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“क्यों मैं कॉलेजियम व्यवस्था का समर्थन करता हूं”

The structure of the Supreme Court of India. One can see some lawyers climbing and alighting the steps in its premises.

हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। यह इस्तीफा उन्होंने अपने तबादले पर कॉलेजियम द्वारा पुनर्विचार ना करने पर दिया है।

जब से यह घटना हुई है तब से कॉलेजियम व्यवस्था पर उंगलियां उठ रही हैं। कई न्यूज़ वेबसाइट्स पर इसके खिलाफ लेख भी प्रकाशित हुए हैं।

क्या है कॉलेजियम व्यवस्था?

मैं आपको बता दूं कि कॉलेजियम व्यवस्था के तहत ही सुप्रीम कोर्ट में न्यायधीशों की नियुक्ति होती है। इसी व्यवस्था के अंतर्गत हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट के जजों की नियुक्ति अनुछेद124 (2)और 127 के तहत राष्ट्रपति करते हैं। वहीं डिस्ट्रिक्ट और सेशन कोर्ट के लिए जजों की नियुक्ति राज्य का गवर्नर करता है।

सुप्रीम कोर्ट में न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री और उसके मंत्रिमंडल की तथा डिस्ट्रिक्ट और सेशन कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए गवर्नर को मुख्यमंत्री और उसके मंत्रिमंडल की राय लेनी पड़ती है। इसके साथ ही वर्तमान में जो जज पद पर आसीन होते हैं उनकी भी राय लेनी पड़ती है, यही कॉलेजियम व्यवस्था है।

2014 में भारत सरकार ने National Judicial Appointment नाम से एक कानून पारित किया जिससे न्यायधीशों की नियुक्ति सरकार के हाथों में होती। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जहां सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को संविधान की मूलभावना (केशवानंद भारती मुक़दमा 1972 में दिया फैसला) के खिलाफ बता कर खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा,

जजों की नियुक्ति कोर्ट का अंदरूनी मामला है, सरकार की दखलंदाज़ी नही चलनी चाहिए।

लोकनायक जय प्रकाश नारायण जी की चिट्ठी

बात 1974 की है जब सुप्रीम कोर्ट के 13वें चीफ जस्टिस सर्व मित्र सीकरी के रेटायरमेंट के बाद इंदिरा गाँधी सरकार ने जस्टिस अजित नारायण रे को अगला चीफ जस्टिस बनाया था। दरअसल ऐसा उन्होंने 3 सीनियर न्यायधीशों के होते हुए किया जिनमें जयशंकर सहलत, के एन हेगड़े और ए एन ग्रोवर थे (इन तीनो ने मशहूर केशवानंद भर्ती केस का जजमेंट दिया था)।

इस हस्तक्षेप से नाराज़ होकर इन तीनो जजों ने इस्तीफा दे दिया था। तब लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सब सांसदों को एक चिट्ठी लिखी जिसमें उन्होंने पूछा.

क्या सरकार न्यायपालिका  को अपना गुलाम बनाना चाहती है!

उनका मानना था कि अगर जजों की नियुक्ति सरकार करेगी तो वह सरकार के हाथ की कठपुतली बन जाएगी। इसलिए ये ज़रूरी है कि जुडिशरी आज़ाद रहे। उनका कहना था कि कॉलेजियम व्यवस्था इसी लिए है। उसके बाद कॉलेजियम व्यस्था और मजबूत हुई और सरकारी दखल कम हुआ।

कॉलेजियम व्यवस्था से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण केस हैं जिनसे साबित होता है कि यह व्यवस्था ज़रूरी है। जैसे-

एस. पी. गुप्ता बनाम भारत संघ, 1981

इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भले ही राष्ट्रपति अनुच्छेद में बताये गए पदों पर बैठे लोगों से परामर्श करेंगे लेकिन उनका निर्णय किसी परामर्श से बाध्य नहीं होगा। इस फैसले के अंतर्गत स्पष्ट किया गया कि राष्ट्रपति अपना स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं, जिसके अंतर्गत उनके द्वारा प्राप्त परामर्श को मनना आवश्यक नहीं होगा।

SC एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ, 1993

इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने नई व्यवस्था लागू की जिसमें जजों की कंसल्टेशन के बाद ही नियुक्ति हो सकती है। इस व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रपति और चीफ जस्टिस दोनों को एक ही नाम पर सहमत होना होगा। अगर एक भी किसी नाम पर राज़ी नही हुआ तो वह न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट में नहीं आएगा।

इस व्यवस्था के तहत यह भी सुनिश्चित किया गया कि चीफ जस्टिस भी अपनी तरफ से नाम नहीं दे सकता है। उसे इस मामले में पहले अपने बाद के 2 सीनियर जजों की राय लेनी होगी, जिस तरह राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से लेता है ।

राष्ट्रपति रेफेरेंस

यह आखिरी फैसला था जिसने इस कॉलेजियम व्यवस्था को और ज़्यादा मज़बूत कर दिया। इसमें 9 जज की न्यायखण्ड ने एक मत से फैसला किया कि 1994 में दिया गया फैसला बरकरार रहेगा।

बस एक फर्क होगा कि पहले चीफ जस्टिस 2 जजों की राय लेते थे, अब वे 4 जजों की राय लेंगे जिसमें कम से कम आधे जजों की एक नाम पर स्वीकृति ज़रूरी होगी। ऐसा ना होने पर वह चीफ जस्टिस प्रस्तावित नाम को राष्ट्रपति के सामने आगे नहीं रखेगा ।

कहते हैं जिसका काम उसी को साझे और जजों की नियुक्ति का अधिकार इस हिसाब से न्याय व्यवस्था के ही हाथ में रहना चाहिए क्योंकि सरकारी दखल से क्या होता है ये हम सब ने 1974 में देख लिया है। इसलिए कॉलेजियम व्यवस्था काफी दुरुस्त है।

न्याय व्यवस्था को भारत के 4 खम्भों में से एक माना गया है और जॉली एलएलबी भाग 2 में जस्टिस सुरेन्द्र नाथ ने कहा था,

आज भी जब दो लोगों में झगड़ा होता है, तो वे एक दूसरे को कहते हैं I will see you in the Court क्योंकि लोगो को इस पर भरोसा है।

इन 4 खम्भों में न्यायपालिका ही सबसे ज़्यादा भरोसेमंद और शक्तिशाली है और कॉलेजियम व्यवस्था ही इसे ताकतवर बनाती है।

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