देश के सबसे बड़े सूबे में इन दिनों पत्रकारों पर कार्रवाई चर्चा में है। बचपन में एक कहावत पढ़ी थी, कलम तलवार से ज़्यादा ताकतवर होती है लेकिन यूपी में नज़ारा थोड़ा अलग है। यहां सरकार, प्रशासन और पुलिस ज़्यादा ताकतवर है, जिसका संयुक्त काॅकटेल कलम को कभी भी तोड़-मरोड़ सकता है।
बीते कई दिनों से प्रदेश में यही होता आ रहा है। खबर कवर रहे पत्रकारों की पिटाई हो या खबर छापने वाले पत्रकारों पर मुकदमा। अजीब संयोग है कि सरकार की कमियां दिखाना प्रदेश में एक अपराध सा हो गया है।
आए दिन पत्रकारों पर होती है कार्रवाईयां
हाल ही में मिर्ज़ापुर ज़िला चर्चा में आया। पत्रकार पवन जायसवाल पर महज़ इसलिए मुकदमा दर्ज करा दिया गया, क्योंकि उन्होंने प्राथमिक स्कूल के मिड-डे-मील में नमक रोटी परोसे जाने का मामला उठाया था। मेरे हिसाब से यह एक शुद्ध पत्रकारिता थी।
आम जनमानस और सरकार में बैठे लोगों तक समस्याएं पहुंचाना बेहद ज़रूरी था। मिर्ज़ापुर प्रशासन ने संबंधित लोगों पर कार्रवाई भी की लेकिन इसके साथ ही पत्रकार पवन जायसवाल पर भी शिकंजा कस दिया गया।
नोएडा में पुलिस को टोकने पर पत्रकार की पिटाई कर दी गई। बांदा, शामली, बिजनौर सहित कई ज़िलों से पत्रकारों पर मुकदमे और उन पर कार्रवाईयों की खबरों ने सबको चौंका दिया।
पत्रकारिता का स्टूडेंट होने के नाते मैं डरा हुआ हूं
मैं एक पत्रकारिता का छात्र हूं, यूपी की राजधानी लखनऊ से आता हूं। बीते दिनों से पत्रकारों पर जो कार्रवाई हो रही है, उसको लेकर थोड़ा चिंतित हूं या यूं कहूं कि मेरे मन में एक डर सा है कि यूपी पत्रकारों के लिए पूरी से असुरक्षित हो चला है? सरकार क्या कलम से डर गई है? या कलम को तोड़कर सरकार अपनी कमियां को छुपाने की कोशिश करना चाहती है।
पत्रकारिता का छात्र होने के चलते मेरी चिंता जायज़ है, क्योंकि पता नहीं कब मेरी आवाज़ भी दबाने की कोशिश की जाने लगे। शायद सिर्फ मेरे मन में ही नहीं यह सवाल हर पत्रकारिता के स्टूडेंट के मन में होगा।