आज़ादी के संदर्भ में जब भी बातें होती हैं, आमतौर पर हर ज़हन में अंग्रेज़ों की गुलामी से आज़ादी की बातें होने लगती हैं। मतलब ठीक है हमें लंबे संघर्ष के बाद गुलामी की बेड़ियों से आज़ादी मिली है तो जश्न मनाना स्वाभाविक है मगर इस जश्न के बीच क्या हमने कभी रोज़मर्रा की आज़ादी पर बात की है?
जी नहीं, आज़ादी को हमने एक सांचे के अंदर डाल दिया है जिसके तहत मुल्क के आज़ाद होने का जश्न शीर्ष पर होता है लेकिन मुल्क के अंदर तो लोग भी हैं। क्या वे खुद को आज़ाद महसूस करते हैं? जब ज़िक्र मुल्क के लोगों की होती है, तब उनकी आज़ादी के संदर्भ में जो पहली चीज़ ज़हन में आती है वो यह कि क्या नौकरी के लिए इंटरव्यू देते समय या नौकरी करते हुए उन्हें भाषा की आज़ादी है? एक इंजीनियरिंग स्टूडेंट के तौर पर इस सवाल का जवाब मैं बेहतर तरीके से दे सकता हूं।
साल 2015 में इंजीनियरिंग की मेरी पढ़ाई खत्म होने के बाद मैंने कई कंपनियों में इंटरव्यू दिया। जॉब इंटरव्यू के लिए जिस पहली कंपनी में मैं गया, उसका नाम है एमटेक ऑटो लिमिटेड। वहां एचआर राउंड में इंट्रोडक्शन व्गैरह पूछे जाने के बाद मुझे नेक्स्ट राउंड के लिए भेजा गया, जहां एक टेक्निकल एक्सपर्ट मेरा साक्षात्कर ले रहे थे। मुझे उस वक्त बहुत हैरानी हुई जब मेरे कोर्स से जुड़ी चीज़ों पर ज़्यादा बात ना करते हुए उन्होंने धड़ल्ले से अंग्रेज़ी में बात करना शुरू कर दिया। अब बीटेक हूं, अंग्रेज़ी भैंस बराबर तो है नहीं!
मुझे उस टेक्निकल एक्सपर्ट पर काफी गुस्सा आ रहा था। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें कंपनी ने सही उम्मीदवार के चयन की ज़िम्मेदारी दी थी लेकिन अंग्रेज़ी को पैमाना मानकर वह साक्षात्कार ले रहे थे। मुझे लगा भाईसाहब से पूछता हूं कि क्या गारंटी है जिनकी अंग्रेज़ी अच्छी होगी, उनके पास अपने कार्यक्षेत्र में भी अच्छा ज्ञान होगा।
अगर उनका चयन किया भी जाता है तो कंपनी के ग्राहकों के साथ कितना बड़ा धोखा होगा, क्योंकि कंपनी में काम करने वाले तमाम इंजीनियर्स को तो अंग्रेज़ी के आधार पर नियुक्ति मिली है। मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि इंटरव्यू प्रॉसेस के दौरान बिल्कुल भी टेक्निकल चीज़ों पर बात नहीं होती लेकिन मेरे अब तक के अनुभव के आधार पर यह कह सकता हूं कि मैं जहां कहीं भी इंटरव्यू के लिए जाता हूं, वहां अंग्रेज़ी ही उनकी प्राथिमकता होती है।
ऐसे में प्रोफेशनल कोर्सेज़ कराने वाली संस्थाओं के पास क्या ग्रामीण इलाकों से आने वाले स्टूडेंट्स के लिए मुफ्त में अंग्रेज़ी सिखाने की कोई व्यवस्था है?
खैर, इसके बाद क्वालिटी ऑस्ट्रिया सेंट्रल एशिया नामक कंपनी में इंटरव्यू के लिए मेरा जाना हुआ। यहां भी वैसी ही चीज़ें देखने को मिली। एचआर राउंड के बाद फर्राटेदार अंग्रेज़ी के ज़रिये यह बताने की कोशिश की गई कि काम चाहे कितना भी कर लीजिए लेकिन अंग्रेज़ी के साथ कोई समझौता नहीं।
मैं एक चीज़ समझना चाहता हूं कि किसी भी कंपनी में नौकरी हासिल करने के बाद हमारी अंग्रेज़ी हमारे बदले काम करेगी या हमारा काम? अगर हमारे पास इतनी क्षमता है कि हम अपने काम के ज़रिये खुद को साबित कर सकते हैं, तो सरकारें प्राइवेट कंपनियों पर अंग्रेज़ी थोपने के मामने में कोई एक्शन क्यों नहीं लेती हैं?
एक सवाल मौजूदा शिक्षा व्यवस्था पर भी है और वो यह कि क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था इतनी नाकाम है कि नर्सरी से लेकर उच्च शिक्षा ग्रहण करने तक हम ठीक से अंग्रेज़ी नहीं बोल पाते?