जिस नदी का किनारा बेहद खूबसूरत हो, जल मीठा हो, पक्षी उसमें कलरव नाद करते हो और आकाश उसकी जवानी देख उससे मिल जाने को ऊपर से टूट पड़ता हो लेकिन तभी अगर यह तय कर लिया जाए कि यह नदी अब बहेगी नहीं, तो क्या अब भी उसके किनारे खूबसूरत रहेंगे?
क्या जल सदैव मीठा बना रहेगा? क्या पक्षी उसमे विचरण करेंगे? क्या सृष्टि उसको देखकर हंस सकेगी? क्या आपका मन उसे देखकर प्रफुल्लित होगा? शायद नहीं क्योंकि वह नदी, नदी रहेगी ही नहीं। उसका प्रवाह रोकने पर वह एक बदबूदार तालाब ही बनेगी और जन्नत-ए-कश्मीर के साथ भी ठीक यही हुआ।
दरअसल, धरती के स्वर्ग पर जिस मंतव्य से यह कानून लगाया गया होगा, उस मत से कोसों दूर यह कश्मीरियों के लिए राक्षस ही सिद्ध हुआ। अनुच्छेद 370 के आ जाने मात्र से वहां ज़मीन खरीदना आसान ना रहा, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह हुआ कि कश्मीर उद्योग की दृष्टि से कभी उभर ही ना सका।
कश्मीर में विकास की धीमी रफ्तार के ज़िम्मेदार कौन?
निजी व अन्य सामाजिक सरोकार से संबंधित शैक्षणिक और औद्योगिक क्षेत्र भी वहां नहीं पहुंच पाया। केवल कश्मीरियों द्वारा यह सम्भव भी नहीं था। इसके परिणामस्वरुप कश्मीर में प्रारम्भ से ही शिक्षा का स्तर कम रहा, रोज़गार के अवसर कम रहे और मूलभूत सुविधाओं के नाम पर भी कश्मीर को कुछ खास नहीं मिला।
कश्मीर में इन सुविधाओं के ना पहुंच पाने का दोष निश्चित तौर पर सरकार का ही है परंतु वही सरकारी सुस्त व्यवस्था अन्य राज्यों में भी है। ऐसे में कश्मीर में ही इस प्रकार की स्थिति के लिए अनुच्छेद 370 को कारण मानना बिल्कुल सही है। इन सभी स्थितियों का परिणाम वही हुआ जो ठहरी हुई नदियों के साथ होता है।
जन्नत के चंदन से रक्त महकने लगा और सुविधाओं के अभाव में अनपढ़ युवा पत्थर उठाकर उन्हें ही मारने लगा जो बाढ़, युद्ध और अन्य आपदाओं में उसे ही बचाते थे।
कश्मीरियत का कत्ल नहीं हुआ है
आज जब कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया गया, तब ना जाने वे कौन लोग हैं जो इसमें कश्मीरियत का कत्ल देख रहे हैं। उन्हें अपने ज्ञान चक्षुओं को खोलकर इस विषय पर अवश्य सोचना चाहिए कि क्या कश्मीर विश्वविद्यालय नहीं चाहता? बिजली नहीं चाहता? रोज़गार और चैन की रोटी नहीं चाहता?
हमें यह समझना होगा कि कश्मीर का कुछ हिस्सा चिकित्सा की मांग कर रहा था। आज अनुच्छेद 370 हटाकर उसी का ऑपरेशन किया गया। ऐसे में दर्द तो स्वाभाविक है। अगर यह दर्द आज ना हुआ, तो कल और ज़्यादा होगा। हां, इस ऑपरेशन की एक मज़ेदार विशेषता यह है कि जिसका ऑपरेशन है, उससे कहीं ज़्यादा दर्द उसके झूठे हमदर्दों को हो रहा है।
खैर, यह तो पूर्णतः सत्य है कि यह फैसला कश्मीर के अतीत में डूबते जा रहे “वैभव” को पुनः जीवंत कर सदा के लिए अमर कर देगा।