वैसे तो भारत को आज़ाद हुए 72 साल हो गए हैं लेकिन फिर भी हमारे देश का नागरिक आज़ाद नहीं है। देश आज़ाद हो गया लेकिन देशवासी अभी भी बेड़ियों के बंधन में बंधे हैं।
यह बेड़ियां हैं भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, कालाबज़ारी, आरक्षण और गरीबी की। आपने इन बेड़ियों के बारे में पढ़ा और सुना भी होगा लेकिन जिस बेड़ी की मैं बात करना चाहता हूं वह है, निजी या गैर-सरकारी क्षेत्र में रोज़गार की।
हमारे देश के करोड़ों लोग निजी या गैर-सरकारी क्षेत्र में काम करते हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है लेकिन फिर भी इस क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों की दशा दयनीय है।
निजी क्षेत्र में नौकरी के प्रकार
निजी क्षेत्र में कर्मचारियों को दो प्रकार से नौकरी दी जाती है।
- पहला उस कंपनी के अंतर्गत जिसमें वह काम कर रहा है और
- दूसरा ठेकेदार के अंतर्गत।
इन दोनों प्रकार की नौकरियों में बस इतना ही अंतर है कि अगर आप किसी ठेकेदार के अंतर्गत काम करते हैं और वह आपको कह देता है कि कल आप मत आइए तो आप नहीं जा सकते। दूसरी तरफ अगर आप किसी कंपनी के अंतर्गत आप काम कर रहे होते हैं तब ऐसा नहीं होता है।
ठेकेदार के अंतर्गत काम करने में आप इस बात पर पक्के नहीं हो सकते कि हमें पूरे महीने काम मिलेगा। आप महीने के पांच दिन भी जा सकते हैं, महीने के 15 दिन या पूरे महीने भी।
यह किसी भी कर्मचारी की बहुत दयनीय स्थिति है क्योंकि उसे पता ही नहीं रहता कि वह महीने में कितने दिन काम करेगा। इसका सीधा मतलब यह है कि एक कर्मचारी को कितने दिन के पैसे मिलेंगे यह उसे पता ही नहीं रहता है।
निजी क्षेत्र में छुट्टियां
वैसे तो आपको सरकारी नौकरियों की छुट्टियों के बारे में तो पता ही होगा लेकिन क्या आपको निजी क्षेत्र की छुट्टियों के बारे में पता है? जन्माष्टमी, तीज, नया साल, स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन, दुर्गा पूजा और गुरु नानक का जन्मदिन आदि।
यह वे छुट्टियां हैं, जो सरकारी नौकरी वालों को तो मिलती है लेकिन निजी क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को नहीं मिलती। सरकारी नौकरी के सापेक्ष निजी क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को बहुत ही कम छुट्टियां मिलती हैं। जिस वजह से निजी क्षेत्र में काम कर रहे हैं लोग इन त्यौहारों या इन दिनों से वंचित हो जाते हैं।
निजी क्षेत्र में काम
सरकारी क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को निजी क्षेत्र में काम कर रहे लोगों के मुकाबले ज़्यादा आज़ादी रहती है। जैसे, निजी क्षेत्र में काम कर रहे कुछ लोगों को फोन भी लाने की अनुमति नहीं होती।
यानि की निजी क्षेत्र में काम कर रहे कुछ लोग अपने ड्यूटी टाइम में अपने परिवार से कोई बातचीत नहीं कर सकते। मैं ऐसी नौकरी की तुलना किसी जेल में रहकर काम करने वाले कैदी से करता हूं।
नौकरी से निकाले जाने का डर
आज के ज़माने में हर इंसान सरकारी क्षेत्र में अपनी नौकरी चाहता है। इस चाहत की सबसे बड़ी वजह वेतन और स्थाई नौकरी है लेकिन सरकारी क्षेत्र में भी सबको काम नहीं मिल पाता है।
निजी क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को ना तो वेतन अच्छा मिलता है और ना ही स्थाई रूप से कोई नौकरी। नौकरी से निकाले जाने का डर हमेशा निजी क्षेत्र में काम कर रहे लोगों के मन में बना रहता है।
कई बार निजी क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को नौकरी से निकालने के अजीब कारण सामने आते हैं। जैसे,
आपका वेतन अधिक हो गया हैं। हम आपको इतना नहीं दे सकते।
जी हां, निजी क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को उनका मालिक यह कहकर भी निकाल देता है कि आपका वेतन ज़्यादा हो गया है और इतना मैं आपको नहीं दे सकता।
मुझे पता है हर आदमी को सरकारी क्षेत्र और निजी क्षेत्र में काम नहीं मिल सकता लेकिन प्रत्येक व्यक्ति को किसी अच्छे स्तर पर काम ज़रूर मिल सकता है।
हालांकि, इसका यह मतलब नहीं है कि उससे उसकी आज़ादी छीनी जाए जो उन्हें 72 साल पहले दी जा चुकी है। इस प्रकार की निजी क्षेत्र की नौकरी को मैं नौकरी नहीं गुलामी कहना पसंद करूंगा।