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क्या मज़बूत विपक्ष का ना होना भाजपा की जीत की बड़ी वजह है?

पीएम मोदी

पीएम मोदी

30 मई 2019 को नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। 2019 के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी और एनडीए की ऐतिहासिक जीत ने बड़े-बड़े राजनीतिक रणनीतिकारों की रणनीति को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है।

आइये जानते हैं आखिर ऐसे कौन से कारण थे, जिन्होंने राहुल गाँधी के ‘चौकीदार चोर है’ वाले नारे और ‘राफेल डील’ मामले में उठाये गए प्रश्नों को नरेंद्र मोदी के कद के आगे बौना बना दिया।

मोदी फैक्टर

नरेंद्र मोदी की साफ छवि, कुशल नेतृत्व क्षमता और प्रभावशाली भाषण देने की कला उनकी जीत का एक मुख्य कारण रहे। भ्रष्टाचार का कोई आरोप साबित ना होना और घर-परिवार से राजनीति मे किसी का ना जुड़ना, लोगों के बीच एक सकारात्मक संदेश ज़रूर देती है।

राष्ट्रवाद और विदेश नीति

राष्ट्रवाद का इस्तेमाल राजनीति में पहली बार नहीं किया जा रहा है। अगर हम इतिहास के पन्नों को देखें, तो कुछ इसी तरह राष्ट्रवाद की सीढ़ी चढ़कर बेनिटो मुसोलिनी ने 1922 में इटली की सरकार पर कब्ज़ा जमाया था।

राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है, जो किसी भी देश के लोगों को धर्म-जाति से परे देश के लिए इकठ्ठा होने को विवश कर देती है। इसी बात का फायदा नरेंद्र मोदी को मिला।

मोदी सरकार की कठोर विदेश नीति, UNSC (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) से मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कराना, बालाकोट एयर स्ट्राइक, अभिनन्दन वर्धमान की सकुशल वापसी और उरी हमले के जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक जैसे फैसलों ने सारा माहौल बीजेपी के पक्ष में कर दिया।

फोटो साभार: Getty Images

भारतीय जनता पार्टी की आर्थिक स्थिति काफी मज़बूत थी। बीजेपी को इलेक्टोरल बॉन्ड का भरपूर फायदा मिला। बीजेपी को 2017-18 में इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए कुल 210 करोड़ रुपये मिले, जो कि कुल खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड का 95 प्रतिशत पैसा है।

सपा-बसपा अपनी पुरानी जाति आधारित राजनीतिक रणनीति के ज़रिये चुनाव लड़ी लेकिन भाजपा ने जाति नहीं, बल्कि धर्म पर फोकस किया और नतीजा आपके सामने है। बीजेपी को जीत दिलाने के लिए बनाई गई तमाम रणनीतियों में अमित शाह का बहुत बड़ा योगदान है।

अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों तक बीजेपी की पहुंच

उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त गैस चूल्हा और सिलेंडर, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत किसानों के खातों में 2000 रुपए की धनराशि, शौचालय निर्माण, स्वच्छ भारत मिशन और सौभाग्य योजना के अंतर्गत मुफ्त बिजली कनेक्शन के ज़रिये नरेंद्र मोदी ने सरकार और मतदाताओं के बीच अप्रत्यक्ष रूप से संवाद स्थापित करने का प्रयास किया। इस प्रयास में उन्हें ना सिर्फ अपार सफलता मिली, बल्कि वे मतदाताओं का विश्वास जीतने में कामयाब रहे।

तकनीक का शानदार प्रयोग

2019 के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने सूचना प्रौद्योगिकी का भरपूर इस्तेमाल किया। सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी के प्रचार में भाजपा के आईटी सेल की अहम भूमिका रही है।

नमो ऐप के माध्यम से नरेंद्र मोदी का कार्यकर्ताओं से सीधा जुड़ाव और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से देशभर के कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद का नतीजा है 2019 का चुनाव परिणाम। सूचना प्रौद्योगिकी के सहारे भाजपा ने ना सिर्फ अपनी संगठनात्मक शक्ति में इज़ाफा किया, बल्कि बूथ स्तर पर भी मज़बूत पकड़ बनाई।

मीडिया की भूमिका

नरेंद्र मोदी की छवि को एक शक्तिशाली नेता की छवि बनाने में मीडिया का अहम योगदान रहा है। भारतीय मीडिया के साथ-साथ इंटरनैशनल मीडिया में भी उनको सर्वशक्तिशाली नेता के तौर पर 5 साल तक उछाला गया। सरकार की हर सही-गलत नीति को विकास के चश्में से दिखाया गया। एक लाइन में कहें तो, देश को संतुलित खबरों की कमी महसूस हुई।

युवाओं की भागीदारी

2019 का आम चुनाव देश का पहला ऐसा चुनाव रहा, जिसमें युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। नरेंद्र मोदी की दिवानगी का युवाओं पर काफी असर हुआ। चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 2019 लोकसभा चुनाव में करीब 84 मिलियन युवाओं ने पहली बार वोट डाला।

मज़बूत राजनीतिक दलों की कमी

देश में भाजपा का मुकाबला करने के लिए काँग्रेस एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी मानी जाती थी लेकिन आज काँग्रेस पार्टी कई राज्यों में अपना जनाधार खो चुकी है और कई राज्यों में काँग्रेस की जगह राज्य स्तरीय पार्टियों ने लेली है। काँग्रेस इस बात को समझ नहीं पाई या जान-बूझकर नज़रअंदाज़ किया, जिसका खामियाज़ा काँग्रेस को भुगतना पड़ा।

यह कहना भी गलत नहीं होगा कि पूरा विपक्ष नरेंद्र मोदी का विकल्प जनता के सामने प्रस्तुत करने में नाकाम रहा। भाजपा ने यह चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा लेकिन विपक्षी पार्टियां पुरानी रणनीतियों से चुनाव लड़ने में व्यस्त रहीं, जहां पहले एमपी चुनाव जीतते हैं फिर देश का प्रधानमंत्री चुनते हैं। यहां प्रधानमंत्री मोदी की स्वच्छ छवि के बल पर ही अधिकांश एमपी चुनाव जीतने में कामयाब रहे। यह रणनीति वाकई गौर करने योग्य है।

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