किसी भी सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्र का, अपने अस्तित्व और गौरव को बनाए रखने के लिए आत्ममंथन और आत्मचिंतन करना अनिवार्य होता है। आज भारत देश एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां उसके सभी संस्थान ठप हो चुके हैं। विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश, भारत अभी परिवारवाद (काँग्रेस शासन) से निकला ही था कि सत्तावाद और प्रभुत्ववाद के कगार पर आ पहुंचा।
आम आदमी मजबूर है
भले ही जीडीपी और वर्ल्ड बैंक के जादुई आंकड़े अपनी चोटी पर हो लेकिन सामान्य नागरिक का जीवन महंगाई की मार और चरमपंथ की मृत्युशय्या पर अपनी अंतिम सांसें ले रहा है। भले ही भारत चंद्रयान-2 की सफलता की उपक्रम और शौर्य गाथा लिख रहा हो लेकिन आज भी भारत में हज़ारों चंद्रपुर जैसे गाँव के लाखों किसान कृषि संकट और जायज़ वेतन ना मिलने के कारण आत्महत्या करने पर मजबूर हैं।
भले ही प्रधान सेवक सर्जिकल स्ट्राइक का दंभ भर रहे हों लेकिन बहादुर सैनिकों को पर्याप्त गुणवत्ता का भोजन तक मयस्सर नहीं है। सरकार भले ही ट्रिपल तलाक बिल को मुस्लिम महिलाओं को दिलाया गया न्याय कह रही हो लेकिन उन्हीं महिलाओं के पास ना ही कोई कॉलेज है ना ही कोई रोज़गार जिससे वे अपना जीवन स्तर सुधार सकें।
भारत में भले ही विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा हो लेकिन भारत के गाँवों में महिलाओ का जीवन स्तर इतना नीचा है कि उन्हें पीने का पानी लाने के लिए कई मील दूर चलना होता है, फिर भी वे साफ और स्वच्छ जल नहीं प्राप्त कर पाती हैं।
क्या यह असहिष्णुता का दौर है?
आज भारत में कुछ लोगों की मानसिकता इतनी संकीर्ण हो गई है कि उसे किसी अन्य धर्म के डिलीवरी बॉय तक स्वीकार नहीं है। आज भारत में आतंक और क्रूरता का आलम यह है कि मुसलमानों के शोषण के दौरान उन्हें “जय श्री राम” बोलने पर मजबूर किया जाता है।
भीड़ किसी इंसान को मौत के घाट उतार देती है लेकिन पास खड़े लोग अपने फोन से वीडियो निकालने में व्यस्त होते हैं। इतना ही नहीं पत्रकार, पत्रकारिता की बजाए सरकार और इन उग्रवादियों की चाटुकारिता में लगी रहती है।
यदि भारत में उग्रवाद को नहीं रोका गया, तो वह दिन दूर नहीं जब भारत भी मध्यपूर्व के देशों जैसा हो जाए। इसी दमन और तिरस्कार को लेकर पंजाब में कई अलगाववदियों ने जनमत संग्रह 2020 नाम से एक आंदोलन शुरू कर दिया है, जिसमें अलगावादियों की मांग है कि उन्हें भारतीय संघ से अलग पंजाबी भाषी क्षेत्र दिया जाए, जिसके लिए वह जनमत संग्रह करवाने की मांग कर रहे हैं। इसी तरह जम्मू एवं कश्मीर मुद्दा कोई ढकी छुपी बात नहीं है।