क्या पाकिस्तानी सरकार को अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर भारत का विरोध करने का हक़ है?
यह सवाल बहूत ज़रूरी है क्योंकि जबसे भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाई है, तब से पाकिस्तानी सरकार इसपर हमलावर हो गई है। पहले वे यूएन गए जहां सिर्फ चीन को छोड़ कर किसी भी और मुल्क ने उनका साथ नहीं दिया और 10 अस्थायी सदस्यों में से 9 ने कहा कि ये भारत पाकिस्तान का आपसी मसला है ।
पर सवाल यह है कि क्या पाकिस्तानी सरकार के पास कोई नैतिकता है जो इसका विरोध करे? इसका सबूत हमें इतिहास में मिलता है जिसका ज़िक्र मैं इन 3 घटनाओं से करूंगा।
- पाकिस्तान ने 1963 में जनरल अयूब खान के नेतृत्व में सिनो-पाक समझौता किया था जिसमें पाकिस्तान ने ज़मीन का एक बहुत बड़ा हिस्सा चीन को बेच दिया था। पाकिस्तान ने उत्तरी कश्मीर और लद्दाख के सैकड़ों वर्ग किलोमीटर भूमि पर चीनी संप्रभुता को मान्यता दे दी थी, जबकि भारत ने आज तक ऐसा नही किया तब भी नही जब 1959 में चीन के जाओ इन लिई ने पंडित नेहरू को कुछ ऐसा ही करने को कहा था।
- यही नहीं हुआ, जहां अनुच्छेद 370 की वजह से 70 साल से इस देश के नागरिक, जम्मू-कश्मीर में जायदाद नहीं खरीद पाए थे, वहीं पाकिस्तान के पंजाब, खयबेर पसख्तूनवाला और सिंध से हज़ारों लोगों ने गिलगित और पाक अधिकृत कश्मीर जिसे पाकिस्तान का विवादास्पद हिस्सा माना जाता है, वहां जा बसे हैं। क्या इस तरह की नागरिकता यूएन के फैसले की धज़्जियां उड़ाना नहीं था।
- आज पाकिस्तान गुस्सा है कि भारत ने जम्मू-कश्मीर को दो भागों में बांट दिया है, पर अगर यह गुनाह है तो यह गुनाह खुद पाकिस्तान सरकार ने भी किया था, जब उनकी सरकार ने कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया था। ये दो हिस्से थे POK और गिलगित। जहां POK के पास अपनी सरकार थी, वहीं गिलगित को 2009 तक इन्होंने सरकार विहीन रखा। 2009 में आसिफ अली ज़रदारी और यूसुफ रज़ा गिलानी ने उस राज्य को पहली सरकार दी।
तो पाकिस्तान को पहले अपना इतिहास पढ़ना चाहिए और फिर पूछना चाहिए खुद से कि क्या उनके पास कोई नैतिक आधार है, भारत के इस ईमानदार काम का विरोध करने का।