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कश्मीरियत को सत्ता द्वारा कुचले जाने की खुशी हम क्यों मना रहे हैं?

खुशी मनाते लोग

खुशी मनाते लोग

5 अगस्त 2019, भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काला दिन के रूप में दर्ज हो गया है। इस दिन विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का दावा करने वाला भारत, जिसकी चुनी हुई सरकार ने गैर-लोकतांत्रिक तरीके से अपने ही स्वायत राज्य जम्मू और कश्मीर की स्वायत्ता खत्म कर दी।

इसके साथ ही राज्य के अस्तिव को मिटाते हुए तानाशाही सरकार ने जम्मू और कश्मीर को 2 हिस्सो में बांटते हुए (लद्दाख और जम्मू-कश्मीर) केंद्र शाषित प्रदेश बना दिया। यह फैसला गैर-लोकतांत्रिक इसलिए है क्योंकि इस फैसले में जम्मू-कश्मीर विधान मंडल की कोई अनुमति नहीं ली गई। सरकार ने बड़े ही शातिराना तरीके से वहां की चुनी हुई सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाया।

राष्ट्रपति शासन लगते ही राज्य का सर्वेसर्वा राज्यपाल बन गया। सरकार ने इसके बाद ही इस गैर-लोकतांत्रिक फैसले को अमलीजामा पहनाया। सरकार ने फैसला लेते हुए वहां की जनता और राजनीतिक पार्टियों से बात करना तो दूर, उल्टे पूरे कश्मीर की जनता को बन्दूक के दम पर खुली जेल में तब्दील कर दिया। वहां के पूर्व मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और सामाजिक-राजनीतिक लोगों को घर में नज़रबंद कर दिया गया।

कश्मीरियत को पांव तले रौंध दिया गया

वहां की राजनीतिक पार्टियों का सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल जब फैसले से 2 दिन पहले राज्यपाल से मिलकर इस बारे में आंशका व्यक्त की तो राज्यपाल ने ऐसे किसी भी फैसले लेने के बारे कोई जानकारी होने से साफ-साफ मना किया। इसके साथ ही राज्यपाल ने आश्वाशन भी दिया कि बिना राजनीतिक पार्टियों को विश्वास में लिए कोई फैसला जम्मू-कश्मीर के बारे में केंद्र सरकार नहीं लेगी।

अमित शाह। फोटो साभार: Getty Images

लेकिन अगले ही दिन पूरे कश्मीर को सेना के सहारे बंधक बनाया गया और दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दावा करने वाले मुल्क की सत्ता ने कश्मीर और कश्मीरियत को अपने पांव तले रौंध दिया। सरकार के इस फैसले में एनडीए में शामिल पार्टियों में नीतीश की पार्टी जनता दल युनाइडेट ने विरोध किया, जबकि विपक्ष में होने का ढोंग करने वाली आम आदमी पार्टी और बसपा ने इस फैसले का समर्थन किया।

कश्मीरी लड़कियों पर भद्दे कमेन्ट्स किए गए

फैसले के बाद जिस प्रकार से पूरे देश में खासकर उत्तर भारत के मैदानी राज्यों में जश्न मनाया गया, सोशल मीडिया पर कश्मीरी लड़कियों की फोटो डालकर भद्दे-भद्दे कॉमेंट्स किये गए, उनको खरीद कर लाने की बात की गई और वहां की ज़मीनें खरीदने तक की बात की गई, इससे यह साफ ज़ाहिर होता है कि भारत का अधिकांश व्यक्ति चाहता है कि कश्मीर की ज़मीन पर हमारा कब्ज़ा हो जाए और कश्मीरी आवाम को हम खदेड़ कर पाकिस्तान भेज दें या पुरुषों को गोली मारकर महिलाओं को रखैल बना ले।

जॉम्बी बनते जा रहे हैं लोग

ऐसी अमानवीय मानसिकता से भरे नौजवान लगातार जश्न मना रहे हैं। भारतीय भांड मीडिया के बारे में बात करना ही बेमानी होगा क्योंकि इसी मीडिया ने  जश्न मना रहे लोगों को इंसान से जॉम्बी बनाया है। इसी मीडिया ने धीरे-धीरे लोगों के दिमाक में ज़हर भरा है। इसी ज़हर के कारण आज लोग अंध-राष्ट्रवाद और कट्टर धार्मिकता की तरफ बढ़ गए है। भारत का बहुमत नौजवान जॉम्बी बनता जा रहा है।

जॉम्बी, जो चलने के साथ-साथ बोलता भी है लेकिन मरा हुआ है। जॉम्बी जो सिर्फ अपने आका का हुक्म मानता है। वह अपने आका के हुक्म से सबको जॉम्बी बनाना चाहता है। जॉम्बी जो अपने से अलग दिखने वालों को मार देता है। उनका खून पीता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

आज भारत का बहुमत नौजवान भी क्या ऐसा ही नहीं कर रहा है? वह ‘जय श्री राम’ ना बोलने वालों, भारत माता की जय, गाय-गोबर के नाम पर अल्पसंख्यकों और गरीब लोगों को मारने वाले के ग्रुपो में शामिल है या हत्यारे ग्रुपों का समर्थन कर रहा है। बड़ा तबका चुप्पी बनाए हुए है। वह अपने आका के खिलाफ लिखने-बोलने वालों को भी मार रहा है।

वह रोटी-कपड़ा-मकान की बात नहीं कर रहा। वह शिक्षा-स्वास्थ्य, बिजली, पानी और रोज़गार की बात नहीं कर रहा है। इसके विपरीत जो इन मुद्दों पर बात कर रहा है, उनको यह जॉम्बी मार रहा है।

ईसा मसीह को सूली पर लटका कर खुशियां मनाने वाले लाखों यहूदियों को तड़पा-तड़फाकर मरते देख हंसने वाला हिटलर, गाँधी को मारकर मिठाई बांटने वाले हिन्दुतत्व का झंडा उठाये आंतकवादी, आईएसआई के वहाबी इस्लामिक आंतकवादी, फिलस्तीन के लोगों को गोलियों से भूनते देख खुशी मनाने वाले इज़राइली ये सब जॉम्बी थे। अब इसी जॉम्बी की श्रेणी में भारत का वह नौजवान आ गया है, जो कश्मीर और कश्मीरियत को सत्ता द्वारा कुचलते हुए देखकर खुशी मना रहा है।

अनुच्छेद 370 और 35 A में बंधी हुई थी जम्मू-कश्मीर की स्वायत्ता

भारत, जिसमें क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग संस्कृतियां, अनेकों धर्म-सम्प्रदाएं और अनेकों भाषाएं-बोलियां विराजमान है। बहुसंख्यक लोग जिनकी धर्म, भाषा, संस्कृती एक जैसी है, वे दूसरी संस्कृतियों, भाषाओं, जातियों और धर्म को तहस-नहस ना कर दे, इसलिए इनकी सुरक्षा के लिए भारतीय सविधान ने अलग से विशेष रियायतें दी हैं। जैसे- एससी-एसटी, ओबीसी, विकलांग, महिलाएं और भूतपूर्व सैनिक आदि को आरक्षण दिया गया है।

ऐसे ही कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35 A के तहत विशेष राज्य का दर्जा दिया गया। कश्मीरी आवाम ने इसी आश्वासन पर भारत की सत्ता पर विश्वास किया था कि भविष्य में जो उनको विशेष अधिकार भारत सरकार ने दिए हैं, उनमें कोई भी बदलाव  बिना जम्मू-कश्मीर की जनता से पूछे नहीं होगा लेकिन अफसोस भारत की सत्ता ने इन 65 सालो में धीरे-धीरे कश्मीर के सैविधानिक अधिकारों का हनन ही किया।

फोटो साभार: Getty Images

जब कश्मीरी आवाम ने अपनी स्वायत्ता के लिए आवाज़ उठानी शुरू की, तब भारतीय सत्ता ने कश्मीर को सेना के हवाले कर दिया। इस पूरे खेल में भारत के साथ-साथ पाकिस्तान की सरकारें भी खलनायक की भूमिका निभाती रही। पाकिस्तान सरकार द्वारा कश्मीर के आंदोलन का समर्थन करने से शेष भारत के लोग इनके खिलाफ हो गए।

कश्मीरी पंडितों को निकालने के पीछे भी पाकिस्तान समर्थक आंतकवादी गुट शामिल रहे लेकिन इसका आरोप कश्मीरी आवाम पर लगा।हमारे यहां एक कहावत है, “लोग अपने दुखों से दुखी नहीं हैं, दूसरों के सुखों से दुखी हैं।”

भारत के दलित जो इस जश्न में डूबे हुए हैं, क्या उनसे पूछा नहीं जाना चाहिए कि वे जब खुद विशेष अधिकार आरक्षण लिए हुए हैं फिर उन्हें कश्मीर के विशेष अधिकारों से दिक्कत क्यों है?

घटिया राजनीति की शुरुआत

मायावती राजनीति में आने के बाद दलित की बेटी से दौलत की बेटी बन गई। बिना आरक्षण तो सवर्ण उसको किसी पंचायत का मेंबर भी नहीं बनने देते लेकिन खुद विशेष अधिकार के सहारे मुख्यमंत्री बनी। उन्हें कश्मीर के विशेष अधिकारों से प्रॉब्लम है। वह अनुच्छेद 370 के हटने का स्वागत कर रही हैं। क्या आज उनसे पूछा नहीं जाना चाहिए कि अगर भविष्य में केंद्र सरकार जब आरक्षण को खत्म करेगी, तब वह समर्थन करेगी या विरोध।

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल तो छुपा हुआ दक्षिणपंथी और तानाशाही व्यक्ति हैं। इन्होंने भी जम्मू-कश्मीर को तोड़कर केंद्र शाषित राज्य बनाने का स्वागत किया है। यही केजरीवाल दिल्ली को केंद्र शाषित राज्य से पूर्ण राज्य बनाने की लड़ाई लड़ने का ड्रामा करते हैं।

दहाड़े मार कर रोने का नाटक करते हैं कि केंद्र शाषित प्रदेश में चुने हुए मुख्यमंत्री की ना चलकर केंद्र द्वारा थोपे गए उपराज्यपाल की चलती है। यह लोकतंत्र के खिलाफ है। लोकतंत्र की दुहाई देने वाला अंदर से गैर-लोकतांत्रिक है, यह सामने आ ही गया।

काँग्रेस पार्टी ने इस फैसले की खिलाफत ज़रूर की है लेकिन अपने लंबे कार्यकाल में इसी पार्टी ने इस कानून को कमज़ोर भी किया है। वर्तमान में काँग्रेस पार्टी बयान देने तक सिमट कर रह गई है। उसके और भाजपा के कैडर में कोई ज़्यादा अंतर नहीं है। काँग्रेस कार्यकर्ता भाजपा के फैसले का स्वागत ही कर रहे हैं। कश्मीर के पक्ष में और गैर-लोकतांत्रिक फैसले के खिलाफ कोई आंदोलन खड़ा करने में सक्षम नहीं है।

वामपंथी पार्टियां और बुद्विजीवी वर्ग

कम्युनिस्ट पार्टियों ने ज़रूर इस मुद्दे पर अपना पक्ष साफ-साफ रखा है। उन्होंने सड़क से संसद तक इस फैलसे का विरोध किया है। लेकिन यह लड़ाई लंबी चलेगी या भविष्य में उनका क्या कदम रहेगा, अभी सब पर्दे के पीछे है।

इस फैसले ने बुद्विजीवियों के एक बड़े तबके से प्रगतिशीलता का नकाब  उतार दिया है। बड़े-बड़े बुद्विजीवीयों ने इस फैसले को समर्थन देकर मोदी की तानशाही के आगे घुटने टेक दिए हैंं लेकिन अब भी अवाम का एक बड़ा तबका, जो भगत सिंह को अपना आदर्श मानता है, जो मानवता, समानता के लिए लड़ता है, वह कश्मीर और कश्मीरियत को बचाने के लिए मज़बूती से इस गैर-लोकतांत्रिक फैसले का विरोध कर रहा है।

फोटो साभार: Getty Images

इसी क्रांतिकारी ताकत से जॉम्बी और उनका आका डरा हुआ है। वह ऐसी ताकत को मिटाने के लिए काले कानून UAPA को मज़बूत कर रहा है। उन पर हमले करवा रहा है। आज उस ताकत को वैचारिक और सांगठनिक तौर पर मज़बूत करने की ज़रूरत है। आज कश्मीर के आवाम के अधिकारों के साथ एकजुटता दिखाने की ज़रूरत है।

अगर कश्मीरी आवाम में अलगाववाद की भावना बढ़ी, तो कश्मीर गृहयुद्ध की तरफ बढ़ जाएगा। अगर कश्मीर गृहयुद्ध की तरफ बढ़ा, तो इसके भयंकर परिणाम कश्मीर के साथ-साथ भारत और पाकिस्तान के आवाम को झेलने पड़ेंगे।

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