स्वादिष्ट व्यंजन का सेवन भारतीयों का शौक है, जहां हम पराठे-सब्ज़ियों, इडली-डोसा, समोसे, खाखरा, रसगुल्ला को काफी चाव से खाते हैं। हम आदिवासियों के स्वदेशी खाने से ज़्यादा वाकिफ नहीं हैं।
आदिवासी व्यंजनों को मुख्यधारणा से जोड़ने का काम कर रहा है, रांची के कांके में स्थित एक रेस्टोरेंट- आजम एम्बा। ‘आजम एम्बा’ कुरुक भाषा से उद्घृत शब्द है, जो ओराओं आदिवासियों द्वारा बोली जाती है। इसका हिंदी अर्थ “मज़ेदार स्वाद” होता है।
इस रेस्टोरेंट की स्थापना श्रीमती अरुणा तिर्की ने की है, जिन्होंने जेवियर समाज सेवा संस्था से ग्रामीण विकास में स्नातकोत्तर किया है। इनका उद्देश्य आदिवासी खाने की पहचान बनाए रखना और अन्य समाज के लोगों तक उसे पहुंचाना है। रांची के कांके में स्थित यह रेस्टोरेंट चर्चित होकर काफी पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है।
आजम एम्बा ने आदिवासियों के भोजन में साग और फूलों की महत्वपूर्णता को उजागर किया है-
- बेन्ग साग ह्रदय का स्वाथ्य, रक्तचाप और मासिक क्षमता को बढ़ाता है और इसका पीलिया के इलाज में उपयोग होता है।
- वहीं फुटकल साग दातों, हड्डियों और रक्त के लिए फायदेमंद है।
- कुध्रुम की लाल चटनी का मज़ेदार खट्टा स्वाद विटामिन ए और सी से भरपूर है।
- चकोड़ साग की सनई फूल कैंसर और टी.बी. से लड़ने के लिए मददगार है।
- यहां आपको मोटे चावल भी मिलते हैं, जिसके कम मात्रा में सेवन से भी पेट भर जाता है।
- यहां के मडुवा और जोवर के मोमो भी आपका दिल मोह लेंगे।
आदिवासी भोजन से जुड़ी कुछ खास बातें-
किसी भी संस्कृति की पहचान उनके जीने के तरीके से होती है। इसमें तौर-तरीके, रीति-रिवाज़, भाषा, वस्त्र-भूषण इत्यादि शामिल होते हैं।खाना-पीना भी संस्कृति का एक अहम हिस्सा है, जो हमारे भूगोल, वातावरण एवं साधन से सुनिश्चित होता है। आदिवासियों के पारम्परिक भोजन के बारे में जानकर हम उनके इतिहास, पहचान और जीवन को बेहतर तरीके से जानेंगे।
मुख्यधारणा यह समझती है कि आदिवासी अस्भ्य लोग होते हैं, जो केवल जंगली जानवर और पौधे खाते हैं परन्तु हमारी संस्कृति विकसित होने के साथ-साथ बहुत सहज भी है।
आदिवासी भोजन की सिर्फ सामग्री में ही नहीं बल्कि इन्हें इकट्ठा, संरक्षित और पकाने में भी आदिवासियों की रीति और विचारधारा झलकती है। ये सारे साग और फूल ज़्यादातर जंगलों से इकट्ठा किए जाते हैं।
बेन्ग साग और सनई फूल के व्यंजन आदिवासियों में काफी लोकप्रिय हैं-
इनको सखुवा पेड़ के पत्तों से बने पत्तर में रखा जाता है। इन्हें ज़्यादातर चटनी या चावल की माड़ में पकाकर खाया जाता है। घटते जंगलों और विस्थापन के कारण आदिवासी अब अपने पारम्परिक भोजन से दूर हो रहे हैं, जो उन्हें पहले आसानी से प्राप्त थे। ये पोषक भोजन के अभाव में आदिवासियों का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। ज़्यादातर आदिवासी गरीब हैं, जो रोगों का इलाज अस्पताल में करने में असमर्थ हैं।
वहीं सखुवा पेड़ के कोई व्यावसायिक लाभ ना होने के कारण इन्हें संरक्षित नहीं किया जा रहा है। सखुवा पेड़ वर्षा जल को रोकता है और पारम्परिक टूथब्रश भी प्रदान करता है। वहीं जिस प्रकार से माड़ या चटनी आसानी से बन जाती है, इसलिए ये आदिवासियों खासकर महिलाओं का रसोई में काम आसान करती हैं साथ ही समय की भी बचत होती है। साथ-ही-साथ आदिवासी सभी सामग्रियों को पूरा इस्तेमाल करते हैं।
हमारे पारम्परिक व्यंजन अब लुप्त होते जा रहे हैं, क्योंकि बाज़ारी गतिविधियां और भूमंडलीकरण सभी संस्कृतियों के प्रमुख तत्त्वों को सामान्य बना रहे हैं, जहां अल्पसंख्यक या अलग होना मुश्किल हो रहा है। भारत जैसे विभिन्न देश के लिए समानता खतरा है। हरित क्रांति की सबसे बड़ी आलोचना थी कि उसने भांति-भांति प्रकार के ऊपज को समाप्त कर दिया, जो कि भारत के अलग-अलग प्रकार की भूमि, वर्षा और मौसम के अनुकूल नहीं थे।
छोटानागपुर के पहाड़ और घने जंगल के कारण खेती में कठिनाई आती थी, जिस वजह से आदिवासी यहां चावल के अलावा अन्य फसल जैसे मडुवा और जोवर उगाते थे, जो अनुपजाऊ, पथरीले और कम वर्षा में भी भली-भांति पनप सकते थे।
मडुवा के तनों में नमी को कैद करने की इतनी शक्ति होती की सीमित पानी, अनियमित वर्षा और कठोर तापमान पर भी जी सकती है। जलवायु परिवर्तन जहां सब जगहों को बढ़ते तापमान से तड़पा रहा है, तो कहीं घटती वर्षा से तरसा रहा है, ऐसे समय में हमें पारम्परिक तकनीकों और खाने से फिर से मिलना ही होगा।
मुझपर भरोसा कीजिए, आदिवासियों को खाना ना केवल जलवायु परिवर्तन का एक छोटा हल है, बल्कि हमारे व्यंजन को भी काफी सेहतमंद और स्वादिष्ट बनाता है।
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लेखिका के बारे में: Deepti Mary Minj ने जेएनयू से डेवलपमेंट एंड लेबर स्टडीज़ में ग्रैजुएशन किया है। आदिवासी, महिला, डेवलपमेंट और राज्य नीतियों जैसे विषयों पर यह शोध और काम रही हैं। अपने खाली समय में यह Apocalypto और Gods Must be Crazy जैसी फिल्मों को देखना पसंद करती हैं। फिलहाल यह जयपाल सिंह मुंडा को पढ़ रही हैं।