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“क्या पहलू खान केस में शुरुआत से ही आरोपियों को बचाया जा रहा था?”

जिस पहलू खान केस के मामले में अदालती फैसले आने के बाद सभ्य समाज अचानक से भावविहोर हो उठता है, उनको यह समझ में नहीं आता है कि पहलू खान के हत्यारे तो कमज़ोर FIR लिखते समय ही बरी हो चुके थे।

पहलू खान ही नहीं कई मामलों में यह बात सामने आ चुकी है कि किसी भी घटना के बाद अधिकारी पूरी घटना की विवेचना जिस तरह से FIR में करते हैं वह अपराधियों को ही बरी कराने में सहायता करता है। फिर आखिर क्यों पूरा का पूरा पुलिस महकमा घटना का अवलोकन करने के लिए इस तरह के अधिकारी को भेजता है, जो नौसिखिया की तरह व्यवहार करते हैं।

पहलू खान की मौत के मामले का अवलोकन किया जाए, तो मामले के अंतर्गत 2 FIR दर्ज हुई थी।

  1. पहली FIR में पहलू खान की हत्या के मामले में आठ लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज हुई थी और
  2. दूसरी FIR पहलू खान और उनके बेटे के खिलाफ दर्ज हुई थी, जिसमें पहलू खान को बिना कलेक्टर की अनुमति के मवेशी ले जाने का दोषी बताया गया था।

FIR को कैसे कवर किया गया है

पहलू खान की मॉं और पहलू खान। फोटो सोर्स- Getty/सोशल मीडिया

पूरी घटना के बारे में पुलिस की जवाबदेही FIR में दिख जाती है, जब पुलिस छह आरोपियों ओम यादव, हुकुम चंद यादव, सुधीर यादव, जगमल यादव, नवीन शर्मा और राहुल सैनी की पहचान हो जाने के बाद भी FIR में किसी भी आरोपी का नाम दर्ज नहीं करती है।

मोबाइल फोन था अहम सबूत, पुलिस ने हल्के में लिए

घटनास्थल से पुलिस ने मोबाइल को ज़ब्त किया था। इस मोबाइल का उपयोग घटना का एक अन्य वीडियो बनाने के लिए किया गया था लेकिन मोबाइल फोन और उसके मेमोरी कार्ड को जांच के लिए फॉरेंसिक लैब में नहीं भेजा गया। मोबाइल के मालिकाना हक को प्रामाणिक करने के कोई दस्तावेज़ नहीं थे और मोबाइल ज़ब्ती के दौरान स्वतंत्र गवाह बयान से पलट गए।

बहरहाल, अब जबकि फैसला आ चुका है और सातों आरोपी बरी हो गए हैं। मौजूदा राजस्थान सरकार पूरे मामले की फिर से जांच कराने के आदेश दे रही है और पहलू खान का परिवार फैसले को चुनौती देने की बात कर रहा है। इस केस के गवाह अज़मत ही नहीं, पहलू खान के बेटे इरशाद और आरिफ भी कोर्ट के फैसले से ठगा महसूस कर रहे हैं।

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