युवा किसी भी राष्ट्र की शक्ति होते हैं और अगर भारत की बात की जाए, तो यहां युवाओं की आबादी सबसे ज़्यादा है। इस लिहाज़ से हम एक शक्तिशाली राष्ट्र हैं।
किसी भी देश का भविष्य उसके युवाओं पर निर्भर करता है। एक नई प्रतिभा के आ जाने से ना सिर्फ देश की प्रगति होती है, बल्कि देश का विकास भी होता है। इसलिए युवाओं के सही मार्ग दर्शन के लिए हर साल 12 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है जिसके लिए अलग-अलग थीम्स रखे जाते हैं। इस बार के अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस का थीम है, Transforming Education यानि कि बेहतर शिक्षा व्यवस्था की ओर।
इस थीम का उद्देश्य सभी युवाओं के लिए शिक्षा को अधिक प्रासंगिक, न्यायसंगत और समावेशी बनाने के प्रयासों पर प्रकाश डालना है।
अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सन 1985 में की गई लेकिन सन 2000 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन हुआ।
भारत में शिक्षा एक व्यापार है
अगर बात करें इस बार की थीम की, तो यह थीम (Transforming Education) भारत के लिए एक ज़रूरी मुद्दा है। क्योंकि भारत में वर्तमान शिक्षा व्यवस्था अनेक समस्याओं से ग्रस्त है जैसे कि आजकल शिक्षा एक बिज़नेस बन गया है, जहां लोगों को बस पैसे कमाने से मतलब है।
हर गली, हर मोहल्ले में स्कूल और कोचिंग हैं, पर उनका मकसद शिक्षा देना नहीं सिर्फ पैसा कमाना है। भारत में कॉलेजों की भरमार है लेकिन अच्छी शिक्षा कुछ ही कॉलेजों में मिलती है। भारत में युवा जनसंख्या ज़्यादा है लेकिन उनके लिए बेहतर स्कूल और कॉलेज बस उंगलियों पर हैं। यही वजह है कि हमारी युवा शक्ति का भविष्य अंधकार में नज़र आता है।
स्टूडेंट्स नहीं कर पाते एक विषय पर फोकस
आपने खुद देखा होगा कि छोटे-छोटे बच्चों के बस्ते कितने भारी हो गए हैं। ढ़ेर सारी किताबें हो गई हैं। इस देश में एक स्टूडेंट को इतनी किताबें पढ़नी पड़ती हैं कि वे किसी एक विषय पर फोकस ही नहीं कर पाते। यह गलती हमारी शिक्षा व्यवस्था की है और हम गलती अपने बच्चों की समझते हैं जो कि मेरे हिसाब से बहुत ही गलत है।
खुद सोचिए, एक बच्चा हर विषय में निपुण कैसे हो सकता है? हो सकता है कोई मैथ्स में अच्छा हो तो कोई सोशल साईंस में। यह भी हो सकता है कि किसी बच्चे का किताबी ज्ञान अच्छा ना हो लेकिन वह खेल में अव्वल हो। तो ऐसे में बच्चे को उसकी पसंद और कैलिबर के हिसाब से फोकस्ड रहने देना चाहिए ना की उसे हर किताब पकड़ा कर हरफनमौला हो जाने की उम्मीद करनी चाहिए। यह भी एक बच्चे के साथ शोषण जैसा है।
यही नहीं, आजकल स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक भी केवल इसलिए पढ़ाते हैं ताकि उनकी नौकरी बनी रहे। उन्हें बच्चों के भविष्य के अच्छे-बुरे से कोई मतलब नहीं है। वह ज़माना गया जब शिक्षक अपने काम को एक ज़िम्मेदारी मानते थे।
सरकारी बनाम निजी शिक्षण संस्थान
अगर बात करें निजी और सरकारी शिक्षण संस्थानो की, तो दोनों में बहुत अंतर है जैसे की,
- एक ओर जहां देश के निजी स्कूल और कॉलेज अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त हैं, वहीं दूसरी ओर देश के सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की स्थिति बेहद चिंतनीय है।
- कई सरकारी स्कूलों की हालत तो इतनी खराब है कि वहां बच्चो के बैठने तक की सुविधा नहीं है।
बच्चे नीचे ज़मीन पर बैठते हैं और अगर बात करें सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की तो वे तो बस वहां अपनी ड्यूटी देने जाते हैं बाकी उनको किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं है। - निजी स्कूलों और कॉलेजों की बात करें तो वहां वही लोग पढ़ सकते हैं जिनके पास पैसे होते हैं क्योकि आजकल निजी कॉलेज/स्कूल का मतलब ही है पैसा ।
कैसे बनेगी बेहतर शिक्षा व्यवस्था?
देश की शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए हमें सबसे पहले
- स्कूल और कॉलेज के हालात ठीक करने होंगे जैसे कि सरकारी स्कूलों में बच्चों के बैठने, शौचालय, लैब और लाइबरेरी आदि की व्यवस्था हो।
- शिक्षकों की कॉउंसलिंग की जाए और उन्हें बेहतर शिक्षा देने के लिए ट्रेन किया जाए।
- बच्चों पर किताबों का बोझ कम कर दिया जाए ताकि बिना टेंशन वे ज़रूरी चीज़ों पर फोकस कर पाएं।
- बच्चों का टाइम टेबल सही करना होगा ताकि वे सेल्फ स्टडी कर पाएं और कुछ अलग सीख पाएं।
- स्कूल और कॉलेजों में लेक्चर से ज्यादा प्रक्टिकल करवाए जाएं।
मेरा मानना है कि जब बच्चे कुछ अलग करेंगे तभी कुछ सीखेंगे और उनका सीखना ही देश को बदलेगा। तब जाकर सही मायने में कहा जा सकता है कि इस देश में Transformation हुआ है। बात साफ है कि जब यूथ बदलेगा तो देश बदलेगा।