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“अनाथ बच्चों को मिलना चाहिए शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण”

पिछले कुछ दिनों से कुछ जाति विशेष लोगों द्वारा बड़े ही उग्र तरीके से आरक्षण की मांग उठाई जा रही है। आपने देखा होगा कि कैसे राजस्थान के गुर्जर समाज, गुजरात में पाटीदार समाज और हरियाणा में जाट समाज ने आरक्षण को लेकर एक लंबी लड़ाई लड़ी। कुछ लोग जो पहले से ही आरक्षित वर्ग में हैं, वे इन लोगों की मांग का कड़ा विरोध कर रहे हैं।

अब एक तीसरा वर्ग भी है जो इन दोनों वर्गों का विरोध कर रहा है। फिर, इन सबसे अलग एक वर्ग ऐसा भी है, जो ना तो कोई मांग उठा रहा है, ना ही कोई विरोध दर्ज़ कर रहा है और ना ही किसी परिवर्तन की मांग कर रहा है। यह वर्ग विशेष है, अनाथ बच्चों का। अब इसे इन बच्चों का सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य कि इन्हें इनकी जाति या धर्म का पता ही नहीं है।

अनाथ की जाति नहीं होती

अभी अगर आप इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं और आपको आपकी जाति का ज्ञान है, तो आप देश के उन भाग्यशाली लोगों में से हैं, जिन्हें अपनी जाति और धर्म का ज्ञान है। वरना  4% लोग ऐसे हैं जिन्हें अपनी जाति का कोई ज्ञान नहीं है। यह 4% वही बच्चे हैं जिनता ज़िक्र मैंने ऊपर किया है।

जिन बच्चों की बात हम कर रहे हैं, उसमें से 0.3% ही ऐसे हैं जो अपने माता-पिता की मौत से अनाथ हुए हैं, बाकि के लगभग ऐसे हैं जिन्हें उनके घरवालों ने किसी ना किसी कारणवश लावारिस छोड़ा है।

मैं अगर आरक्षण को परिभाषित करुं तो यह एक ऐसी व्यवस्था है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगों के विकास के लिए लागू की गई है। अब अगर मैं इन बच्चों की बात करुं तो मेरे हिसाब से देश के सबसे पिछड़े हुए जो लोग हैं, जिन्हें मदद की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, वह ये अनाथ बच्चे ही हैं।

मेरा मानना शायद गलत भी नहीं है क्योंकि जिन लोगों को हम आमतौर पर पिछड़ा हुआ मानते हैं, उनके पास माँ-बाप, रिश्तेदार, जान-पहचान वाला या फिर कोई ना कोई होता है मगर इन बेचारों के पास तो यह आस भी नहीं है।

जाति रहित समाज की कल्पना?

आप सबको यह जानकर बड़ी हैरानी होगी कि देश की आज़ादी के 73 साल बाद भी इन पिछड़े अनाथ लोगों के लिए किसी सरकार के पास कोई योजना नहीं थी। जिससे इन लोगों का भला हो सके। राज्यसभा में ऐसा इकलौता प्रस्ताव 2012 में पेश हुआ था। The orphan (Reservation of posts in govt. Establishment )Bill 2012 जिसे सरकार ने जटिलताओं की बात कहकर ठुकरा दिया था।

मैं ना तो आरक्षण का समर्थक हूं और ना ही इसका विरोधी परन्तु हमारे देश में यह व्यवस्था जिन लोगों के लिए लागू की गई है, उन्हें इसका लाभ मिलना चाहिए। असली हैरानी तो इसी बात की है कि जिसे इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, वही जाति रहित लोग इसके पात्र नहीं हैं।

अब अगर इन लोगों को आरक्षण का लाभ लेना है तो या तो वह व्यवस्था में परिवर्तन करवाएं या फिर अपनी जाति का प्रूफ लेकर आएं, मगर यह दोनों काम आज असंभव से प्रतीत होते हैं।

इन सब बातों को देखकर एक जाति रहित समाज की कल्पना बेईमानी लगती है। जाति रहित लोगों की दुर्दशा आपके सामने है। क्या इन लोगों को आरक्षण की ज़रूरत नहीं है?

 

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