हमारी संसद में आज एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया है जो ना सिर्फ भारत का राजनैतिक भविष्य बदलने वाला है बल्कि भारत का रूप भी बदलने वाला है।
संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्ज़ा देने वाली धारा 370 को हटा दिया है और राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर भी कर दिए गए हैं। जब से अमित शाह को गृहमंत्री बनाया गया था, तब से ही धारा 370 को खत्म करने की अटकलें तेज़ थीं और आज अटकलें सिर्फ संभावना बनकर ही नहीं रही अपितु एक सत्य के रूप में भी स्थापित हो गई हैं।
फैसले से पहले घाटी की तस्वीर
पिछले तीन-चार दिनों से घाटी में उसी प्रकार शांति छाई हुई थी जिस प्रकार तूफान से पहले का सन्नाटा होता है। महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला और फारूक अब्दुल्ला जैसे नेताओं को घर में नज़रबंद कर दिया गया था अर्थात ‘हाउस अरेस्ट’ कर दिया गया था। इन सब के बीच फौज को भी और मुस्तैद कर दिया गया था।
फैसला लेने से पहले घाटी में धारा 144 लागू कर दी गई थी जिसके तहत इंटरनेट को भी रोक दिया गया था। मतलब बात सीधी है कि यह सबकुछ ‘पूर्व नियोजित’ था और होना भी चाहिए। हालांकि श्रीनगर समेत कुछ हिस्सों में अभी भी तनाव की स्थिति है जो जल्द ही खत्म हो सकती है।
सरकार के फैसले
फिलहाल सरकार के द्वारा तीन बड़े फैसले लिए गए हैं।
- पहला फैसला यही है कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटा दिया गया है।
- दूसरा फैसला यह है कि लद्दाख को जम्मू कश्मीर से अलग कर दिया गया है। लद्दाख को बिना विधानसभा केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है एवं
- तीसरा फैसला यह है कि जम्मू कश्मीर को राज्य के दर्जे से हटाकर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है।
धारा 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। इसके मुताबिक,
भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों- रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिए कानून बना सकती है। इसके अलावा किसी कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती है।
धारा 370 की खास बातें
धारा 370 के हटने से काफी बदलाव आए हैं। जब तक जम्मू-कश्मीर में यह धारा लागू थी, तब तक बहुत सारी बातें थी जिससे यह राज्य कई मायनों में देश के दूसरे राज्यों से अलग था जैसे-
- जम्मू-कश्मीर में बाहर के लोग ज़मीन नहीं खरीद सकते थे।
- राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था
- जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल होता था।
- भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के संबंध में बहुत ही सीमित दायरे में कानून बना सकती थी।
- जम्मू-कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू होता था।
- जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाती थी।
- यदि कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती थी, तो उसके पति को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी।
- जम्मू-कश्मीर में पंचायत के पास कोई अधिकार नहीं था।
- जम्मू-कश्मीर में काम करने वाले चपरासी को आज भी ढाई हज़ार रूपये ही बतौर वेतन मिल रहे थे।
- कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों को 16 फीसदी रिज़र्वेशन नहीं मिलता था।
- जम्मू-कश्मीर का झंडा अलग होता था।
- जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी।
- प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट्स टू नैशनल ऑनर ऐक्ट 1971 यहां लागू नहीं था इसलिए जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं था। यहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश मान्य नहीं होते थे।
- धारा 370 के चलते कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती थी।
- सूचना का अधिकार (RTI) लागू नहीं होता था।
- शिक्षा का अधिकार (RTE) लागू नहीं होता था। यहां सीएजी (CAG) भी लागू नहीं था।
लेकिन अब यह सब खत्म हो जाएगा और कश्मीर में भी भारत के कानून, संविधान एवं सुप्रीम कोर्ट के तहत कार्य होगा।
असल मायने में अब मिली आज़ादी
कुछ अलगाववादी नेताओं और कश्मीर के स्थानीय नेताओं का कहना है कि इस फैसले से कश्मीर के लोगों के अधिकार छीने जा रहे हैं लेकिन धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर के लोगों को ‘आज़ादी’ मिलेगी। वो आज़ादी जो पिछले 70 सालों से उनके पास नहीं थी।
अब कश्मीर में RTI और CAG भी लागू होगा जिससे लोगों को व्यक्तिगत आज़ादी मिलने के आसार हैं। कश्मीरी महिलाएं भी अब भारतीय मूल के निवासी से शादी कर सकती हैं और उनसे कश्मीरी नागरिकता भी नहीं छीनी जाएगी।
सरकार के इस फैसले का खुलकर स्वागत होना चाहिए ना कि इसे असंवैधानिक करार देना चाहिए। कश्मीर और भारत के लोगों को यह नई आजादी मुबारक हो।
अब नए भारत के संकल्प को कश्मीर व भारत साथ मिलकर पूरा करेंगे क्योंकि कश्मीर भारत का सदैव अभिन्न हिस्सा रहा है और रहेगा। सच कहू्ं तो धारा 370 की सांस बन्द हुई और भारत की सांसे आज़ाद हुई।
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