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“पैसों की तंगी के कारण प्री क्वालीफाई करके भी नैशनल चैंपियनशिप नहीं खेल पाई”

वैशाली

वैशाली

मैं वैशाली पांडे एक सफल राइफल शूटर हूं। मुझे शुरू से ही खेलों के प्रति काफी दिलचस्पी थी, क्योंकि खेल के ज़रिये ही आप खुद को फिट एवं निरोग रख सकते हैं। यह सब चीज़ें तो हैं ही मगर देश के लिए खेलना हमेशा मेरी प्राथमिकताओं में शुमार रहा है।

शूटिंग में मेरी दिलचस्पी तब हुई जब मैंने भारतीय शूटर जीतू राय को रियो ओलंपिक 2016 में भारत का प्रतिनिधित्व करते देखा। मेरे घर वाले शुरुआती दिनों में तैयार नहीं हुए, क्योंकि उनके ज़हन में भी खेलों के प्रति वहीं चीज़ें हावी थी, जो आमतौर पर भारत में लगभग हर पेरेन्ट्स की चिंता होती है।

मेरे घर की आर्थिक स्थिति भी उतनी अच्छी नहीं है कि इस गेम में और बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए हम काफी पैसे खर्च कर पाएं। मैं अपना खर्च वहन करने के लिए ट्यूशन पढ़ाती हूं ताकि बुनियादी चीज़ों के लिए मुझे परेशानियों का सामना नहीं करना पड़े।

मेरे साथ अक्सर ऐसा होता था कि खेलों के प्रति मेरी दिवानगी मुझ तक ही सीमित रह जाती थी, समाज की वही सोच हावी होने लगती थी कि लड़कियों का स्पोर्ट्स में भला क्या काम है!

मुझे लगातार ताने सुनने को मिलते थे कि इस स्पोर्ट्स में मेरा कुछ नहीं हो सकता और यहां तक कहा जाता था कि मैं पैसे बर्बाद कर रही हूं। कई तरह के ताने सुनने को मिलते थे, जैसे- इतने पैसे में तो इसकी शादी हो जाएगी वगैरह-वगैरह। इन चीज़ों से मेरा मनोबल टूटता ज़रूर था लेकिन एक दिन मैंने अपनी माँ को समझाया और इसी गेम में आगे बढ़ने का निश्चय कर लिया।

वैशाली पांडे।

बाद में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, क्योंकि यह गेम बहुत मंहगा है। गोलियों की ही कीमत बहुत अधिक होती है, जिन्हें खरीदना हमारे बस की बात नहीं है। इस गेम में कई नियम तो ऐसे हैं जिनके मापदंडों पर खड़ा उतरना ही चुनौती है। जैसे- आप जब तक आधिकारिक तौर पर नैशनल लेवल के प्लेयर नहीं बन जाते हैं, तब तक ना तो आपको लाइसेंस मिलेगी और ना ही आप राइफल खरीद पाओगे।

प्रैक्टिस के दौरान  पहले तो मुझे राइफल ही नहीं मिली, क्योंकि वहां एक राइफल से ही कई लोगों को काम चलाना पड़ता है। उनमें इतनी खामियां होती हैं कि आपका निशाना परफेक्ट होना मुश्किल ही है। खैर, उसी राइफल से खेलते हुए कई मेडल्स जीतने के साथ-साथ प्री-नैशनल के लिए क्वालीफाई भी किया मगर पैसों की तंगी के कारण नैशनल के लिए खेलने नहीं जा पाई। अब उतने पैसे तो हैं नहीं कि कारतूस खरीद पाऊं।

मैं भारत सरकार से विनती करती हूं कि मुझे आर्थिक रूप से सहयोग करें ताकि गोलियां खरीदने के लिए मेरे पास पैसे हों और मैं इस गेम के ज़रिये देश का नाम रौशन कर पाऊं।

एक नज़र मेरी उपलब्धियों पर-

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