पृथ्वी की सतह के 2/3 भाग में जल है तथा इस पूरे जल का केवल 2.5 प्रतिशत भाग ही पीने योग्य है। अन्य भाग (लगभग 97.5%) खारे पानी के रूप में है।
पीने योग्य पानी का लगभग 3/4 भाग बर्फ व हिमखण्डों के रूप में जमा है, जबकि 1/4 भाग पृथ्वी पर जीवन के लिए उपलब्ध है और यह तालाबों, नदियों, झरनों तथा भूजल के रूप में उपलब्ध है। अगर एक सेकेंड में पानी की एक बूंद ज़ाया होती है तो एक महीने में तकरीबन 1000 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है।
हम पानी को प्रकृति का मुफ्त उपहार समझते हैं, जबकि यह एक बहमूल्य उपहार है। अगर हमने इस उपहार का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग एवं संरक्षण नहीं किया तो हमारे अस्तित्व और हमारी आने वाली पीढ़ियों को खतरा उत्पन्न हो जाएगा। हालांकि, आज यही उपहार कई जगह लोगों के बीच संघर्ष का कारण बन रहा है। पानी की एक-एक बूंद हमारे लिए प्रकृति का अनमोल उपहार है।
भूजल का मुख्य स्रोत है वर्षा का जल, जो रिस-रिसकर ज़मीन के अंदर पहुंचता है और इसी भूजल का हम मोटर और समरसिबिल द्वारा ज़रूरत से ज़्यादा दोहन कर रहे हैं।
हम अपने बाथरूम में पानी के इस दोहन को रोक सकते हैं
इसके दोहन को रोकने के लिए हम व्यक्तिगत स्तर पर कई कार्य कर सकते हैं। इसकी शुरुआत बाथरूम से होती है। यदि हर व्यक्ति जल बचाने का संकल्प कर ले तो वह अपने डेली रूटीन में सैकड़ों लीटर पानी बचा सकता है। मैं बाथरूम में रोज़ाना इस्तेमाल होने वाले पानी की बात करता हूं, अगर हम इसमें बचत कर लें तो एक दिन में हम तकरीबन 361 लीटर पानी की बचत कर सकते हैं।
मैं आपके सामने कुछ आंकड़ें पेश कर रहा हूं और आपसे विनती करता हूं कि आप ये तरीके अपनाएं और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें।
बाथरूम में किस तरह के कदम उठाने की है ज़रूरत
1. नहाते समय शॉवर या बाथ टब के इस्तेमाल से बचें- अगर आप नहाते समय शॉवर या बाथ टब का इस्तेमाल करते हैं तो तकरीबन 180 लीटर पानी इसमें खर्च हो जाता है जबकि बाल्टी से स्नान करने पर महज़ 20 लीटर खर्च होता है।
2. शेव करते समय मग का करें इस्तेमाल- कई लोगों की नल खोलकर शेव करने की आदत होती है, जिससे 11 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है, यहीं आप मग का इस्तेमाल कर लें तो दो मग पानी या 1-2 लीटर पानी ही खर्च होता है। इंडिया वॉटर पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार, नल खोलकर ब्रश करने से 33 लीटर पानी ज़ाया होता है जबकि मग का इस्तेमाल करने पर महज़ 1 लीटर।
3. कपड़े धोते समय बाल्टी का करें इस्लतेमाल- नल खोलकर कपड़ों की धुलाई करने पर 166 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है और इस प्रक्रिया में बाल्टी का इस्तेमाल करने पर 18 लीटर पानी ही खर्च होता है।
4. फ्लश के पानी पर कर सकते हैं कंट्रोल- आप फ्लश में पानी का वॉल्यूम कम करना चाहते हैं तो ईंट लगाकर कस्बाई स्तर पर देसी जुगाड किया जा सकता है या आप यह भी कर सकते हैं कि बाथरूम करने के बाद हर बार फ्लस ना चलाए, इसकी जगह पर मग से पानी डाल लें।
5. कार धोते वक्त रखें ख्याल- कार धुलने में अगर होस पाइप का इस्तेमाल करते हैं तो 75 लीटर तक पानी एक बार में बर्बाद हो जाता है।
6. हाथ धोने वाले पानी का फ्लश में करें इस्तेमाल- ऑस्ट्रेलिया और जापान समेत कई देशों में हाथ धोने के पानी का फ्लश के लिए इस्तेमाल करते हैं, जिससे पानी की 70% तक बचत हो जाती है। इस टेक्नीक को बिल्ट इन रिंस सिंक कहा जाता है। जापान के अधिकतर घरों में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें फ्लश के ऊपर ही वॉशबेसिन बना दिया जाता है और हाथ धुलते समय का पानी फ्लश टैंक में स्टोर हो जाता है। हम भी यह तकनीक घर में आराम से अपना सकते हैं। अगर आपको ज़्यादा पैसे खर्च नहीं करने हैं तो फ्लश टैंक के ऊपर बस उसके ढक्कन के नाप की एक प्लास्टिक प्लेट बनवा लें और उसमें थोड़े छेद करवा दें ताकि हाथ धोते समय पानी फ्लश टैंक में जा सके।
7. इन जगहों में करें आरो से बर्बाद हो रहे पानी का इस्तेमाल- आरो शहरों में अधिकतर घरों में आरो का इस्तेमाल हो रहा है, जिसमें 60-70% तक पानी बर्बाद होता है। आरो प्यूरीफायर से एक लीटर साफी पानी पाने के लिए तीन लीटर पानी बर्बाद होता है और एक व्यक्ति के लिए न्यूनतम 5 लीटर पेयजल ज़रूरी होता है।
हालांकि, इस वेस्ट पानी का इस्तेमाल खाना बनाने में नहीं हो सकता है, क्योंकि इसका टीडीएस काफी अधिक होता है। दरअसल, टीडीएस पेयजल की गुणवत्ता या क्वालिटी मापने का एक तरीका है। साधारणतया 100-900 टीडीएस का पानी पीने के लिए योग्य होता है लेकिन 80-300 टीडीएस का पानी सबसे स्वास्थ्यप्रद या हेल्दीएस्ट माना जाता है।
आप इस पानी का इस्तेमाल घर धुलने, कपड़े साफ करने, पौधों में डालने और फ्लश के इस्तेमाल में ला सकते हैं। हम रोज़ाना ये छोटे-छोटे उपाय करके भूजल की मांग को कम कर काफी हद तक इसकी बर्बादी रोक सकते हैं। भूजल की मांग कम होगी तो इसका दोहन कम होगा और जलस्तर के घटने की तीव्रता भी कम होगी।
रेन वॉटर को कैसे रिस्टोर कर सकते हैं-
अगर घर के पास कोई खाली मैदान है तो वहां पौधरोपण करें और उस समय पेड़ की जड़ के पास मटका लगाकर बूंद-बूंद से सिंचाई करने का तरीका अपनाएं। इसके लिए आप किसी भी पुराने मटके या प्लास्टिक के 5, 10 या 15 लीटर के डिब्बे के नीचे एक छोटा सा छेद कर दें और उसे ज़मीन में पेड़ की जड़ के पास आधा या पूरा मिट्टी में गाड़ दें।
इसके बाद, मटके या डिब्बे मैं पानी भर दें और अगर संभव हो तो मटके के नीचे थोड़ी खाद भी डाल दें, खाद के ऊपर लगातार पानी गिरते रहने से खाद पौधे को ज़्यादा फायदा पहुंचाएगी और इससे भी भूजल की बचत कर सकते हैं, क्योंकि पौधे पानी को ज़मीन में रोकते हैं। हालांकि, चीड़ के पौधे में यह खूबी नहीं होती है।
हमारी सबसे बड़ी गलती है कि हम वर्षा जल को स्टोर नहीं करते। इसके लिए, आप व्यक्तिगत स्तर पर काफी कम खर्चे में पानी ज़मीन में पहुंचा सकते हैं, जिससे ग्राउंड वॉटर रिचार्ज होगा। इसके लिए, आपको एक टंकी, पाइप और पानी फिल्टर करने के लिए रेत, ईंट का चूरा, गिट्टी और चारकोल की ज़रूरत पड़ेगी।
अगर आपको डर है कि छत में ज़्यादा पानी होने से आपके घर में सीढ़न होने का खतरा है, तो आप छत पर तिरपाल डाल दीजिये। छत से आपके जो पाइप नीचे नाली में जा रहे हैं उन्हें पाइप के माध्यम से डायवर्ट कर दें और इन पाइपों को टंकी से कनेक्ट कर दें जो ज़मीन में गढ़ी होनी चाहिए। उस टंकी में आप पहले से ही छेद कर लीजिये जिससे पानी धीरे-धीरे ज़मीन में रिसता रहेगा और भूजल रिचार्ज होता रहेगा।
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सोर्स- https://hindi.indiawaterportal.org