मैं पूजा चौरसिया राष्ट्रीय स्तर की 50 मीटर .22 बोर पीप साईट राइफल की “रेनॉउण्ड शॉट” शूटर हूं। मैंने औपचारिक तौर पर वर्ष 2017 में निशानेबाज़ी की शुरुआत की। सबसे पहले 9वीं प्री यूपी स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में भाग लिया और .22 बोर पीप साइट राइफल प्रोन में सिल्वर मेडल व थ्री पोज़ीशन में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम करते हुए राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के लिए क्वालीफाई किया।
41वीं यूपी स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल प्राप्त करते हुए प्री नैशनल प्रतियोगिता के लिए भी क्वालीफाई किया। इसी दौरान प्री नैशनल नॉर्थ ज़ोन प्रतियोगिता, देहरादून में भाग लेकर राष्ट्रीय शूटिंग चैंपियनशिप प्रतियोगिता हेतु क्वालीफाई किया।
खेल के इस सफर के दौरान केरल में आयोजित राष्ट्रीय शूटिंग चैंपियनशिप में भाग लेते हुए ‘रेनॉउण्ड शॉट’ शूटर बनी। वर्ष 19 में 10 मीटर .177 बोर पीप साइट एयर राइफल की शूटिंग की प्रैक्टिस प्रारंभ करते हुए इटावा में आयोजित 11वीं प्री स्टेट में व्यक्तिगत सिल्वर मेडल व टीम इवेंट में भी सिल्वर मेडल प्राप्त कर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता हेतु क्वालीफाई किया।
इसके बाद मैंने मेरठ में आयोजित 42वीं यूपी स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में भाग लिया, जहां 50 मीटर .22 बोर पीप साइट राइफल थ्री पोज़ीशन में व्यक्तिगत व टीम का सिल्वर मेडल जीतने में सफल रही। इसके अलावा 10 मीटर .177 बोर पीप साइट एयर राइफल में व्यक्तिगत सिल्वर व टीम गोल्ड मेडल के साथ कुल 4 पदक प्राप्त किया है।
NCC के ज़रिये शूटिंग के प्रति बढ़ी दिवानगी
मैंने स्कूल में NCC की ट्रेनिंग ली थी, जहां शूटिंग भी सिखाई जाती थी। NCC के ज़रिये मैं प्री नैशनल तक खेलने गई हूं। उसके बाद NCC का सफर तो समाप्त हो गया मगर मेरे अंदर शूटिंग के प्रति जुनून खत्म नहीं हुआ। मुझे लगा कि मैं शूटिंग को अपना कैरियर बना सकती हूं फिर मुझे पता चला कि बनारस में राइफल क्लब है, जहां शूटिंग सिखाई जाती है।
वहां जाकर पता चला कि शूटिंग तो काफी महंगा खेल है। दरअसल, NCC में हमलोंगों को इसके लिए पैसे नहीं देने पड़ते थे और इसी वजह से हमें लगा कि आगे भी इसमें कोई खर्च नहीं है। जब मैंने देखा कि यहां तो बेहतर खिलाड़ी बनने के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं, तब मुझे लगा कि इस खेल में कुछ कर गुज़रने की चाहत अब खत्म हो जाएगी।
मुझे ऐसा लगा जैसे मैं शूटिंग तो कभी कर ही नहीं पाऊंगी, क्योंकि पापा की इतनी इनकम नहीं है कि मुझे पूर्ण रूप से सपोर्ट कर सके। जब मैंने यह बात अपनी दीदी से शेयर की, तब उन्होंने कहा कि वह मुझे सपोर्ट करेंगी।
राइफल क्लब के ज़रिये दिखी उम्मीद की किरण
राइफल क्लब में मेरी मुलाकात पंकज श्रीवास्तव सर से हुई। उन्होंने मुझे शूटिंग में आने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसके बाद धीरे-धीरे इस स्पोर्ट्स में पक्की होती चली गई। राइफल क्लब में मैने वार्षिक मेंबरशिप लेकर सीखना शुरू कर दिया और क्लब की राइफल से खेलकर मैं राष्ट्रीय स्तर की शूटर बन सकी।
क्लब की राइफल का इस्तेमाल कई शूटर्स करते हैं, जिस कारण प्रैक्टिस का काफी कम समय मिल पाता है। राइफल भी ज़्यादातर खराब हालत में ही रहती है, इसलिए कोच सर के कहने पर मैंने एयर राइफल की भी प्रैक्टिस शुरू कर दी जिसमें मैंने प्री नैशनल के लिए भी क्वालीफाई कर लिया है। इसके तहत दो मेडल भी प्राप्त किए हैं।
मेरे कोच सर हमेशा कहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर उम्दा प्रदर्शन करने के लिए बेहद ज़रूरी है कि हमारे पास अपने राइफल उपलब्ध हों, क्योंकि प्रतियोगिता काफी कठिन होता है।
शूटिंग में प्रैक्टिस के लिए कारतूस से लेकर किट तक खरीदने में काफी पैसे लग चुके हैं। प्रत्येक प्रतियोगिता में 20 से 25 हज़ार खर्च हो जाते हैं। ये तमाम खर्च दीदी ही वहन करती हैं। पापा की स्थिति अच्छी नहीं है, क्योंकि वह पान की दुकान चलाते हैं।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि मुझे .22 बोर राइफल, कारतूस, एयर राइफल और पर्याप्त छर्रे मिल जाएं, तो 2 वर्ष के अंदर मैं भी इंटरनैशनल शूटिंग में अपने ज़िले, राज्य व राष्ट्र का नाम रौशन करूंगी।