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“वे बदलाव जो एक युवा होने के नाते मैं समाज और सरकार से चाहता हूं”

महाभारत में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने, 11 अगस्त 1942 को बिहार के 7 स्वतंत्रता सेनानियों ने, राष्ट्र की प्रेरणा शहीद भगत सिंह ने एवं अनेक युवकों ने मातृभूमि की अस्मिता को अक्षुण बनाए रखने हेतु बलिदान दिया है। दुनिया में परिवर्तन के इतिहास को अगर देखा जाए तो युवाओं के बगैर ना उसमें गति है, ना ही दिशा। ऐसे में 21वीं सदी के इस विश्व में जब युवा हर क्षेत्र में नेतृत्वकर्ता बन रहे हैं तो ऐसे समय में सामाजिक, आर्थिक एवं वैचारिक परिवर्तनों की गति का तीव्र होना स्वाभाविक है।

17 दिसम्बर 1999 को संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा द्वारा सर्वसम्मति से लिए गये निर्णय के अनुसार 12 अगस्त को प्रत्येक वर्ष विश्व युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

भारत के पुनर्जागरण में युवाओं ने ऐतिहासिक एवं अद्वितीय भूमिका निभाई है, शायद यही वजह थी कि भारतीय युवाओं को उदाहरणों की कमी कभी नहीं पड़ी। आधुनिक भारत संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस घोषित करने के डेढ़ दशक पहले (1984) से, दुनियाभर के अनेक युवाओं के प्रेरणाश्रोत स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में  मनाता रहा है। आज जब भारत सर्वाधिक युवाओं का निवास बना हुआ है, युवा विकास के कई पहलुओं पर अनेक प्रश्न समाज एवं सरकार की तरफ उन्मुख हैं।

भारत के 1.3 बिलीयन आबादी की 50% जनसंख्या 25 वर्ष से कम उम्र की है एवं इस युवा आबादी का 25%, 14 वर्ष की उम्र से भी कम है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय पटल पर जब युवाओं की भूमिका पर विचार हो तो भारत एक अद्वितीय स्थान रखता है। अर्थात भारतीय युवाओं के विकास को सुनिश्चित करके ही विश्व युवा समाज आगे बढ़ सकता है।

राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया का ऊर्जा स्त्रोत होने के कारण समकालीन मुद्दों पर ‘युवा-नज़रिया’ समाज द्वारा गंभीरता से लिया जाना चाहिए। आज के भारत में वर्तमान परिस्थिति का विश्लेषण अगर हम युवा नज़रिए से करें, तो हमें पांच मुख्य विषय पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत होगी।

  1. पीढ़ीवार सामाजिक मूल्यों की स्थिति,
  2. युवा एवं रोज़गार स्थिति,
  3. वैश्विक मुद्दों पर युवा नज़रिया,
  4. युवा एवं तकनीक,
  5. युवाओं द्वारा राजनीति।

इन विषयों के अंतर्गत हम अपने

वास्तव में युवा विकास पर हर विचार इनमें से किसी ना किसी पर आधारित ज़रूर होगा। पर प्रश्न यह है कि समाज में इतनी बौद्धिक समृद्धि के बाद भी हमारे युवा अनेक पहलुओं पर अभी भी अपनी क्षमताओं को सही दिशा में नहीं लगा पाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई बार अशोभनिय स्थिति बन जाती है और हम किसी एक पक्ष को गुनाहगार मानकर मामले को रफा-दफा करते हैं।

युवाओं पर विश्वास क्यों नहीं दिखाते हैं लोग?

अपनी पढ़ाई एवं नौकरी के लिए घर छोड़कर भारत के कुछ गिने चुने शहरों में देश के युवा इक्कट्ठे हैं। अगर उनसे भाड़े के निवास लेने की प्रक्रिया पूछी जाए तो आसानी से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि लोगों को युवाओं पर कितना विश्वास है।

ऐसी स्थिति क्यों है? एवं इसका उपाय क्या है?

एक युवा होने के नाते मेरे दिमाग में यह प्रश्न आना स्वाभाविक है कि समाज मुझसे सकारात्मकता, परिवारिकता, सज्जनता इत्यादि तो अपेक्षित रखता है पर मेरे सकारात्मक निर्माण की अपेक्षाओं की पूर्ति के समय अपनी आंखें क्यों मूंद लेता है?

आज ऐसी स्थिति इसलिए बनी है क्योंकि हमने अत्यंत विषम प्रगति की है, जिसके फलस्वरूप आज हमारे पास कुछ है तो इतना है जितने की ज़रूरत नहीं और जो मूलभूत ज़रूरत है उसकी भारी कमी है। ऐसे में ज़रूरत है कि

राजनीतिक रूप से लोकतांत्रिक सरकार समाज का प्रतिनिधित्व एवं नेतृत्व करती है, ऐसे में इस गहरे परिवर्तन में राजनीति की अहम भूमिका स्वाभाविक है। सरकार अगर युवाओं को शुरुआती दौर में सशक्त नहीं करती है तो बाद में कोई भी मज़बूत बैशाखी युवाओं को वैश्विक रेस में विजेता नहीं बना सकती।

वर्तमान सरकार द्वारा शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया जाना सराहनीय है पर मानव विकास, विशेष रूप से युवा विकास, एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें सामाजिक न्याय, आर्थिक सुरक्षा एवं धार्मिक सौहार्द नितांत आवश्यक है।

इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सरकार एवं समाज को एकजुट होकर कार्य करने की ज़रूरत है। ज़रूरत है कि

शायद तब यह समाज ऐसे युवाओं का निर्माण कर पाएगा जो पुनः विश्व समाज के लिए प्रेरणा होंगे एवं यह विश्व एक बेहतर स्थान बन पाएगा।

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