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नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी कटक के स्टूडेंट्स को आखिर क्यों करना पड़ा आंदोलन?

लॉ यूनिवर्सिटी

लॉ यूनिवर्सिटी

भारत का संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ है। इसके अंतर्गत न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं विधायिका तीनों संस्थाओं को अपनी पहचान मिली है। देश की न्यायपालिका, जहां केशवानन्द भारती एवं मिनर्वा मिल बनाम भारत सरकार जैसे विवादों से और दृढ़ हुई है, वहीं 42वें एवं 91वें संविधान संशोधन ने विधायिका एवं कार्यपालिका को संवैधानिक ताकत दी है। 

देश में नई शिक्षा आयोग का भी गठन होने वाला है, जो देश में शिक्षा व्यवस्था को और भी सुदृढ़ बनाएगा। वहीं, देश की न्यायिक व्यवस्था में बदलाव की दरकार भी बढ़ती जा रही है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कोलेजियम पद्धति पर भी बदलाव के सुझाव दिए हैं।

आंदोलन का आगाज़

इन सबके बीच अभी हाल ही में अखबारों में खबर फैलती है कि देश के एक प्रतिष्ठित लॉ विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स ने कुलपति के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर ली है। यह खबर कटक के राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालय की थी, जिसकी आग ओडिशा राज्य के तटवर्ती राज्यों में भी पड़ने लगी थी।

खबरों की जांच-पड़ताल एवं पूर्व में उपजे कानून विश्वविद्यालयों के आंदोलनों को परखकर हम इस निष्कर्ष तक पहुंच सकते थे कि स्टूडेंट्स की मांग मनमानी है मगर राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालय भोपाल, बेंगलुरु और राजीव गाँधी कानून विश्वविद्यालय पटियाला की पुरानी खबरों पर नज़र डालने के बाद यह मुद्दा गंभीर नज़र आता था।

फोटो साभार: Twitter

स्टूडेंट यूनियन्स की मांग 24 जुलाई को शुरू होती है, जिसमें स्टूडेंट्स द्वारा विश्वविद्यालय के प्रशासन से मौलिक हक की मांग की गई थी। जिसमें उनके रहने की व्यवस्था से लेकर लाइब्रेरी तक की समुचित सुविधाओं की मांग शामिल थी। गौरतलब है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनकी मांगों को दरकिनार नहीं किया था मगर इस बात की पूरी गुंज़ाइश है कि प्रशासन द्वारा मांगों पर गौर नहीं किया जा रहा था।

पहले भी हो चुका है यह सब

इसी प्रकार बेंगलुरु के कानून विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने पिछले वर्ष एक छात्रा पर अभद्र टिप्पणी की थी। इस कारण तमाम स्टूडेंट्स विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ आ गए थे।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि तकरीबन 50 एकड़ में फैले राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालय कटक और 1300 एकड़ में फैले बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने न्यायिक शिक्षा में काफी ख्याति कमाई है।

बहरहाल, शिक्षा व्यवस्था का दोहन उस वक्त शुरू हो जाता है, जब शिक्षा में व्यवसायीकरण की शुरुआत हो जाती है। कानून विश्वविद्यालय कटक के अलावा ऐसे तमाम विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को छोड़कर) हैं, जो अनुदान की मार झेल रहे हैं। ऐसे में शिक्षा के साथ-साथ शिक्षा में आने वाली बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में कहीं ना कहीं यह विश्वविद्यालय पीछे रह जा रहा है।

स्टूडेंट्स की मांग थी कि जिस मद में राशि का व्यय किया जाता है, उसका पूरा ऑडिट रिपोर्ट उनके सामने प्रस्तुत किया जाए। जैसा मीडिया वालों ने दर्शाया फिर भी यह मामला धरा का धरा ही रह गया। 

शिक्षा का व्यवसायीकरण ना हो

इन सबके बीच जिस स्टूडेंट यूनियन का सबसे अधिक बार ज़िक्र किया जाता है, वह है ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स ऑर्गनाइज़ेशन। इसकी यह मांग होती है कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में शिक्षा का व्यवसायिकरण ना हो। राज्य स्तर पर होने वाले न्यायिक परीक्षाओं में जिस प्रकार की धोखाधड़ी देखने को मिल रही है, उससे हमें संविधान की बुनियाद पर आत्म चिंतन करने की ज़रूरत है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में परीक्षाओं की तैयारी कराने वाली संस्थाओं यानि कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के अस्तित्व पर सवाल खड़े किए हैं। ये वही कोचिंग इंस्टीट्यूट्स हैं, जो CAT या CLAT आदि की परीक्षा पास करवाने हेतू मोटी रकम की मांग करते हैं और न्यायिक परीक्षाओं में बैठने वाले स्टूडेंट अपने भविष्य को सुंदर बनाने के लिए इसमें पूंजी लगाते हैं।

सवाल तो कई हैं

सवाल कई हैं लेकिन आखिर मजबूर कौन है? क्या स्टूडेंट्स को मजबूर किया जाता है? क्या विश्वविद्यालय प्रशासन की मजबूरियां थीं? क्या निर्माण कार्य करने वाले CPWD से कोई कमी थी? क्या UGC की कोई मजबूरी थी? सवाल कई है और यहां उदाहरण सिर्फ कटक के विश्वविद्यालय का लिया जा रहा है।

ऐसे तमाम विश्वविद्यालय हैं, जो अभी भी इन सवालों के जवाबों को ढूंढने की लालसा नहीं रखते हैं। वक्त है, समय के साथ इन समस्याओं का निवारण हो या इसके विकल्प खोजें जाएं।

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