भारतीय राजनीति में हर उस महिला नेत्री का राजनीतिक सफर और उसकी उपलब्धियां महत्व रखती हैं, जिसने पारिवारिक और सामाजिक चौहद्दियों को तोड़कर अपना विशेष मुकाम हासिल किया। सुषमा स्वराज उन महिला नेत्रियों में से हैं, जिन्होंने इन चौहद्दियों का अतिक्रमण भी किया और उनके बीच संतुलन भी कायम किया।
भारतीय राजनीति में जेपी आंदोलन के बाद के दिनों में शायद ही कोई शख्स होगा, जो सुषमा स्वराज की बेबाक भाषण-शैली और उनके व्यक्तित्व से प्रभावित नहीं हुआ हो।
लिम्का बुक में भी नाम है दर्ज़
राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सदस्य हरदेव शर्मा के घर अम्बाला में 14 फरवरी 1952 को पैदा हुईं सुषमा स्वराज संघ के आबो-हवा में पली-बढ़ी। सुषमा स्वराज एनसीसी की सर्वोच्च कैडेट भी रहीं हैं। तीन बार लगातार राज्य की सर्वोच्च वक्ता का सम्मान भी उनके नाम दर्ज़ है। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री भी हासिल की थी।
सुषमा स्वराज की शादी स्वराज कौशल से हुई, जो सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता के पद पर कार्यरत थे। वह सबसे कम उम्र में मिजोरम के राज्यपाल बने और 6 साल तक राज्यसभा सांसद भी थे। स्वराज दम्पति की उपलब्धियों के लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज़ है।
जयप्रकाश आंदोलन से शुरू हुआ राजनीतिक सफर
जब जयप्रकाश नारायण आपातकाल के पुरज़ोर विरोध में खड़े थे, तब सुषमा स्वराज ने भी आंदोलन का हिस्सा बनने का फैसला लिया था। वहीं से सुषमा स्वराज का राजनीतिक सफर भी शुरू हुआ, जिसका सक्रिय अंत 2019 के लोकसभा चुनाव हुआ, जब उन्होंने स्वयं को चुनाव से दूर कर लिया। उन्होंने जनसंघ के दौर में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी।
एक नज़र
वह सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता के पद पर भी काम करती रहीं। उन्हें राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता बनने का सम्मान भी प्राप्त है।
- वह 1977 में पहली बार हरियाणा विधानसभा की सदस्य चुनी गईं और हरियाणा सरकार में ही उन्हें श्रम रोज़गार मंत्री भी बनाया गया।
- 1988 में सुषमा स्वराज को एक बार फिर हरियाणा विधानसभा का सदस्य चुना गया और इस बार उन्हें शिक्षा, खाद्य और नागरिक मंत्री चुना गया।
- 1990 में वह पहली बार राज्यसभा की सदस्य चुनी गई।
- इसके बाद साल 1996 में वह लोकसभा सदस्य चुनी गईं और उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय सौंपा गया।
- 1998 में वह दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। कुछ समय बाद ही उन्होंने दिल्ली विधानसभा पद से इस्तीफा दे दिया और लोकसभा सदस्य का पद जारी रखा।
- इसके बाद 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें दोबारा सूचना एवं प्रसारण मंत्री चुना गया।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि में उनका योगदान
इसके बाद जब भी भाजपा की सरकार केंद्र में आई, उनकी काबलियत को देखते हुए उन्हें अहम मंत्रालय सौंपा गया। वह विदेश मामलों में संसदीय स्थाई समिति की अध्यक्षा रहीं। मोदी सरकार में उन्होंने बतौर विदेश मंत्री कई देशों की यात्रा की।
उन्होंने अपने कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की मज़बूत छवि बनाई। यह मात्र संयोग है कि उन्हें राजनीति में हार का सामना भी केवल महिलाओं से ही करना पड़ा। दिल्ली विधानसभा चुनाव में शीला दीक्षित से और बेल्लारी लोकसभा सीट से सोनिया गाँधी ने उन्हें शिकस्त दी थी।
क्या बेदाग था उनका राजनीतिक जीवन?
सुषमा स्वराज ने एक दफा कहा था, “अगर सोनिया गाँधी पीएम बनीं तो सिर मुंडवा लूंगी, सफेद साड़ी पहनूंगी और ज़मीन पर सोउंगी।” इस बात का भी ज़िक्र करना ज़रूरी है कि मिडल ईस्ट में भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की विदेश मंत्री की हैसियत के बावजूद समझौता कर बुर्का और हिजाब जैसा आवरण पहन वार्ता करना किस भारतीय परंपरा का प्रदर्शन था?
यहां तक कि बाबरी मस्जिद विध्वंस पर उनकी चुप्पी, बतौर महिला उनकी छवि को गैर-लोकतांत्रिक बनाता है। चाहे भ्रष्टाचार के देवता रेड्डी ब्रदर्स की लूट को पोषित करना हो या आर्थिक भगोड़े ललित मोदी को वीज़ा सहूलियतें दिलाकर अपने भांजे, भतीजों और भतीजियों की शिक्षा के लिए पश्चिमी देशों में शैक्षणिक सुविधाएं सुनिश्चित करने जैसी चीज़ें भी तो भ्रष्ट आचरण ही हैं। उनके राजनीतिक सफर में भी दागदार अध्याय हैं, जिन्हें देखकर आंख मूदना संभव नहीं है।
सोशल मीडिया से लोगों के दिलों में दस्तक
विदेश मंत्री के पिछले कार्यकाल में वह सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता को लेकर भी काफी चर्चित थीं। ऐसे कई मौके सामने आए जब विदेश में मौजूद किसी भारतीय ने ट्विटर पर उनसे मदद मांगी और उन्होंने उसकी मदद की। सोशल मीडिया के ज़रिये लोगों से सीधा संपर्क बनाने का उनका तरीका देश की जनता को काफी पसंद आया।
सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का सामना कर रहीं मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्वीट करते हुए कहा कि सभ्य भाषा में की गई आलोचना ज़्यादा असरदार होती है। इस टिप्पणी ने तमाम आलोचको के मुंह पर ताला जड़ दिया था।
वह हर काम की बधाई देने के दौरान ‘मैं’ की जगह ‘हम’ का इस्तेमाल करती थीं और टीम को थैंक्स कहना नहीं भूलती थीं। सुषमा स्वराज को उनके मृदुल स्वभाव और कर्मठ महिला के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। उनका राजनीतिक सफर गरिमापूर्ण ही नहीं, बल्कि अपने विरोधियों के साथ भी सौहार्दपूर्ण रहा।