यूं तो बिहार और बाढ़ का संबंध काफी गहरा रहा है मगर सबसे दुखद यह है कि हर साल बिहार के अलग-अलग इलाकों में बाढ़ आने के बावजूद भी सरकार की पहले से कोई खास तैयारी नहीं होती है। मौजूदा वक्त में बिहार की राजधानी पटना जलमग्न है, हर तरफ पानी ही पानी है और इन सबके बीच नीतीश कुमार बयान दे देते हैं कि क्या करें, कुदरत पर किसका काबू है।
बिहार में बाढ़ की वजह से हर साल गरीबों का घर तबाह हो जाता है मगर सरकार चूड़ा, गुड़, चने का सत्तू और त्रिपाल के आगे कुछ सोचती ही नहीं है। हम सब जानते हैं कि बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है, जहां लोग माल-मवेशी पालते हैं तथा खेती पर निर्भर रहते हैं और जब बाधा आती है, तब मवेशियों के चारागाह, मवेशियों के रहने के लिए घर तथा खेतों में लगे हुए फसल तबाह हो जाते हैं। सरकारें इनके पुनर्वास के लिए कुछ भी नहीं करती हैं।
मैंने देखा है कि ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ और बिहार सरकार द्वारा संचालित ‘फसल सहायता योजना’ बाढ़ पीड़ित किसानों के लिए कोई भी लाभ देने में सक्षम नहीं है।
देश के बड़े-बड़े नेता, हवाई से लेकर मोटरसाइकिल के ज़रिये बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करते हैं, ट्विटर और फेसबुक पर भी फोटो अपलोड करते हैं लेकिन उनके आने और नहीं आने से प्रभावित क्षेत्रों में कोई फर्क नहीं पड़ता है। अभी हाल ही में केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें बाढ़ प्रभावित इलाके में जाकर वह कहते हैं कि इनकी हालत देखकर मुझे आत्महत्या कर लेने का मन करता है।
यह साधारण व्यक्ति का बयान नहीं है। यह देश के केंद्रीय कैबिनेट मिनिस्टर का बयान है, ऐसे में आप सोच सकते हैं कि जब केन्द्रीय मंत्री बाढ़ की समस्याओं के सामने घुटने टेकते हुए आत्महत्या करने की बात कर रहे हैं, फिर आम लोगों की क्या हालत होगी।
बिहार की कोसी, बागमती, बूढ़ी गंडक और गंगा इत्यादि नदियां बाढ़ के साथ-साथ भयानक तबाही लाती है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों को यदि आप देखने जाएंगे, तो पाएंगे कि किसानों की काफी ज़मीनें नदियों की गर्भ में समा जाती हैं मगर उन्हें मुआवज़े और पुनर्वास के तौर पर नेताओं के झूठे वादों का सामना करना पड़ता है।
समस्तीपुर ज़िले के कल्याणपुर प्रखंड के हरचंद पश्चिमी पंचायत के निवासी तथा ज़िला परिषद सदस्य मोहम्मद नुरुद्दीन ने बताया कि नदियां अपने गर्भ में किसानों की सैकड़ों एकड़ ज़मीन और आवास इत्यादि समाहित कर लेती हैं लेकिन जब सरकार से इस बारे में पूछा जाता है, तो वह सिर्फ आश्वासन देती है।
नुरुद्दीन बताते हैं कि सांसद, विधायक और यहां तक कि केंद्रीय मंत्री गाँव का भ्रमण करते हैं, आश्वासन देकर जाते हैं लेकिन बाढ़ प्रभावित लोगों के उचित पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं की जाती है। उन्होंने बताया कि साल 2016, 2017 और 2019 में बाढ़ की तबाही झेलने वाले विस्थापित लोगों के पुनर्वास पर अभी तक विचार नहीं हुआ है।
बिहार के कई इलाकों में कुछ दिनों से भारी बारिश हो रही है, जिनमें पटना के हालात से तो हम सभी वाकिफ ही हैं मगर सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। बाढ़ पहले गाँव को शिकार बनाता था लेकिन आज की स्थिति यह है कि पटना में मुख्यमंत्री सचिवालय, राज भवन तथा एम्स तक में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है। अब शहरों में बाढ़ अपना पैर जमा रही है फिर भी सरकार गैर-ज़िम्मेदाराना रवैया अपनाते हुए चुप बैठी हुई है।