अधिकांश लोगों को स्वच्छ पानी नहीं मिल पाता है। जिस कारण केवल डायरिया से हर साल पांच वर्ष से कम उम्र वाले 500000 बच्चों की मौत हो जाती है।
- मादा मच्छर के कारण होने वाली बीमारी मलेरिया के कारण भी हर साल 40,0000 बच्चों की मौत हो जाती है।
- क्लाइमेट चेंज के कारण हर साल हृदय और सांस के मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है।
विभिन्न देशों के क्या हैं हालात?
विभिन्न देशों की स्थिति पर अगर गौर किया जाए तो हालात और भी खराब हैं।
- लगभग 40% साउथ अमेरिका को कवर करने वाला अमेज़न जंगल जब आग की लपटों से घिरा हुआ था, तो उससे हर कोई विचलित था। क्लाइमेट चेंज और बढ़ती गर्मी के कारण अमेज़न जंगल की आबादी खतरे में है।
- नासा के रिपोर्ट के मुताबिक अगर गर्मी का मौसम 5-7 महीने से ज़्यादा रहा तो अमेज़न सूखने लगेगा और वहां के पेड़-पौधे अपने निशान खो देंगे।
- इस सूखे के कारण अमेज़न में आग लगने का खतरा भी बढ़ जाएगा।
- ऑस्ट्रेलिया का ग्रेट बैरियर कोरल रीफ भी खतरे के कगार पर पहुंच गया है, जिसकी वजह क्लाइमेट चेंज है। पानी के बढ़ते तापमान के कारण कोरल ब्लीचिंग (जिसमें कोरल्स का रंग सफेद हो जाता है) बढ़ रही है और लगभग 50% कोरल्स ब्लीचिंग के कारण मर रहे हैं।
- ज़ोर्डन इज़राइल के पश्चिम में स्थित डेड सी आज वाकई डेड होता जा रहा है, क्योंकि यह हर साल लगभग 4 फीट की दर से सिकुड़ रहा है और एक्सपर्ट्स के मुताबिक 2050 तक यह पूरी तरह से गायब हो जाएगा।
- हिमालय ग्लेशियर पर भी क्लाइमेट चेंज का बेहद खतरनाक प्रभाव देखने को मिल रहा है। बढ़ते तापमान के कारण बर्फ पिघल रहे हैं, जो वहां बसे लोगों के लिए खतरे की घंटी है।
- हिमालय ग्लेशियर 8 विभिन्न देशों के 250 मिलियन लोगों के लिए पानी का स्रोत है। जिसके खतरे में आने के कारण यह वहां बसे लोगों के लिए चिंता का विषय है।
इन आंकड़ों को देखकर हम इस बात का अंदाज़ा लगा सकते हैं कि क्लाइमेट चेंज वर्तमान समय में ही कितनी बड़ी समस्या बन गया है और अगर हम आज नहीं सतर्क हुए तो इसे विकराल रूप लेने में चंद मिनट भी नहीं लगेंगे।