केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को लेकर ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अनुच्छेद 370 और आर्टिकल 35 ए को खत्म कर दिया। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर और लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया जाएगा। 5 अगस्त को बेहद गुपचुप तरीके से प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने पूरा खाका तैयार किया और गृहमंत्री ने राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पेश कर दिया।
हालांकि विपक्ष द्वारा इसे लेकर काफी हंगामा किया गया लेकिन पूरे दिन की गहमागहमी के बाद यह बिल राज्यसभा में पास हो गया। जम्मू-कश्मीर को लेकर लिए गए इस फैसले के बाद लोकतंत्र में सरकार को घेरने वाला विपक्ष पूरी तरह से हताश और लाचार नज़र आने लगा। विपक्ष के अंदर से ही कई तरह की आवाज़ें इस बात की गवाही देने लगी कि सरकार अपने प्रयासों में पूरी तरह जीत चुकी है।
सरकार का मास्टर प्लान बेहद गोपनीय
सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाने को लेकर बेहद गोपनीय मसौदा तैयार किया था। तीन दिन पहले ही अमरनाथ यात्रियों को वापस करना, जम्मू-कश्मीर में अतिरिक्त सेना की तैनाती काफी हद तक लोगों की अटकलों को बढ़ावा दे रही थी फिर अचानक रविवार की रात मोबाइल, इंटरनेट, लैंडलाइन और केबल नेटवर्क सभी पर सरकार ने एक साथ रोक लगा दी।
इसके साथ ही कश्मीर के नेताओं को भी नज़रबंद किया गया। सुबह तक सरकार के घटक दलों को भी इस मामले की कोई जानकारी नहीं थी। ऐसे में विपक्ष की क्या बिसात?
कमज़ोर विपक्ष ने सरकार को दिया जीतने का मौका
राज्यसभा में बहस के दौरान काँग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद जम्मू-कश्मीर को लेकर कोई ठोस बयानबाज़ी नहीं कर सके। गुलाम नबी आज़ाद ने पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए कहा कि सरकार ने भारत का सर कलम कर दिया है। आज़ाद की इस बेतुकी बयानबाज़ी को कोई जगह नहीं दी जानी चाहिए।
जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हमेशा से रहा है और काँग्रेस को यह ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व में काँग्रेस भारतीय संविधान का अधिकतर हिस्सा जम्मू कश्मीर पर पहले ही थोप चुकी थी।
अमित शाह ने भी आज़ाद को पूरी तरह से आड़े हाथ लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बाद में दीपेन्द्र हुड्डा, काँग्रेस नेता व विधायक आदित्य सिंह और काँग्रेस के पुराने सिपाही जर्नादन द्विवेदी ने भी अनुच्छेद 370 हटाने के पक्ष में बयान दे दिए। मंगलवार को जब यह बिल लोकसभा में पहुंचा, तब काँग्रेस की हालत और बुरी हो गई।
काँग्रेस से सांसद और नेता अधीर रंजन चौधरी के बयान के बाद काँग्रेस चौतरफा घिर गई। अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा में कहा कि जिस कश्मीर को लेकर शिमला समझौता और लाहौर घोषणापत्र हुआ है, जिस कश्मीर को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो को कहा कि कश्मीर द्विपक्षीय मामला है, ऐसे में यह एकपक्षीय कैसे हो गया?
आपने अभी कहा कि कश्मीर अंदरूनी मामला है लेकिन इसे तो संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1948 से मॉनिटरिंग किया जा रहा है। ऐसे में यह हमारा आंतरिक मामला कैसे हो गया?
लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण
भारत एक गणतांत्रिक देश है। इसमें सत्ता के साथ-साथ विपक्ष की भूमिका को सदैव महत्वपूर्ण रखा गया है। आज़ादी के बाद फिर चाहे काँग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की। सभी सरकारों में विपक्ष ने सदन में ज़ोरदार हंगामा किया और कई मुद्दों पर एक दूसरे को घेरने की कोशिशें भी की हैं लेकिन 370 के मामले में विपक्ष ने कोई होमवर्क नहीं किया।
अकेले राज्यसभा में गुलाम नबी आज़ाद का भाषण भी किसी काम का ना रहा। यही हाल लोकसभा में भी था। काँग्रेस नेता का बयान इस कदर विवादों में चढ़ा कि खुद काँग्रेस के नेता ही भौंचक्के रह गए। ऐसे में खुद का वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रहा विपक्ष हवा में तीरअंदाजी करेगा, तो सरकार की जीत कोई बड़ी बात नहीं है?