पहलू खान मॉब लिंंचिग केस में अलवर की अदालत ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया। बता दें अप्रैल 2017 को गौ-तस्करी के आरोप में भीड़ ने पहलू खान को पीट-पीटकर घायल कर दिया था, जिसके कुछ दिनों बाद अस्पताल में उनकी मौत हो गई।अब जब सभी आरोपी बरी कर दिए गए हैं, तो क्या यह मानकर चला जाए कि पुलिस सबूत जुटाने में नाकाम हो गई?
खैर, अब राजस्थान सरकार द्वारा एसआईटी गठित कर दिया गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 15 दिनों के अंदर इस मामले को लेकर रिपोर्ट मांगी है। बता दें पहलू खान, अखलाख और तबरेज़ अंसारी की मौत मॉब लिंचिंग से ही हुई है। वहीं, दूसरी ओर पत्रकार गौरी लंकेश, जज बीएच लोया, नजीब अहमद और रोहित वेमुला ये सभी राजनीति के शिकार हुए।
मॉब लिंचिंग के एक नहीं, बल्कि कई मामले हैं
बता दें रोहित वेमुला हैदराबाद विश्वविद्यालय में पीएचडी के स्टूडेंट थे। बताया गया कि उनके साथ एबीवीपी के स्टूडेंट्स ने मारपीट की थी, जिसके बाद उनकी मौत हो गई। वहीं, पुलिस के बयान के मुताबिक रोहित ने आत्महत्या की थी लेकिन पुलिस ने इस मामले की जांच तक नहीं की।
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट नज़ीब अहमद अपने कैंपस से ही गायब हो जाते हैं, जिसके बाद इनका पता तक नहीं चलता है। बताया जाता है कि एबीवीपी के स्टूडेंट्स के साथ इनकी मारपीट होती है, फिर बाद में कैंपस से वह रहस्यमय तरीके से गायब हो जाते हैं।
इस मामले में सीबीआई द्वारा जांच की जाती है मगर उनके हाथ कुछ नहीं लगने के कारण जांच रोक दी जाती है। आपको याद होगा राजस्थान में शंभूलाल रैगर ने मुस्लिम मज़दूर की कुल्हाड़ी से हत्या कर दी थी। ‘हिन्दू वीर’ शंभूलाल के हाथों मारे गए मज़दूर की तीन बेटियां और उनकी पत्नी हैं, जिन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है।
ऐसे परिवार को सरकार की तरफ से कोई राहत भी नहीं मिली है। उधर शंभूलाल के परिवार का खर्च हिन्दू संगठन उठा रहे हैं। जेल में भी उनका ख्याल रखा जा रहा है और खबर है कि वह जल्द ही बाहर आ जाएंगे।
मॉब लिंचिंग मामले में न्याय मिलना मुश्किल क्यों?
पहलू खान, अखलाक और तबरेज़ अंसारी के इन परिवारों की दर्द समझने की कोशिश कीजिए। इन सभी लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया। तबरेज़ अंसारी के केस में पुलिस की कार्रवाई पर भी कई सवाल उठे थे।
एक और गंभीर सवाल यह भी है कि पहलू खान को इंसाफ मिलने में इतनी देरी क्यों हो रही है? जबकि इस घटना की वीडियो भी उपलब्ध है। ऐसे में यह कहना भी गलत नहीं होगा कि पहलू खान के आरोपियों की रिहाई न्याय व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह है।
पिछले दो साल से पुलिस इस मामले में आरोपियों को सज़ा नहीं दिलवा सकी। मैंने यह गौर किया है कि जब भी बीजेपी के सामने मुश्किलें आई हैं, तब मॉब लिंचिंग और दंगों में इज़ाफा देखने को मिली है। तो क्या हम मान लें कि मॉब लिंचिग करवाने में सरकार के लोगों का हाथ है? या सरकार की मिलीभगत से आरोपियों को बचाने की कोशिश हो रही है।