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हमारा समाज बच्चों को बचपन से ही हिन्दू-मुस्लिम का पाठ क्यों पढ़ाता है?

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

Zomato कंपनी के मैनेजेर ने शुक्ला जी को जब धर्म का ज्ञान पढ़ाया, तब इस मामले में दिलचस्प मोड़ आया। यह पूरी प्रक्रिया शुरू इस तरह हुई होगी कि शुक्ला जी ने किसी खांटी हिन्दू की दुकान से मोबाइल ली होगी और किसी हिन्दू की दुकान से रिचार्ज भी करवाते होंगे और Zomato इंस्टॉल करने के पहले उन्होंने कई बार हवन भी किया होगा।

अब बात फंस जाती है Zomato पर भोजन ऑर्डर करने की। यहां बात सिर्फ इतनी नहीं कि एक शख्स के मुसलमान होने के नाते एक अखंड सावन का पुजारी यह कहता है कि मैं सावन में किसी मुसलमान के हाथ से खाना नहीं लूंगा, बल्कि ऐसी मानसिकता हमारे समाज को फिर वहीं धकेल रहा है, जहां से राजा राम मोहन राय और दयानंद सरस्वती ने इसमे सुधार करने की कोशिश की थी।

बीफ निर्यात के मामले में पहले क्रमांक पर भारत

कुछ तथ्य हैं, जिन्हें मैं शुक्ला जी और उन तमाम भाइयों को बताना चाहूंगा जो पिछले दिनों से इस घटना का पूरा समर्थन कर रहे हैं। भारत देश, जिसे आप हिन्दू संस्कृति का देश कहते हुए गाय जैसी पशु को माता का दर्ज़ा देते हैं, वह देश जो विश्व में बीफ निर्यात के मामले में पहले क्रमांक पर आता है।

विश्व उद्योग जगत की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की प्रमुख 2 बीफ एक्सपोर्ट कंपनियों Al-Kabeer Exports Pvt. Ltd. और Arabian Exports Pvt.Ltd. के मालिक खांटी हिन्दू ही हैं, जो सावन तो ज़रूर मानते होंगे।

शुक्ला जी से कहीं ज़्यादा गलती हमारे समाज की है

गलती शुक्ला जी की नहीं है, गलती हमारे समाज की है। हमारे समाज में जब कोई बच्चा छोटे से बड़े होने की दहलीज़ पर होता है, तब उसे समझाया जाता है, “देखो बेटा ये मुसलमान है, ये गाय खाता है, दूर रहो।” बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है, उसके दिमाग में सिर्फ यही बात घूमती है कि अरे मैं इसके साथ कैसे खा सकता हूं, ये तो मुसलमान है। ये तो मुझे अपवित्र कर देगा, क्योंकि मैं तो बहुत पवित्र हूं, मैं हिन्दू हूं।

वही बच्चा जब जवान होता है, तब उसे दाढ़ी और बुर्के से घृणा होती है। वह बस या ट्रेन, जहां कहीं पर भी किसी को दाढ़ी या बुर्के में देखकर दूर चला जाता है, क्योंकि वह पवित्र है। उनके दिमाम में डाल दिया गया है कि दाढ़ी वाला गाय का मांस खाता है।

शुक्ला जी! ऐसा है कि हमारे समाज में पवित्रता का पैमाना धर्म में आस्था से है। जो जितना अपने धर्म को मानता है, वह उतना ही पवित्र है। शुक्ला जी, मुझे पूरी उम्मीद है कि आप इसी तरह अपनी पवित्रता बनाए रखेंगे और सावन झूम झूमकर मनाएंगे।

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