अभी हाल ही में सैफई मेडिकल कॉलेज की एक घटना की जानकारी मिली, जहां सीनियर स्टूडेंट्स ने 150 मेडिकल स्टूडेंट्स के सिर मुंडवाकर उनसे कदमताल करवाए। यह कोई पहली घटना नहीं है, जब रैगिंग की भयावह तस्वीर देखने को मिली है। इससे पहले भी रैगिंग से जुड़ी कई घटनाएं सुर्खियों में रही हैं।
एक बीटेक डिग्रीधारी के तौर पर मुझे पता है कि रैगिंग क्यों और किन परिस्थियों में होते हैं। इसमें कहीं ना कहीं कॉलेज प्रशासन, वॉर्डन और मुख्य रूप से सीनियर स्टूडेंट्स की बडी भूमिका रहती है।
मेरे कॉलेज में जैसे ही जूनियर स्टूडेंट्स की एंट्री होती थी, मानो सीनियर स्टूडेंट्स के लिए जश्न का माहौल हो। सीनियर स्टूडेंट्स टुकड़ियों में विभाजित होकर रणनीति बनाते थे कि किस तरीके से जूनियर स्टूडेंट्स को परेशान करना है।
मसला यह है कि रैगिंग जैसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या मानसिक तौर पर हम या हमारे शिक्षण संस्थान तैयार हैं? यदि हैं, तो ऐसी घटनाओं की पुनरावृति क्यों होती हैं?
रैगिंग को हमने एक कल्चर बना दिया है। जब हम किसी पेशेवर कोर्स में दाखिला लेने जाते हैं, तब हमें पता होता है कि एक तय समय तक हमें रैगिंग का सामना करना पड़ेगा, फिर तो उन्हीं के साथ बैठकर सिगरेट भी पीना है और ढेर सारी मस्ती भी करनी है। कई स्टूडेंट्स रैगिंग को उचित भी ठहराते हैं। वे दलील देते हैं कि जब भी जूनियर स्टूडेंट्स उलझनों में फंसते हैं, तब रैगिंग लेने वाले सीनियर स्टूडेंट्स ही उनकी मदद करते हैं।
इन सबके बीच बड़ी बात यह है कि रैगिंग के खिलाफ यदि कॉलेज प्रशासन ही कठोर कदम उठाए, तो प्रशासन को एक्शन लेने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। एक तो देश के दूर-दराज़ के इलाकों से तमाम स्टूडेंट्स कॉलेजों में पढ़ने आते हैं, तमाम तरह की परेशानियां होती हैं उनके पास मगर हम उन मसलों पर बात ना करके रातभर उन्हें मच्छरदानी की खूंटी पकड़वा देते हैं, उनसे पानी की बोतलें भरवाते रहते हैं। कई दफा तो उन्हें नग्न भी कर देते हैं।
अभी सैफई मेडिकल कॉलेज में जो कुछ भी हुआ, वह शर्मनाक होने के साथ-साथ शिक्षा व्यवस्था के नाम पर भी धब्बा है। हमें मिलकर इसके लिए कोई हल तलाशने की ज़रूरत है ताकि दूर बैठे पेरेन्ट्स को रैगिंग की तमाम खबरों के बीच अपने बच्चों की चिंता ना सताने लगे।
आइए मैं अपने इस लेख के ज़रिये रैगिंग को कम करने या रोकने की दिशा में कुछ ज़रूरी सुझाव पेश करता हूं-
- पहली ज़िम्मेदारी कॉलेज प्रशासन को लेनी होगी, क्योंकि पेरेन्ट्स से मोटी रकम वही वसूल रहे हैं।
- कॉलेज कैंपस में रात के वक्त कड़ी सुरक्षा हो ताकि रैगिंग लेने वाले स्टूडेंट्स पर नज़र रखी जा सके।
- एक स्टूडेंट यदि पहली बार रैगिंग लेते हुए पकड़ा जाता है, तो उसे अलगी दफा ऐसा करते हुए पकड़े जाने पर कॉलेज से सस्पेंड करने की वॉर्निग देकर ही छोड़ना चाहिए।
- स्टूडेंट्स की प्रॉपर काउंसलिंग हो ताकि उनकी समस्याओं के बारे में कॉलेज प्रबंधन को जानकारी मिले।
- पहले सेमेस्टर के कोर्स को कठिन बनाने की ज़रूरत है ताकि स्टूडेंट्स के पास गैर-ज़रूरी चीज़ों के लिए वक्त ही ना मिले।
- ये तमाम चीज़ें लड़कियों के संदर्भ में भी लागू हो।
- कॉलेज के चप्पे-चप्पे में सीसीटीवी कैमरे लगे हों ताकि रैगिंग लेने वाले स्टूडेंट्स पर नज़र बनी रहे।
- समय-समय पर स्थानीय प्रशासन द्वारा जांच अभियान संचालित हो, ताकि गुप्त रूप से कोई योजना ना बन पाए।