आज़ाद भारत में महिलाओं ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में अपनी शुरुआती भागीदारी दर्ज़ की। शायद उस दौर में महिलाओं के लिए यह सबसे अधिक सुरक्षित क्षेत्र माना जाता रहा होगा।
70 के दशक में भारतीय पुलिस सेवा में उस दौर के उत्तरप्रदेश और आज के उतराखंड से कंचन चौधरी भट्टाचार्य ने अपनी दस्तक दी, जो उस समय नामुकिन को मुनकिन करने जैसी चीज़ थी, जिसने सैकड़ों लड़कियों और महिलाओं के लिए पुलिस सेवा में भर्ती का रास्ता खोल दिया।बीते सोमवार को 72 वर्षीय कंचन चौधरी भट्टाचार्य ने मुबंई में अपनी अंतिम सांस ली। वह पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रही थीं।
धारावाहिक उड़ान के ज़रिये लोगों के दिलों में दस्तक
80 के अंतिम दशक में जब हाथों से नॉब घुमाकर चैनल बदलने वाला टेलीविज़न, रिमोट के ज़रिये संचालित होने लगा था तब रामायण और महाभारत के अलावा लोगों के मन में कुछ नया देखने की उत्सुकता थी।
उसी दौरान कल्याणी सिंह के पुलिस सेवा में दाखिल होने की कहानी पर आधारित धारावाहिक ‘उड़ान’ ने लोगों को मनोरंजन के तौर पर कुछ नया ज़रूर दिया। उस कार्यक्रम में ताज़गी, जोश, उत्साह और कर्तव्य के प्रति प्रेम भी था। कल्याणी सिंह के किरदार को कविता चौधरी ने निभाया, जो कंचन चौधरी की बहन हैं।
इस धारावाहिक की निर्माता भी वही थीं और कहानी भी उन्होंने ही लिखी थी। शायद दोनों बहन चाहती थी कि पुलिस सेवा में आने वाली लड़कियां वह सब कुछ जाने, जिसे दोनों बहनों ने देखा, भुगता और समझा था।
उत्तराखंड के समान्य मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाली कंचन ने अपनी शुरुआती पढ़ाई पंजाब में अमृतसर से पूरी की और दिल्ली विश्वविद्यालय से अंगेज़ी साहित्य में एमए की पढ़ाई की। 1973 में किरण बेदी के बाद कंचन चौधरी को देश की दूसरी महिला आईपीएस अधिकारी बनने का गौरव प्राप्त है।
संवेदनशील और उत्कृष्ट गुणों वाली अधिकारी थीं
उत्तराखंड बनने के बाद कंचन चौधरी 2004 में पुलिस महानिदेशक के पद पर भी रहीं। उन्हें देश की पहली महिला डीजीपी बनने का गौरव प्राप्त था। हालांकि शुरुआत में वह यूपी कैडर से थीं मगर बाद में उन्होंने उत्तराखंड कैडर ले लिया। इससे पहले वह सीआईएसएफ में महानिदेशक भी रह चुकी थीं।
आमतौर पर महिलाओं को बहुत सख्त पुलिस अधिकारी मान लिया जाता है मगर कंचन मे बारे में उनके सहयोगी अधिकारी बताते हैं कि वह काफी संवेदनशील और उत्कृष्ट गुणों वाली अधिकारी थीं। उन्हें सन् 1997 में राष्ट्रपति पदक से भी नवाज़ा गया। इसके साथ-साथ उन्होंने मेक्सिको में आयोजित इंटरपोल सभा में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया था।
2007 में रिटायर होने के बाद उन्होंने हरिद्वार को अपना आवास बनाया। 2014 में उन्होंने आम आदमी पार्टी के टिकट पर हरिद्वार से चुनावी मैदान में भी उतरीं मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस वजह से उन्होंने राजनीति से जल्द ही किनारा कर लिया।
आईपीएस अधिकारी से डीजीपी बनने के सफर में कंचन चौधरी का जीवन एक पहाड़ी लड़की के संघर्षों से जूझने की कहानी है, जो महिला सशक्तिकरण की दिशा में लड़कियों और महिलाओं को अपने सपनों की उड़ान भरने के लिए प्रेरित करती रहेगी।
संदर्भ- बीबीसी हिंदी