भारत के लगभग 20% भूभाग में 600 से भी अधिक आदिवासियों का समूह रहता है। आधुनिक युग की शुरुआत के पूर्व जब भारत में कई विदेशी आक्रमणकारी लोगों का प्रवेश होना शुरू हुआ, तब यहां के आदिवासी समुदाय के जनजीवन पर कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि वे आक्रमणकारी लोग इन आदिवासियों के क्षेत्रों में प्रवेश नहीं कर पाए थे।
हूण, मंगोल और मुगलों का भारत में बार-बार आक्रमण करने का मुख्य मकसद सिर्फ कीमती चीज़ों को लूटना था। मुगलों ने भारत में 1526 से 1857 तक लंबा शासन कायम किया लेकिन जब 17वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेज़ व्यापार करने के उद्देश्य से भारत आए, तब उन्होंने धीरे -धीरे अपने साम्राज्य को फैलाना शुरू कर दिया और अंत में उन्होंने पूरे भारत पर कब्ज़ा कर लिया।
आदिवासियों का संघर्ष
जब अंग्रेज़ शासकों ने अपने कानून बनाकर जल, जंगल और ज़मीन पर अपना अधिकार जमाना शुरू किया, तब भारत के आदिवासियों ने सर्वप्रथम डट कर विरोध किया। 1778 में छोटा नागपुर के पहाड़ी सरदारों ने अंग्रेज़ी शासकों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। 1780 में ‘कोल समाज’ एवं ‘तामार समुदाय’ के लोगों ने बगावत कर दिया।
1857 के महान स्वतंत्रता संग्राम में अगुवाई के लिए गोंडवाना के राजा ‘शंकर शाह’ और ‘रघुनाथ शाह’ को ब्रिटिश शासकों ने तोप के मुंह में बांध कर उड़ा दिया था। अंग्रेज़ी हुकूमत की क्रूरता के आगे जब आदिवासी समुदाय के लोग नहीं झुके, तब थक-हारकर 1874 में ब्रिटिश शासकों ने आदिवासी क्षेत्रो में ‘शेड्यूल डिस्ट्रिक्ट ऐक्ट’ पारित कर दिया।
इस कानून के अनुसार वहां अलग प्रशासनिक व्यवस्था प्रारंभ की गई और अन्य क्षेत्रों पर लगे कानून से इन क्षेत्रों को मुक्त कर दिया गया। 1935 में ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट’ पारित हुआ, जो आज के हमारे संविधान का आधार है। इस ऐक्ट के चैप्टर 5 में सेक्शन 91 एक्सक्लूडेड एंड सेक्शन 92 पार्शियली एक्सक्लुडेड के नाम से दो क्षेत्र बनाए गए।
ये दोनों क्षेत्र सारे आदिवासी समुदाय के क्षेत्र थे। इस चैप्टर में यह कहा गया कि इन क्षेत्रों में केंद्र और राज्य के कोई भी कानून लागू नहीं होंगे। इसका अर्थ यह था कि आदिवासी क्षेत्रों में अंग्रेज़ी हुकूमत के उन तमाम कानूनों से यह क्षेत्र मुक्त होंगे जो जल, जंगल और ज़मीन को लूटने के लिए अंग्रेज़ों ने बनाए थे। इसका सीधा मतलब यह था कि भारत का आदिवासी समाज अंग्रेज़ों का गुलाम नहीं था।
आदिवासियों के साथ फरेब
जब देश आज़ाद हुआ और भारत का संविधान तैयार हुआ, तब 1935 में बने ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट’ के चैप्टर 5 को ‘10वें भाग’ में रखा गया। ‘अनुच्छेद 244’ में यह प्रावधान किया गया कि जितने भी आदिवासी क्षेत्र थे, उन्हें पांचवी और छठी अनुसूची में बांट दिया जाए। पांचवी अनुसूची में कुछ क्षेत्र अलग-अलग राज्यों में थे, जहां आदिवासी समुदाय रहते थे।
उन क्षेत्रों को चिन्हित किया गया और उन्हें पांचवी अनुसूची में शामिल कर दिया गया। उन्हें ‘शेड्यूल एरिया’ कहा गया। मिजोरम, नागालैंड और असम जैसे राज्यों में जहां आदिवासियों की संख्या लगभग 95% थी, उन्हें छठी अनुसूची में शामिल कर ट्राइबल एरिया कहा गया। इन क्षेत्रों के लिए कहा गया था कि इनका प्रशासन अलग तरीके से चलेगा।
इन क्षेत्रों का प्रबंधन आदिवासी केंद्रित बनाने का प्रावधान किया गया। ‘अनुच्छेद 244’ के तहत उन आदिवासी क्षेत्रों को पांचवी और छठी अनुसूची में बांटा गया। इन क्षेत्रों के सामान्य और सभी कानून ‘आदिवासी कल्याण’ को ध्यान में रखकर लागू किए जाने थे लेकिन 1950 के बाद विधायिका अर्थात ‘विधानसभा’ ने इस पक्ष में कोई ध्यान ही नहीं दिया। वह सिर्फ सरकार ही चलाते रहे।
जल, जंगल और ज़मीन का दोहन
विडम्बना यह है कि जनजाति समाज के हित में बनी संविधान के इस योजना के संबंध में राज्यपाल, सांसद एवं विधायक अभी तक अंजान हैं। नौकरशाही ने भी मंत्रियों का ध्यान इस ओर नहीं दिलाया। नतीजा यह हुआ कि गुलामी के जिन कानूनों से अंग्रेज़ी हुकूमत ने आदिवासी समाज को मुक्त रखा था, वे सभी कानून स्वाधीन भारत के लोकतांत्रिक सरकारों ने उन आदिवासियों पर लाद दिए। इसके कारण आदिवासी समाज आज़ाद देश का गुलाम बन गया।
उनके क्षेत्र से जल, जंगल, ज़मीन और खनिज का दोहन कर सरकार भरपूर मुनाफा कमा रही है। इस तरह आदिवासी समुदायों के पास सब कुछ होते हुए भी आज कुछ नहीं है।
अपने जल, जंगल और ज़मीन के अधिकारों से भी आदिवासी वंचित हैं। हम किसे दोष दें? हमारे अपने लोगों को या उन विदेशी लोगों को जो हमारे लिए कानून बना कर चले गए?
आज स्वतंत्र भारत में आदिवासी समाज जिस हाल में है, वह बयान करने लायक नहीं है। उनके जल, जंगल और ज़मीन, खनिज संपदाओं को लूटकर उद्योगपति एवं राजनेता मौज कर रहे हैं। दु:ख इस बात का है कि अंग्रेज़ हमसे डर गए मगर हमारे ही लोग आज हमें डरा, धमका कर लूट रहे हैं।
आदिवासी समाज के युवाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा और आगे लड़ाई लड़नी होगी, नहीं तो वे यूं ही अपने जल, जंगल और ज़मीन के अधिकार से वंचित होते रहेंगे और उन्हें कोई बचा नहीं पाएगा।