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“कैसे लिंचिंग के लिए भीड़ को भड़काया जाता है, मैंने वृंदावन में करीब से देखा”

मंदिर

मंदिर

दिल्ली के संदर्भ में आमतौर पर यह शब्द “दिलवालों की दिल्ली” बहुत प्रासंगिक है। दिल्ली को जानने और समझने का हर किसी का अपना अलग-अलग नज़रिया होता है। जैसे- आप मुझसे दिल्ली के भ्रमणशील इलाकों के बारे में पूछेंगे तो शायद वही नाम मेरे ज़ुबान पर आएंगे, जो यहां शैर करने आने वाले लोगों की ज़ुबान पर अक्सर होते हैं। जैसे- अक्षरधाम, लाल किला, पुराना किला, चिड़िया घर, लोटस टेंपल और इस्कॉर्न टेंपल आदि।

मेरा मानना है कि दिल्ली में रहकर यदि आप शानदार वीकेंड की कल्पना कर रहे हैं, तब आस-पास के इलाके जैसे- राजस्थान का भानगढ़, मथुरा, वृंदावन और आगरा आपके लिए बेहतरीन विकल्प हो सकते हैं। खैर, मैं अपनी बात बताऊं तो अभी हाल ही में एक अजीज़ मित्र के साथ वीकेंड में मेरा मथुरा और वृंदावन जाना हुआ।

यह यात्रा मेरे लिए कई मायनों में खास थी। एक तो यह कि वीकेंड में घुमकर आओ तो माइंड एकदम फ्रेश हो जाता है। माइंड फ्रेश करने और दोस्त के साथ टाइम स्पेंड करने से इतर वृंदावन में कुछ ऐसे अनुभव हुए, जो हमेशा याद रहेंगे।

रविवार सुबह मैं और मेरा मित्र बांके बिहारी के मंदिर दर्शन के लिए चले गए। मुझे याद है Youth Ki Awaaz पर ही एक लेख पढ़ा था, जिसमें गैंग द्वारा बंदरों के ज़रिये पर्स या जूते झपटने की बातें थीं। पर्स का तो पता नहीं मगर बंदर ने मेरा जूता और चश्मा ज़रूर झपट लिया।

बंदर ने जैसे ही मेरा जूता लिया, वैसे ही एक व्यक्ति आकर कहता है, “फ्रूटी देने पर मिल जाएगा आपका जूता।” उसने मेरे मित्र से 20 रुपये लिए और मेरा जूता ला दिया। जूता मिलते ही मन तृप्त हो गया और हम कुछ और मंदिर दर्शन के लिए ई-रिक्शा पर बैठकर जाने लगे। अचानक मैंने मैंने देखा कि किसी ने मेरा चश्मा झपट लिया। हालांकि मुझे बताया गया था कि यहां चश्मा नहीं पहनना है, बंदर ले लेते हैं मगर करता भी क्या! चश्मे का पावर बहुत अधिक है।

खैर, हमारे रिक्शे वाले ने हमें दो फ्रूटी लाने को कहा। बंदर ने तो एक ही फ्रूटी के बदले मेरा चश्मा लौटा दिया मगर एक फ्रूटी रिक्शे वाले ने रख लिया। चश्में का फ्रेम बंदर ने कुतर डाला था, जिसके लिए हमें चश्मे की दुकान पर जाना पड़ा। वहां जाकर मालूम पड़ा कि चश्में वाले के पास हर दिन दर्ज़नों चश्में आते हैं, जिन्हें बंदर ने कुतर डाला होता है। यानि कि चश्मा, फ्रूटी और जूते का व्यापार तगड़ा है वहां।

अब आते हैं एक और प्रसंग पर जिसने मुझे झकझोर कर रख देने से ज़्यादा काफी अधिक डरा दिया। मतलब, यह कहना गलत नहीं होगा कि मॉब लिंचिंग होते-होते बच गया।

हम बांके बिहारी के मंदिर दर्शन के लिए जा रहे थे, जहां एक जगह काफी मात्रा में जूते पड़े थे। हमने सोचा कि यह जूते रखने की जगह है। मैं और मेरा दोस्त जूता खोलकर मंदिर दर्शन के लिए चले गए। जब हम वापस आए, तब देखा कि जूते वाली जगह पर काफी संख्या में लोग हैं और वहां खड़ा होना भी दुश्वार है।

हम जैसे-तैसे भीड़ के बीच से उस जगह तक पहुंचने की कोशिश किए, जहां हमने जूते रखे थे। मेरे मित्र को उसका जूता तुरन्त मिल गया मगर मुझे मेरा एक जूता नहीं मिला। इतने में भीड़ के बीच से मंदिर प्रबंधन के किसी व्यक्ति की आवाज़ आई, “ए चश्मा! चल हट वहां से।” खैर, हमारे देश में चश्मा पहने वालों पर व्यंग करना तो आम बात है। मैंने उसकी बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए अपना दूसरा जूता खोजना उचित समझा मगर इतने में वह वहां मौजूद भीड़ को मेरी तरफ इशारा करते हुए कहने लगा कि आपलोग इस चश्में वाले को मारिये।

अगर वह व्यक्ति एक बार कहता तो मैं सोचता चलो ठीक है, भीड़ इतनी जल्दी उग्र नहीं होती मगर वह बार-बार भीड़ की तरफ देखते हुए कहता रहा, “आपलोग चश्मे वाले को मारिये।”

बांके बिहारी मंदिर।

हालात ऐसे थे कि उस भीड़ से निकलने का कोई रास्ता नहीं था। प्रशासन की इतनी लापरवाही कि मंदिर के अंदर प्रवेश करने और निकलने के लिए कोई निश्चित मार्ग नहीं है। एक ही रास्ते से आपको जाना है और वहीं से लोग आ भी रहे होते हैं। यही कुछ 7 फिट की सड़क में लोगों की भीड़ के बीच तेज़ रफ्तार से ई-रिक्शे भी चल रहे होते हैं, जिन्हें रोकने वाला कोई नहीं। रिक्शे वालों के डर से महिलाएं अपने बच्चे को लेकर बृज की पतली गलियों की सीढ़ियों पर चढ़ जाती हैं, ताकि वे और उनके बच्चे सुरक्षित रहें।

बहरहाल, मैं किसी तरह से भीड़ के बीच से निकल गया और कुछ देर बाहर इंतज़ार करने के बाद देखा कि मेरा दोस्त मेरा जूता लेकर आ रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर मैं थोड़ी देर और उस भीड़ में ठहरता, तब शायद परिणाम कुछ बुरे हो सकते थे।

हमारे देश में भी तो इन दिनों ऐसा ही हो रहा है। भीड़ द्वारा जब भी किसी को पीटा जाता है, तब वहां मौजूद लोग वीडियो बनाते हैं और सोशल मीडिया पर यह कहा जाता है कि सिख दंगे के समय जब मॉब लिंचिग हुई थी, तब क्यों खामोश थे? मॉब लिंचिग में किसी मुसलमान के मारे जाने पर हिन्दुओं द्वारा सिख दंगे की बात कह दी जाती है। मॉब लिंचिग का हल केवल इसी वजह से नहीं निकल पा रहा है कि हम मज़हब के नाम पर इसे डिफेंड कर रहे हैं, जिसे रोकना बेहद ज़रूरी है।

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